आखिरकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई लोगों के मन में उमड़ती घुमड़ती इस शंका का समाधान कर ही दिया कि उन का गुरु कोई ऐरागैरा नहीं, बल्कि वल्लभभाई पटेल हैं जिन के कांग्रेसी होने से उन से शिष्यत्व पर कोई दोष नहीं लगता है.
हिंदू महासभा से ले कर जनसंघ और भाजपा में ऐसे हिंदूवादी नेताओं की भरमार है जिन में से किसी एक को मोदी अपना गुरु बताते गुरुशिष्य परंपरा का निर्वाह कर सकते थे पर उन्होंने पटेल को ही चुना तो सहज समझ आया कि हिंदूवादी नेताओं की कोई स्वीकार्य या सर्वमान्य छवि ही नहीं है.
गुजरात चुनाव के वक्त पटेल को ही गुरु बनाने का अभिप्राय पटेल वोटों को अपनी तरफ आकर्षित करना भी था. अगर यह सिलसिला जारी रहा तो तय है नरेंद्र मोदी की हालत दत्तात्रेय सरीखी हो जाएगी जिस के 24 गुरु थे.
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