परिवार के मुखिया को विवाह में सपरिवार शामिल होने के लिए शुभविवाह का निमंत्रण मिला. सामाजिक व्यवहार और परंपरा निभाने के लिए सब खुशीखुशी जाने के लिए तैयार हो गए. मुखिया ने कहा कि प्रोग्राम तय कर लो. कहां, कब पहुंचना है, देख लो और चलो. वहां सब बच्चे शामिल होंगे और हम सब को आशीर्वाद देंगे.

शादी का आयोजन एक बड़े शहर के बड़े होटल में आयोजित था जिस का ब्योरा निमंत्रणपत्र में विधिवत दिया था. जानकारी के लिए वे मूल निमंत्रणपत्र अपने साथ ले कर गए थे. पूरा परिवार उस शहर के उस होटल में पहुंच गया और रिसैप्शन से होते हुए शादी हौल में पहुंचा. वहां कुछ आयोजन हो रहा था, वहां स्त्रीपुरुषबच्चे सभी थे. लेकिन उन का अपना नजदीकी, न दूर का संबंधी, न ही जानकार दिखाई दिया. वे सब हैरान रह गए. वे सोचने लगे कि क्या करें, कहीं हम गलत पते पर तो नहीं आए. रिसैप्शन पर आए, पूछा और बताया कि हम इस निमंत्रण के अनुसार आए हैं. रिसैप्शनिस्ट ने बड़ी विनम्रता से जवाब दिया, ‘‘सर जी, आप जिस आयोजन में आए हैं, उन का होटल में बुकिंगसमय पूरा हो गया था और वे सब यहां से चले गए हैं. होटल में अब जिन का आयोजन चल रहा है वे दूसरे लोग हैं. इसलिए आप को अपने रिश्तेदार नहीं दिख रहे हैं. हां, मेरी जानकारी में पहली पार्टी के लोग अभी 5 मिनट पहले ही यहां से जा चुके हैं.’’

सरन बिहारी माथुर, नासिक (महा.)

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मेरा बेटा 8वीं क्लास में पढ़ता है. मैं ने बेटे के बेहतर भविष्य के लिए राष्ट्रीय स्तर के कोचिंग इंस्टिट्यूट में प्रवेश पाने के लिए 700 रुपए की परीक्षा फीस दे कर बैठाया कि इस से इस की मैरिट की भी परीक्षा हो जाएगी और स्कौलरशिप भी मिल जाएगी. साथ ही, मेधावी छात्रों के साथ पढ़ने का एक वातावरण भी मिलेगा. रिजल्ट निकलने वाले दिन हमारी बेचैनी कम न थी कि न जाने बेटा सफल होगा या नहीं. इंटरनैट पर जा कर जैसे ही ‘इसे चुना गया है’ देखा, अत्यंत खुशी हुई.

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