मैं कक्षा 9 में पढ़ती थी. उस दौरान पहनने के लिए कपड़े सालभर में 1-2 बार ही बनवाए जाते थे. पिताजी हम 2 बहनों के लिए 6 मीटर कपड़ा सलवारसूट के लिए लाए. घर की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण कम सिलाई लेने वाली पास में रहने वाली एक महिला को कपड़े सिलने के लिए दे दिए. बाल उत्सुकतावश मैं 4-5 दिन बाद अपने ‘सूट’ के बारे में पूछने गई. उन्होंने कहा कि 3-4 दिन बाद ले जाना. इसी तरह कलकल कह कर 12-13 दिन बीत गए और वह कपड़ा वैसे ही वापस कर दिया. नए कपड़े पहनने का उत्साह ठंडा पड़ गया. मैं बिना सिला कपड़ा देख कर पिताजी के पास आ कर फूटफूट कर रो पड़ी. पिताजी ने चुप कराया, ढांढ़स बंधाया कि पड़ोस में ही रहने वाली ताईजी तुम्हारे सूट सिल देंगी. मैं कपड़ा ले कर उन के पास गई. उन्होंने हम दोनों की नाप ली. हम खुश हो गए कि सारे कपड़े सिल जाएंगे. पर ताईजी भी केवल आश्वासन देती रहीं और मैं अपना कपड़ा वापस ले आई पिताजी से कहा, ‘‘अब बताओ किस से सिलवाओगे हमारे कपड़े?’’

वे कुमाऊंनी भाषा में बोले, ‘‘मेरी चेली तमौत्ते होशियार छ:. मैं बतौन उ सिड़ैली. तू त कसकस कै हरें देली.’’ अर्थात् मेरी लड़की तो बहुत होशियार है. मैं बताऊंगा, वह सिलेगी. वह तो कैसेकैसों को हरा सकती है. इन शब्दों से मैं उत्साह से भर गई. पिताजी के प्रोत्साहन व प्रेरणा से मैं अपना सूट काटने के लिए तैयार हो गई. 6 मीटर कपड़े में मैं केवल 1 सूट बना पाई. उस के बाद धीरेधीरे मैं घर के सभी कपड़े सिलने लगी और अच्छी दर्जिन बन गई. फिर मैं पासपड़ोस के भी कपड़े सिलने लगी जो हमारी आजीविका का साधन बन गया. आज पिताजी हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उन के प्रेरणास्रोत शब्द आजीवन हमारे साथ रहेंगे.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...