मेरे मित्र की बहन भोपाल में रहती है. किसी कार्यवश मैं उस के निवास पर गया. मुझे देख वह प्रसन्नता से नाचने लगी, कहने लगी, ‘‘भाईसाहब आए, भाईसाहब आए.’’ उस की आवाज सुन उस की सास बाहर आ गई. मुझे देख वह बोली, ‘‘बहू, भाई आए हैं तो घर के अंदर ले जाओ, बैठाओ, यह क्या पागलपन कर रही हो.’’ वह हर्षित होते हुए बोली, ‘‘अम्मा, हमारे मायके से कुत्ता भी आए तो हम प्रसन्न होते हैं. ये तो हमारे भाई हैं.’’
अपनत्व की हद तक उसे भाई देख, कुत्ता याद आया. हम ने मन ही मन कहा, ‘यह भी खूब रही.’
सत्यनारायण भटनागर
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मेरी भाभी बच्चों की पढ़ाई को ले कर हमेशा तनाव में रहती हैं. जबकि बच्चे अभी स्कूल में ही हैं. वे हमेशा बच्चों के कैरियर को ले कर चर्चा भी करती रहती हैं. मैं हमेशा समझाती रहती हूं कि भतीजेभतीजियां पढ़ाई में अच्छे हैं, फिर भला चिंता किस बात की? उस समय तो वे शांत हो जाती हैं लेकिन कुछ समय बाद फिर बच्चों की पढ़ाईर् की चिंता में पड़ जाती हैं. उन की इस आदत से घर के सभी लोग कभीकभी परेशानी महसूस करते हैं.
एक बार की बात है. भाभी, मैं व मेरी सहेली बाजार खरीदारी करने गए. 2 घंटे तक खरीदारी करते हुए अचानक भाभी बोलीं, ‘‘भूख लगने लगी है, यहीं पास के होटल में चलें.’’ हम होटल में जा कर बैठे ही थे, मैं ने भाभी से कहा, ‘‘आप ही की पसंद की चीजें खाएंगे.’’ भाभी मैन्यू कार्ड चाहती थीं, लेकिन वे भूल गईं कि इसे क्या कहते हैं. वे बोलीं, ‘‘वेटर, सिलेबस तो लाना जरा.’’ यह सुनते ही आसपास में बैठे लोग हंस पड़े. मैं और मेरी सहेली हंसी दबाने की कोशिश करते रहे. वेटर के मैन्यू कार्ड लाने पर सहेली ने बात संभाली. आज भी जब वह घटना याद आती है तो हम हंसे बिना नहीं रह पाते.