मेरे एक रिश्तेदार का बेटा बीमार था. शायद उसे सर्दी लग गई थी. बेटे की मां बहुत रूढि़वादी थीं. उन के मन में वहम था कि किसी पड़ोसी ने उन के बेटे को नजर लगा दी है जिस के कारण वह बीमार हो गया है. उन्होंने शाम होते ही बहुत सारी मिर्चों को अपने बेटे के सिर से वारा (नजर उतारी) और कमरा बंद कर के उन मिर्चों को आग पर रख कर उन की धूनी जलाई मिर्चों की गंध से उन के बेटे की हालत बहुत खराब हो गई. उस रात को पड़ोसियों ने बच्चे को स्थानीय अस्पताल में ले जाने का आग्रह किया. परंतु बेटे की मां नहीं मानीं और अपनी जिद पर अड़ी रहीं. डाक्टर के इलाज के बजाय उस की अपने तरीके से ही झाड़फूंक करती रहीं. कुछ दिनों बाद वे अपने बेटे से हाथ धो बैठीं. मां की रूढि़वादिता ने अपने ही बेटे की जान ले ली.

प्रदीप गुप्ता, बिलासपुर (हि.प्र.)

*

गांव में एक पहलवान थे. जब भी कोई दंगल होता वे जरूर जाते और जीत कर इनाम लाते. तमाम लोग उन से जलते थे. एक बार वे सावन के महीने में किसी दंगल में कुश्ती लड़ने गए थे. लौटने में अंधेरा हो गया. वे अकेले आ रहे थे. रास्ते में बारिश होने लगी. गांव आने से पहले एक बड़े बाग को पार करना पड़ता है. बाग में खूब अंधेरा था. वातावरण में दहशत थी. एक व्यक्ति, जो उन से जलता था, उस बाग की एक नीची डाल पर सिर नीचे और पैर ऊपर कर के लटक गया, देखने से दूर से वह भूत नजर आ रहा था. पहलवान उसे देख कर भूतभूत चिल्ला कर भागे और गांव आ कर डर के मारे बेहोश हो गए. काफी रात गए उन्हें होश आया लेकिन उन के दिलोदिमाग में भूत का खौफ बैठा था. वे किसी को भी देख कर भूतभूत चिल्लाने लगते थे. वे बीमार रहने लगे. घर वालों ने तमाम ओझा व भूत उतारने वाले बुलवाए. कई दिन तक भूत उतारने के लिए थाली बजी, लेकिन भूत न उतरा. कुछ पढ़ेलिखे लोगों ने कहा कि पहलवान को किसी अच्छे डाक्टर या मनोचिकित्सक को दिखाओ तो घर वाले कहने लगे कि भूतप्रेत के बारे में डाक्टर क्या जानें. धीरेधीरे पहलवान महोदय की हालत बिगड़ती गई और एक दिन वे दुनिया से चल बसे. काश, पहलवान के घर वालों ने पढ़ेलिखे लोगों की बात मान ली होती और किसी अच्छे डाक्टर को दिखाया होता तो शायद पहलवान की जान बच जाती.

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