कालेधन के खात्मे के लिये नोटबंदी के बाद सबसे अधिक किसान परेशान है. जिसे देखकर यह लगता है जैसे सबसे अधिक कालाधन इन गरीब किसानों के पास ही है. किसानों पर नोटबंदी का ऐसा असर हुआ की उनकी धान की फसल औनेपौने दामों में बिक रही है और रबी की फसल के लिये उनको मंहगी कीमत में खाद, बीज और कीटनाशक खरीदना पड़ रहा है. यह हाल केवल एक जिले का नहीं है उत्तर प्रदेश से लेकर हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश, बंगाल, महाराष्ट्र और बिहार तक के किसान इस मुसीबत में फंसे नजर आये यह संकट केवल किसानों की परेशानी का ही सबब नहीं है खेती के काम में लगे मजदूर तक इससे परेशान है. उनकी रोजी संकट में है. मंडियों में आनाज बेचने का काम करने वाले आढतियें, मजदूरी करने वाले पल्लेदार परेशानी में डूबे नजर आये. सबसे अधिक परेशानी में धान और गुड की मंडी है. मंडियों से मिली जानकारियों के अनुसार नोटबंदी के बाद सबसे अधिक प्रभाव मंडियों पर पडा है. यहां का 80 फीसदी कारोबार घट गया है.
मंडियों में धान और गुड को बेचने खरीदने का काम बंद हो गया है. मंडी में सुबह भीड़ जुटती है पर धीरे धीरे यह दोपहर तक खत्म हो जाती है. किसान, आढतियां और पल्लेदार इस बात का समर्थक है कि नोटबंदी सही है पर उसे इस का दुख है कि यह पाबंदी लगाते समय पूरी तैयारी नहीं की गई. अगर मुद्रा बाजार में छोटे नोट पहले से ही चलन में लाये गये होते तो यह परेशानी नहीं होती. इस परेशानी से बचने के लिये किसान आढतियों को सब्जी जैसी खराब होने वाली पैदावार दे देते है. आढतिये उनको पहले पुराने नोट देने का काम करते है, जब किसान पुराने नोट नहीं लेता तो उसे चेक दिया जाता है. कई आढत वाले किसान का नाम अपने रजिस्टर में लिख लेते है और पैसा बाद में देने को कहते है.