मातृभूमि और खून के रिश्तों में एक अजीब सी कशिश होती है जो इन दिनों लालकृष्ण आडवाणी के बयानों से समझ आ रही है. बंगलादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना भारत आईं तो दिल्ली के एक समारोह में आडवाणी का माटी प्रेम कुछ ऐसे दिखा कि उन की जन्मस्थली सिंध अब जो कि पाकिस्तान में है, इस का उन्हें दुख है. इस दुख से निवृत्ति का एक ही तरीका है कि सिंध और कराची को भारत में मिला लिया जाए. यह बात हिंदूवादी भजनों और आरतियों के जरिए भी जताते रहते हैं कि एक दिन कराची तक में तिरंगा लहराएगा. आडवाणी अहिंसक तरीके से यह पीड़ा व्यक्त कर रहे हैं. हालांकि यह माटीमोह व्यर्थ और दिखावे की बात है जिस का वर्तमान भारत माता से कोई लेनादेना नहीं. इसे भूल कर आडवाणी राष्ट्रपति पद की दावेदारी पर ध्यान दें तो बेहतर होगा.