जेल में लालू

चारा घोटाले में 2 दशक बाद फैसला आया और राष्ट्रीय जनता दल के मुखिया और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव जेल गए तो बात अचंभे की नहीं, पर सियासी लिहाज से है. राबड़ी देवी भले ही कहती रहें कि पति की चरण- पादुकाएं रख वे पार्टी चला लेंगी, हकीकत सब जानते हैं कि पार्टी चलाना बैलगाड़ी हांकने या कार चलाने जैसा आसान काम नहीं है.

सजा लालू को हुई है पर बिहार में नुकसान भारतीय जनता पार्टी का होना तय दिख रहा है. अब होगा यह कि कांग्रेस और जनता दल (यूनाइटेड) को हाथ मिलाने में हिचक नहीं रहेगी. यों भी, राजनीति का दस्तूर यही है कि बजाय कमजोर को ताकतवर बनाने के किसी दूसरे ताकतवर का हाथ थाम लिया जाए.

 

गुरु का गरूर

नाम भले ही रामदेव हो पर योगगुरु का गरूर किसी रावण से कम नहीं. उन्होंने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को ही नामर्द कह दिया. रामदेव की लोकप्रियता का ग्राफ अब गिर रहा है जिस से वे बौखलाएं हुए हैं और अहंकारी भाषा बोल लोकप्रिय होने के सस्ते नुस्खे आजमा रहे हैं. कर चोरी के छापे, उन की दुकान पतंजलि पर पड़ रहे हैं.

दवाइयों के अलावा कौस्मेटिक और घरेलू उपयोग की सामग्री की बिक्री के लिए दूसरे उद्योगपतियों की तरह रामदेव भी नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनते देखना चाहते हैं. इस से साफ यह होता है कि उन का स्वार्थ क्षुद्र और इच्छा कुंठित है. बाबाओं के इशारे पर नोट तो झड़ते हैं पर वोट नहीं गिरते, ऐसा कई बार उजागर भी हो चुका है.

चिंता की बात रामदेव की बदजबानी है जिस पर भगवा खेमा खामोश है. गैर भगवाई कहने से चूक नहीं रहे कि किसी और को नहीं, पर रामदेव को खुद अपने मर्द होने का सुबूत देना चाहिए. यह भी घटिया और फूहड़ बात है पर है रामदेव की शैली की ही.

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