मैं मायके गई हुई थी. रविवार का दिन था. पापा सुबह के समय किसी घरेलू काम में व्यस्त थे. तभी किसी मेहमान ने दरवाजे की घंटी बजाई और आवाज दी, दिवाकरजी हैं क्या? मैं ने कहा, आप अंदर आइए, बैठिए, पापाजी अभी आ रहे हैं. पापा को मैं ने अंदर जा कर बताया. उन्होंने कहा, ‘‘तुम उसे चायनाश्ता दो, मैं बस आ रहा हूं.’’ पापा आए तो वह आदमी कहने लगा, ‘‘सर, नमस्ते, आप ने मेरा बहुत बड़ा काम किया है. मैं आप का एहसान कभी नहीं भूल सकता.’’

पापाजी कहने लगे, ‘‘मैं ने तो आप को पहचाना ही नहीं. अपना नाम तो बताइए.’’ उन्होंने नाम और काम बताया. तब पापाजी को समझने में देर न लगी कि उस आदमी को कहीं और जाना था. कालोनी में एक जैन परिवार रहता था, उन का सरनेम दिवाकर था, वहां उस आदमी को जाना था. मेरे पापा का पहला नाम दिवाकर है. इसलिए सारी कन्फ्यूजन हुई. बात समझते ही हम सभी हंसहंस कर लोटपोट हो गए.

अल्पिता घोंगे, भोपाल (म.प्र.)

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दफ्तर में बड़े बाबू के सेवानिवृत्त होने का आयोजन चल रहा था. सभी कर्मचारी अपनीअपनी तरह से बड़े बाबू का सम्मान कर रहे थे. अब बारी आई घोष बाबू की. वे हाथों में फूलमाला ले कर बड़े बाबू के पास आए और बोले, ‘‘बड़े बाबू, आप बहुत अच्छे हैं, मैं आप को हमेशा याद रखूंगा. मैं आप को श्रद्धांजलि देता हूं.’’ और फूलमाला उन के गले में डाल दी. बंगाली होने के कारण हिंदी शब्दों का हेरफेर हो गया. लोग मुंह दबा कर मुसकराने लगे.

महेश चंद्र भटनागर, कल्याण (महा.)

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मैं अपनी 6 और 8 साल की बेटियों के साथ पीहर आई थी. पीहर में भाभी के 2 बच्चे, एक 5 साल का बेटा और एक 7 साल की बेटी, थे. सब मिल खूब खेलते, शैतानी भी करते. एक दिन मुझे तथा भाभी को बाजार जाना पड़ा. बच्चों को घर पर बाबूजी के पास छोड़ गए. जातेजाते अपना मेकअप का सामान अलमारी के ऊपर रख गए क्योंकि लड़कियां शृंगार करने की बहुत शौकीन हैं. पर हुआ यह कि जब हम लौट कर आए तो देखा, बच्चे भरपूर शृंगार किए हुए थे. बाबूजी से पूछा कि यह सामान इन के हाथ कैसे लगा? उत्तर मिला बारबार कूदकूद कर सामान उतारने की कोशिश कर रहे थे, धमाचौकड़ी मचा रहे थे. परेशान हो कर मैं ने ही सामान उतार दिया. अब बाबूजी से क्या कहते. इतनी महंगी चीजों का सत्यानाश हो चुका था. बस, सिर पकड़ कर बैठ गए.

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