मैं अपनी बेटी के पास अहमदाबाद गई थी. सुबह की सैर के बाद जब हम सब चाय पी रहे थे तो देखा मेरे बाएं हाथ में सोने का कड़ा नहीं था. कहां गिरा, कब गिरा, याद ही नहीं.

सोचा, जहां घूम रहे थे वहीं देखूं. शायद गिरा हो तो मिल जाए. सो, मैं और बेटी दोनों देखने निकले. इतनी देर में सड़क में झाड़ू भी लग चुकी थी. खैर, कचरे वाली से पूछा. उस ने कहा कि एक लड़की, जो औफिस जा रही थी, को  मिला तो था लेकिन वह तो औफिस गई.

अब क्या करें. खैर, उस के घर गए. उस की मम्मी से बात की. फिर उस लड़की से मोबाइल से बात की और बताया जो कड़ा उसे मिला था वह मेरा है. उस ने बोला कि लंचटाइम में वह घर आएगी तब मिल कर दे देगी. उस समय 10 बजे थे. 1 बजे अपनी मम्मी को ले कर हमारे घर आई व मेरा दूसरा कड़ा देख कर (जो मेरे हाथ में था) मेरा कड़ा मुझे लौटा दिया. कड़ा लेते ही मेरे होंठों पर मुसकान आ गई.   

मीना गर्ग

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मुझे पति के साथ हरिद्वार जाना था. अंबाला से हरिद्वार का 170 किलोमीटर का सफर हम ने स्कूटर पर तय करने का निर्णय लिया. हम 3 बजे अंबाला से चले और साढ़े 5 बजे सहारनपुर, पहुंचे. वर्षा होने लगी. जैसेतैसे हम छुटमलपुर पहुंचे ही थे कि हमारा स्कूटर खराब हो गया. हरिद्वार अभी  60 किलोमीटर दूर था. तभी दूध का एक टैंकर आया और उस ने हमें लिफ्ट दे दी.

हम जैसेतैसे रुड़की पहुंचे. हरिद्वार अभी 32 किलोमीटर दूर था और रात के 9 बज गए थे. तभी पास में ही चुंगी के निकट हमें एक सज्जन मिले. हम ने उन्हें अपनी समस्या से अवगत करा कर रात को ठहरने के लिए किसी होटल का पता पूछा. आसपास कोई होटल न था.

उन्होंने हमें अपने घर में ठहरने के पेशकश की. पहले तो हम डर रहे थे, लेकिन बाद में जब उन्होंने हमें अपने बच्चों जैसा बतलाया, तो हम उन के साथ चल पड़े. रात्रि 10 बजे उन के घर पहुंच कर हमें पारिवारिक वातावरण मिला.

अगले दिन सुबह उन्होंने हमें चायनाश्ता करवाया, स्कूटर ठीक करवाने की व्यवस्था की और हरिद्वार जाने का छोटा मार्ग भी बताया. इस व्यवहार के परिणामस्वरूप जब हम ने उन के पोते को कुछ रुपए देने चाहे, तो उन्होंने यह कह कर पैसे लेने से साफ इनकार कर दिया कि उन्होंने जो भी किया इंसानियत के नाते किया. आज भी जब मैं उन सज्जन के बारे में सोचती हूं, तो मन उन के प्रति सम्मान से भर जाता है. शशी बाला 

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