मैं सुबहसुबह डेयरी पर दूध लेने गई. वहां 14-15 साल की एक लड़की थी. मैं ने उसे 100 रुपए का नोट दिया व 1 लिटर दूध लिया.
उस ने मुझे कम पैसे लौटाए, तो पूछने पर उस ने कहा, ‘‘आंटी, आप ने 50 रुपए का नोट दिया था.’’ पर चूंकि मेरे पास अकेला 100 रुपए का नोट था इसलिए मैं भी अड़ी रही कि नहीं, मैं ने 100 रुपए का ही नोट दिया है.
उस लड़की ने आगेपीछे व बौक्स में फिर देखा और कहा, ‘‘नहीं आंटी, आप ने मुझे 50 रुपए का नोट दिया है,’’ उस ने 50 रुपए का नोट दिखाते हुए कहा, जो उस के बौक्स में पहले से पड़ा हुआ था. तब मैं ने उस से कहा, ‘‘रुको, मैं अंदर आ कर देखती हूं.’’
इस पर वह झट से नीचे झुकी और बोली, ‘‘हां आंटी, नोट पैर के पास पड़ा हुआ है. मुझे दिखा नहीं.’’
करीब 20 दिन बाद फिर मैं उसी डेयरी पर दूध लेने गई. वही लड़की बैठी हुई थी. मैं ने फिर 100 रुपए का नोट दिया और 1 लिटर दूध लिया. उस ने मुझे कम पैसे दे कर कहा, ‘‘आंटी, आप ने 50 रुपए का नोट दिया है.’’
मुझे पिछली बार की घटना याद आई और बहुत तेज गुस्सा भी आया. मैं ने उस से कहा, ‘‘अभी 20 दिन पहले भी तुम ने मुझ से यही कहा था कि आंटी, आप ने 50 रुपए का नोट दिया है जबकि 100 रुपए का नोट तुम्हारे पैर के पास मिला,’’ मेरे ऐसा कहने पर वह जोरजोर से रोने लगी. दुकान पर लोग इकट्ठे होने लगे तो सब से बोली कि आंटी मुझे 50 रुपए का नोट दे कर कहती हैं कि 100 रुपए का नोट दिया है और मुझे झूठा साबित कर रही हैं. दुकान पर भीड़ जमा होने के कारण मैं कुछ न बोल पाई और घर आ कर सोचती रही कि इतनी छोटी लड़की किस तरह बड़ी होशियारी से अपने से बड़ों को ठग रही है.
उपमा मिश्रा, गोंडा (उ.प्र.)
 *
एक दिन शाम के समय एक अधेड़  सज्जन मेरी मैडिकल शौप पर आए और लगभग 180 रुपए की दवाएं खरीदीं. और जब भुगतान की बारी आई तो  उन्होंने सारी जेबें टटोल कर लगभग  30 रुपए निकाले और बोले, ‘‘मेरे पास अभी केवल 30 रुपए ही हैं. अगर आप मुझ पर विश्वास करें तो 150 रुपए मैं कल दे जाऊंगा.’’ मेरे इनकार करने पर उन्होंने अपनी जेब से केस सहित चश्मा निकाला और बोले, ‘‘पैसों के एवज में आप कृपा कर के मेरा चश्मा रख लें, मैं कल बाकी पैसे दे कर अपना चश्मा वापस ले जाऊंगा.’’
मैं ने उन की उम्र का लिहाज करते हुए उन की बात पर भरोसा कर के चश्मा रख कर दवाएं दे दीं. वह दिन था और आज का दिन है, वे आज तक अपना चश्मा लेने नहीं आए. इस तरह उन्होंने बैठेबिठाए मुझे
150 रुपए का चूना लगा दिया.
मुकेश जैन ‘पारस’, बंगाली मार्केट (न.दि.) 

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