मैं एक स्कूल में अध्यापिका हूं. एक दिन मैं कक्षा 3 के छात्रों को उन के यूनिट टैस्ट के अंक बता रही थी. एक छात्र से मैं ने कहा कि आकाश, तुम्हारे सब विषयों में तो अच्छे अंक आए हैं, परंतु नैतिक विज्ञान (मौरल साइंस) में बहुत कम अंक आए हैं. लगता है तुम ने यह विषय पढ़ा नहीं था. यह सुन कर पहले तो वह चुप रहा, फिर धीरे से बोला कि मौरल साइंस का जमाना गया. उस की यह बात सुन कर सब बच्चे खिलखिला कर हंस पड़े और मैं सोचने लगी कि इस बच्चे ने कितने भोलेपन से इतनी गूढ़ बात कह दी.
तृप्त कौर भाटिया
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मेरा बेटा विशाल जब 5 वर्ष का था तो एक बार उस ने कहा, ‘‘पापा, आप मुझे यदि एक साइकिल दिलवा दें, तो मैं आप को रोज शाम को औफिस से लेने आऊंगा.’’ खैर, हम ने उस को छोटी साइकिल दिलवा दी और बात आईगई हो गई.
एक दिन औफिस बंद होने पर जब मैं घर लौट रहा था, तो मैं ने सड़क पर साइकिल चलाते हुए विशाल को अपनी ओर आते देखा. मैं ने मुसकराते हुए उस से पूछा, ‘‘साहब बहादुर, यहां कैसे?’’ वह बोला, ‘‘आप को लेने आया हूं. चलो, मेरी साइकिल पर.’’ अब आप ही सोचिए कि मैं उस साइकिल पर कैसे बैठता? आज वह युवा हो गया है, मुझे अकसर कार में बिठा कर लौंगड्राइव पर ले जाता है. तब, मुझे बालक विशाल के वे शब्द याद आते हैं, ‘‘पापा, आप मुझे यदि साइकिल दिलवा दें, तो मैं आप को रोज शाम को औफिस से लेने आऊंगा.’’