संपादकीय टिप्पणी ‘भेदभाव और विकास’ में आरक्षण पर उठी राजनीति की उचित आलोचना हुई है. बच्चों को आगे कर बड़े लोग आरक्षण की मुखालफत कर रहे हैं. आरक्षण कोई खैरात नहीं है. हजारों साल से पिछड़ों, निचलों व महिलाओं को अनपढ़ रख उन का हक मारा व उन का शोषण किया गया है. इस से देश कमजोर बना और सैकड़ों साल तक विदेशी भारत पर शासन करते रहे.
पंडित नेहरू, राम मनोहर लोहिया, जय प्रकाश नारायण आदि आरक्षण देने में शामिल थे. भारत में 15-20 लाख रुपए डोनेशन दे कर लोग डाक्टर बन जाते हैं. कितने मुन्नाभाई पैसे ले कर दूसरों की जगह परीक्षा देते हैं. बड़ीबड़ी परीक्षाओं के प्रश्नपत्र लीक होते रहते हैं. इन बातों को लोग बुरा नहीं मानते. लेकिन आरक्षण दे कर उन का हक लौटाना लोगों को बुरा लग रहा है.
संपादकीय में आप ने ब्रिटेन के कोर्ट का अच्छा हवाला दिया है. भारतीयों द्वारा बराबरी का हक मांगने वाली याचिका को वहां के कोर्ट ने खारिज कर दिया है. अपने देश में आप तो लोगों को बराबरी का हक देते नहीं हैं लेकिन विदेश में बराबरी का हक पाने के लिए आप मुकदमा लड़ रहे हैं. संभव है ब्रिटेन के कोर्ट को इस की खबर हो कि भारत में डाक्टर बनाने का काम डोनेशन और मुन्नाभाई लोग करते हैं.
माताचरण पासी, देहरादून (उत्तराखंड)