बात पुरानी है मगर आज भी जब शनिवार के दिन बाजार से गुजरती हूं तो किस्सा ताजा हो जाता है. गरमी की छुट्टियों में हम सपरिवार मनाली घूमने गए हुए थे कि कारगिल युद्ध शुरू हो गया. वापसी में सैनिकों से भरी गाडि़यों को जाते देख मेरा 6 वर्षीय बेटा उन के बारे में पूछने लगा तो मैं ने उसे पाकिस्तान के साथ हुए युद्ध के बारे में बताया. इस के बाद वह अकसर पाकिस्तान के बारे में मुझ से सवाल करता.
एक दिन वह मेरे पास आया और पूछने लगा, ‘‘मम्मी, लोग अपनी गाडि़यों और दुकानों में नीबूमिर्ची क्यों बांधते हैं?’’ इस पर मैं ने जवाब दिया, ‘‘बेटा, इस से नजर नहीं लगती और दुश्मन भी परास्त होते हैं.’’
यह सुन कर वह सोच में पड़ गया. मुझे लगा, मेरी बात उसे समझ नहीं आई. मगर वह अचानक चहक उठा और बोला, ‘‘तो मम्मी, जब पाकिस्तान हमारे साथ लड़ाई करेगा तो हम अपने सैनिकों को हथियार के बदले नीबूमिर्ची दे देंगे और हमारे सैनिक पाकिस्तानी सैनिकों को मारेंगे नीबूमिर्ची, ठांयठांय. इस से सारे दुश्मन चित हो जाएंगे. क्यों, ठीक है न मेरा आइडिया.’’
यह सुन कर मेरा हंसतेहंसते बुरा हाल हो गया. वर्षों बाद भी शनिवार के दिन दुकानों में नीबूमिर्ची देख कर बेटे की ठांयठांय की आवाज कानों में गूंजने लगती है और मैं मुसकरा कर आगे निकल जाती हूं.
विमला ठाकुर
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हमारे सासससुर और ननद हमारे साथ रहने के लिए आए हुए थे. मेरा 4 साल का बेटा है जो अपने दादादादी का काफी लाड़ला है.
रात में सब लोगों के खाना खा लेने के बाद मैं किचन में साफसफाई कर रही थी, तभी ससुरजी मेरे बेटे से बोले, ‘‘चलो बिट्टू, आज तुम हमारे साथ सोने चलो, रोज तो मम्मीपापा के साथ ही सोते हो.’’