हम लोग दुर्गापुर नएनए आए थे. मेरे पति का तबादला वहां हुआ था. वे एक सरकारी नौकरी में हैं. संयोग से उस समय पति की तबीयत बहुत खराब थी. हम लोग दिल्ली में उन का इलाज करा कर दुर्गापुर जौइन करने गए थे. हम लोग होटल में रुके थे. मैं इस चिंता में थी कि होटल में इन का परहेज कैसे होगा. बीमारी की हालत में होटल का खाना मुश्किल था. मकान लेने तथा सामान शिफ्ट करने में समय लगना था. उसी समय इन के औफिस के एक अधिकारी हमें अपने घर ले गए. वे अकेले रहते थे. परंतु उन के यहां सारी व्यवस्था थी. वे अपना काम छोड़ कर निस्वार्थ भाव से अपनी गाड़ी ले कर हाजिर हो जाते थे. आज भी उन्हें याद कर मैं कृतज्ञ हो जाती हूं.
डा. संजु झा, टैगोर गार्डन (न.दि.)
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हमारे शहर से 200 किलोमीटर की दूरी पर दूसरे शहर में हमारी मौसी का घर था. एक दिन हमारे मामाजी की दुकान पर एक अनजान आदमी ने आ कर बताया कि वह हमारी मौसी के पड़ोस में रहता है, और उन के बारे में एक दुखद सूचना देने आया है. उस ने बताया कि हमारी मौसी का निधन हो गया है. यह सुन कर मामाजी सन्न रह गए क्योंकि मौसी की उम्र भी ज्यादा नहीं थी और वे स्वस्थ थीं. उन दिनों मोबाइल फोन जैसी सुविधा नहीं थी. लैंडलाइन फोन भी सब के घर में नहीं होते थे. मैं तब 10वीं कक्षा में पढ़ती थी, और छुट्टियों में मां के साथ मामाजी के यहां आई हुई थी. हम बच्चों को घर में ठीक से रहने की हिदायत दे कर मेरे मामा, मामी व मां एक टैक्सी ले कर दुखी मन से मौसी के शहर की ओर रवाना हो गए.
जब सब लोग मौसी के यहां पहुंचे तो दरवाजा बंद देख कर सब को कुछ अटपटा सा लगा. मेरे मामाजी ने धीरे से दरवाजे पर दस्तक दी. दरवाजा मौसी ने खोला. उन्हें सहीसलामत देख कर किसी को कुछ समझ नहीं आया कि क्या कहें, क्या न कहें. सब की आंखों से खुशी के आंसू बहने लगे. मौसी उन्हें इस हाल में देख कर समझ नहीं पा रही थीं कि माजरा क्या है. जब सब थोड़े सहज हुए तो मामाजी ने मौसी और मौसाजी को सचाई बताई. सरल स्वभाव की मौसी सब सुन कर हंस पड़ीं और बोलीं, ‘‘कोई बात नहीं, मेरी उम्र बढ़ गई है इस झूठी खबर से.’’ मालूम नहीं मौसी की मौत की खबर देने वाले इंसान से कहीं कुछ गलती हुई थी, या दुकान में भीड़ ज्यादा होने की वजह से मामाजी को कुछ गलतफहमी हो गई थी समझने में. पर यह घटना हम कभी नहीं भूले.
सीमा चौहान, गुवाहाटी (असम)