मेरे पति बाजार गए हुए थे. वहां पर एक महिला कुछ खरीद रही थी. इतने में एक भिखारी आया. वह उस महिला से बोला, ‘‘माताजी, मुझ गरीब को कुछ दे दें...’’ वह आगे कुछ और बोलता उस से पहले वह महिला गुस्से में उसे डांटते हुए बोली, ‘‘मैं तुझे माताजी दिख रही हूं.’’ वह मांगने वाला चुपचाप आगे चल दिया. घर आ कर पति ने यह बताया तो हम सब खूब हंसे.    

काशी चौहान, कोटा (राज.)

 

मेरे बेटे को एक सवाल हल करने में सफलता नहीं मिल रही थी. उस ने पापा,  जोकि प्रोफैसर हैं, से सहायता ली पर वे भी नहीं हल कर पाए. उन्होंने अपने दोचार अध्यापक मित्रों से भी पूछा पर आश्चर्य, वे सब भी असफल रहे. मेरा बेटा उस सवाल को बारबार करता रहा पर असफल रहा. आखिरकार सो गया. उस की बहन अभी पढ़ रही थी. उस ने देखा कि भाई कुछ बड़बड़ा रहा है, वह तुरंत कौपीपैंसिल ले कर जो वह बोल रहा था, लिखने लगी.

सुबह उठ कर बोली, ‘‘भाई, मैं ने तेरा सवाल हल कर लिया.’’ मुझे वह सब बता चुकी थी. मैं चुप रही पर बेटा बोला, ‘‘उत्तर तो एकदम ठीक है पर यह तेरे बस का नहीं. बता, कैसे किया?’’ वह बोली, ‘‘भाई, रात को तू ने नींद में जो बोला, मैं ने लिख लिया.’’ उस की मेहनत देख कर सब ने उस की तारीफ की.

संध्या राय, गुड़गांव (हरियाणा)

 

बात 1975 की है. हम बैंकौक में थे. वहां मेरे पति भारतीय दूतावास में कार्यरत थे. एक दिन हम ने रेल द्वारा थाईलैंड की पुरानी राजधानी अयुध्या जाने का कार्यक्रम बनाया. हम ने अपनी बेटी दीपा, जो 5 वर्ष से कम आयु की थी, का टिकट नहीं लिया. टे्रन चलने पर टिकटचैकर आया व हम लोगों के टिकट देखने के बाद दीपा का टिकट मांगने लगा. मेरे पति ने इशारों व जितनी भी थाई भाषा आती थी, उसे समझाया कि दीपा की उम्र 5 वर्ष से कम है. इस पर टिकटचैकर ने थाई में कुछ कहा, जो हमें समझ नहीं आया. तब उस ने दीपा को डब्बे के आखिर में ले जा कर डब्बे से सटा कर खड़ा कर दिया व विजयी मुद्रा में इशारा कर के हमें देखने के लिए कहा.

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