मेरे पति औफिस से आते समय एक दुकान में गए. सामान खरीद कर बाहर आए तो एक लड़का इन से टकरा कर गिर गया. इन को लगा कि उन की वजह से वह गिरा. उस को इन्होंने बड़े प्रेम से उठाया. वह धन्यवाद देता हुआ चला गया. इतने में कुछ और चीज याद आई तो उसे लेने वे दुकान में गए. और वे पैसे देने के लिए जेब से पर्स निकालने लगे तो पर्स गायब. इन्होंने दुकानदार से कहा कि आप को पैसे दे कर जेब में रखा था पर्स, लेकिन अब मिल नहीं रहा, कहीं गिरा भी नहीं दिखाई पड़ रहा. दुकानदार बोला, ‘‘जो आप से टकरा गया था उसी ने तो नहीं पार कर दिया.’’ दुकानदार की बात सुन कर इन की समझ में पूरी कहानी आ गई.

सिम्मी सिंह कनेर, वसंतकुंज (न.दि.)

मैं 15 साल बाद अपने मायके लखनऊ गई थी. सुबह घर के पास के पार्क में टहलने के लिए निकली. मैं ने देखा कि पार्क में रखी बैंच पर 2 बुजुर्ग गोविंदजी व सिन्हाजी बैठे हुए हैं. एक समय दोनों में काफी दुश्मनी रहती थी, आज ये दोनों कैसे हंसहंस कर बात कर रहे थे. गोविंदजी व सिन्हाजी दोनों एक ही औफिस में काम करते थे. सिन्हाजी बहुत ही ईमानदार व मेहनती थे. गोविंदजी चापलूस व मौजमस्ती करने वाले थे. औफिस में दोनों के विचार न मिलने के कारण दोनों में कभी नहीं बनी. बौस को पटा कर गोविंदजी ने प्रमोशन हासिल कर लिया. इस पर सिन्हाजी और भी दुखी हुए. घर में बीवी कहती कि एक गोविंदजी हैं जो दिनभर घूमते हैं, घर में भी हर सुखसुविधा मौजूद है और प्रमोशन भी पा गए. एक तुम हो जो हर जगह पीछे रह जाते हो. सिन्हाजी की समझ में न आता कि क्या जवाब दें. पर आज उन की मित्रता को देख बहुत अच्छा लग रहा था. पता चला कि दोनों की पत्नियों का निधन हो चुका है. दोनों अपने बेटेबहू के साथ रह रहे हैं. गोविंदजी की बहू बहुत बड़े घराने की इकलौती संतान थी. वह मायके के आगे ससुराल को कुछ न समझती थी. मायके में ही बनी रहती. बेटा भी आएदिन बीवी के साथ वहीं बना रहता. गोविंदजी नौकरों के साथ दिन बिताते. जो वे दे देते उसे खा लेते और पड़े रहते. सिन्हाजी के बेटे व बहू नौकरी वाले थे. सुबहसुबह बहू को औफिस के लिए जाना होता तो काफी काम सिन्हाजी को ही निबटाना पड़ता. दूध लाने से ले कर बच्चों को स्कूल छोड़ने का काम उन्हीं के जिम्मे होता. ऊपर से कुछ चूक हो जाने पर डांट भी सुनने को मिलती. आज वे दोनों पार्क में बैठ कर एकदूसरे का दुख बांट रहे थे.

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