16 साल से ले कर 20 साल की उम्र के हम लोग करीब 15-20 साथी एक ही महल्ले के थे. जब भी हम लोग कहीं खेलनेकूदने आतेजाते थे, साथ ही जाया करते थे. एक बार बरसात के दिनों में गंगा स्नान को गए. बाढ़ आई हुई थी. पानी में नहाते समय हम लोग छुआछुआई का खेल खेलने लगे. इस खेल में एक साथी चोर होता है, वह बाकी साथियों को छूने की कोशिश करता है और जब वह किसी साथी को छू देता है, तब वह चोर हो जाता है.

पानी में डूबतेतैरते हुए उस से सब दूर भागते थे ताकि वह हम लोगों को छू न सके. जो साथी चोर बना हुआ था, वह भी डूब कर तैरते हुए किसी को छूना चाहता था. इसी तारतम्य में उसे एक मुरदे की गरदन पकड़ में आ गई. वह बहुत खुश हुआ कि मैं ने किसी साथी की गरदन पकड़ ली है. ज्यों ही पानी के अंदर से ऊपर आया, अपने हाथ में मुरदे का चेहरा देख कर डर गया और चिल्लाया, ‘‘अरे, बाप रे मुरदा.’’ हम सभी लोग यह देख कर बाहर निकले और अपनेअपने कपड़े ले कर दूसरे घाट पर जा कर बदले और कान पकड़ा कि अब यह खेल कभी नहीं खेला जाएगा. हुआ यह था किसी दूसरे गांव के लोग जल्दी ही मुरदा फेंक कर गए थे, इसलिए वह इसी तरह अभी पानी में पड़ा था.     

कैलाश राम गुप्ता

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ईंटों से भरे ट्रक के ड्राइवर ने हमारी गली में स्थित मेनहोल का ढक्कन, पानी की पाइपलाइन व एक घर में वर्षा के पानी की निकासी के लिए लगाए हुए प्लास्टिक के पाइप तोड़ दिए. समाज के प्रति लोगों की संवदेनहीनता देखो कि गली में खड़े लोग बातें तो करते रहे कि  मेनहोल में कोई बच्चा न गिर जाए परंतु उन्होंने ट्रक ड्राइवर को नहीं पकड़ा जिस ने वहां ईंटों की गाड़ी अनलोड की, न ही उस की कहीं शिकायत दर्ज करवाई.

कुछ दिनों के बाद जब मैं ने उस ट्रक ड्राइवर से इस बारे में बात क ी तो वह बड़े गुस्से में बोला, ‘‘भई, जब उन लोगों को कोई तकलीफ नहीं है, तो तू क्यों इस झमेले में फंस रहा है.’’ मैं समझ गया था कि कोई भी पड़ोसी किसी से बिगाड़ना नहीं चाहता है, इसलिए सब चुप थे. ऐसे में मैं भी क्या करता. बात ज्यादा न बढ़े इसलिए चुप कर के घर आ गया.      

प्रदीप गुप्ता

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