लोकतंत्र के स्तंभ

जून (द्वितीय) अंक में प्रकाशित लेख ‘समस्याओं के अंबार पर मोदी सरकार’ पढ़ा. दरअसल, देश समस्याओं से घिरा है. उन का निराकरण किए बिना समस्याओं के अंबार से मुक्ति पाना संभव नहीं है.

देश के नौकरशाह अपनेआप को जनसेवक न मान कर देश की आम जनता को सेवक मान कर कार्य करते हैं जिस से आम जनता के वाजिब कार्य भी समय पर नहीं होते. जबकि असामाजिक तत्त्वों के प्रलोभन के दबाव में कार्य तुरंत हो जाते हैं. इसलिए नौकरशाह देश के हर नागरिक का कार्य, जो कानूनी तौर पर सही हो, तुरंत समय पर करें.

विधायिका के तहत चुने गए राजनेता अपने को लोकसेवक न मान कर जनता को सेवक मान कर चलते हैं. जबकि वे आम जनता के मतों से ही राजनेता बनते हैं. ये लोग उद्योगपतियों, उन के चमचों का तो कार्य प्राथमिकता से करते हैं जबकि आम व्यक्ति इन के चक्कर लगा कर थक कर बैठ जाता है और ऐसे नेताओं को मत दे कर अपनेआप को ठगा महसूस करता है.

न्यायपालिका से न्याय समय पर न मिलने की वजह से आम नागरिक हताश जिंदगी जीने को मजबूर है.

लोकतंत्र का चौथा स्तंभ मीडिया बड़े वर्ग पर तो ध्यान देता है लेकिन आम नागरिकों की वाजिब समस्याओं को प्रकाशित या प्रसारित नहीं करता है.

आम जनता अपना मत दे कर ही अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेती है. हर नागरिक को अपने परिवार समाज की तरह देशहित में भी कार्य करना चाहिए.

जगदीश प्रसाद पालड़ी ‘शर्मा’, जयपुर (राज.)

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