रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने कहा है कि उनके समय बैंक धोखाधड़ी से जुड़े हाई-प्रोफाइल मामलों की एक सूची प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) को भेजी गई थी. पीएमओ से आग्रह किया गया था कि कम से कम एक-दो लोगों के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए. इनमें क्या कार्रवाई हुई, यह नहीं मालूम.
बीजेपी नेता मुरली मनोहर जोशी की अध्यक्षता वाली आकलन समिति को भेजे नोट में राजन ने ये बातें कही हैं. पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम ने समिति के सामने एनपीए के मुद्दे पर राजन की तारीफ की थी. इसके बाद समिति ने राजन का पक्ष जानना चाहा था.
राजन के अनुसार, ‘एनपीए की तुलना में धोखाधड़ी की रकम बहुत कम है, लेकिन बढ़ रही है. मेरे समय फ्रॉड पकड़ने के लिए मॉनिटरिंग सेल बना था. इसका मकसद ऐसे मामलों को पहचान कर जांच एजेंसियों को भेजना था. सिस्टम एक भी बड़े धोखेबाज पर कार्रवाई में नाकाम रहा.’
राजन की राय, जांच एजेंसियों के डर से बैंकर फ्रॉड जल्दी उजागर नहीं करते
राजन सितंबर 2013 से सितंबर 2016 तक तीन साल के लिए आरबीआई गवर्नर थे. अभी वह शिकागो बूथ स्कूल ऑफ बिजनेस में प्रोफेसर हैं.
फ्रॉड रिपोर्टिंग में देरी
ट्रांजैक्शन को फ्रॉड नहीं बताते हैं बैंक अधिकारी
जांच एजेंसियां बैंकों पर आरोप लगाती हैं कि वे धोखाधड़ी के काफी समय बाद उसे उजागर करते हैं. बैंक अधिकारियों को लगता है कि अगर वे किसी ट्रांजैक्शन को फ्रॉड बताएंगे तो जांच एजेंसियां फ्रॉड करने वाले को पकड़ने के बजाय उन्हें परेशान करने लगेंगी.
आरबीआई की भूमिका
कर्ज की क्वालिटी पर सवाल उठा सकता था
रिजर्व बैंक बैंकों के कर्ज की क्वालिटी पर पहले सवाल उठा सकता था. बैंकों की एसेट क्वालिटी की पहले समीक्षा की जा सकती थी. दिवालिया कानून को भी पहले लागू किया जा सकता था. अच्छी बात है कि हाल के वर्षों में ढिलाई की संस्कृति बदली है.
आरबीआई का नॉमिनी
सरकारी बैंकों में रिजर्व बैंक का नॉमिनी गलत
आरबीआई रेफरी की तरह है. बैंक बोर्ड में इसके प्रतिनिधि को कर्ज देने का कोई अनुभव नहीं होता. वह सिर्फ नियमों का पालन सुनिश्चित करने की कोशिश कर सकता है. नॉमिनी से लोगों को यह आभास होता है कि आरबीआई ही बैंक को कंट्रोल कर रहा है.
एनपीए बढ़ने के ये कारण बताए
बैंकर अति-विश्वासी थे, प्रोजेक्ट की छान-बीन नहीं कर रहे थे.
प्रोजेक्ट पर काम रुकने से लागत बढ़ी, इससे कर्ज एनपीए बने.
2006-08 की तेज ग्रोथ के दौरान दिए कर्ज ज्यादा एनपीए बने.
फैसले लेने की धीमी गति से भी ऐसा हुआ.