प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बहुत जोरजोर से ऐलान कर दिया कि किसानों की आमदनी दोगुनी हो जाएगी, मगर हकीकत में ऐसा होना आसान नहीं है. कमाई कई गुना बढ़ सकती है, लेकिन उस के लिए सही तरीके से कोशिशें करनी होंगी. इस मामले में सरकार को किसानों का पूरा साथ देना होगा. अनुदानों की रकम घटाने की बजाय उस में इजाफा करना होगा.
सरकार का दावा है कि अगले 5 सालों में किसानों की कमाई दोगुनी हो जाएगी. केंद्र सरकार ने अपने हालिया बजट को खेती व किसानों के लिए फायदेमंद बताया है और दावा किया है कि अगले 5 सालों के दौरान किसानों की कमाई दोगुनी हो जाएगी. सरकार के दावे में कितना दम है, इसे एक छोटे से उदाहरण से समझा जा सकता है. उदाहरण के तौर पर सरकार की ओर से हर साल किसानों के लिए कई योजनाएं चलाई जाती हैं, लेकिन उन सभी योजनाओं को आम किसानों तक पहुंचाने का काम ग्राम स्तर पर कृषि की देखरेख करने वाले कर्मचारी का होता है. लेकिन अफसोस की बात है कि हर किसान के पास न तो कृषि की देखरेख करने वाला कर्मचारी पहुंचता है और न ही किसानों को योजनाओं की सही जानकारी मिलती है.
ऐसे में इन किसानों को न तो कोई सलाह देने वाला है और न ही कृषि की देखभाल करने वाले कर्मचारी या अधिकारी खेतों में पहुंच रहे हैं. इस के चलते किसानों को खुद के बूते ही फसलों को रोगों और कुदरती मार से बचाने के उपाय करने पड़ते हैं. अगर कृषि विभाग में पदों की बात की जाए तो ऊपर से लगा कर नीचे तक कई पद खाली पड़े हैं.
कर्मचारियों का हाल
एक छोटे से इलाके चाकसू ब्लाक की ही बात करें तो पूरे ब्लाक में कृषि पर्यवेक्षक के 31 पद ही हैं, जबकि कुल ग्राम पंचायतें 37 हैं. नियमानुसार 1 ग्राम पंचायत पर 1 कृषि की देखभाल करने वाला कर्मचारी होना जरूरी है. लेकिन ब्लाक के आधा दर्जन से भी अधिक कर्मचारियों के जिम्मे 2-2 पंचायतों की जिम्मेदारी है. वहीं कई पद खाली होने के चलते हर कर्मचारी के जिम्मे 10 से 12 गांव आ रहे हैं. ऐसे में एक कर्मचारी का हर किसान के पास पहुंचना मुश्किल हो रहा है. फसल में कौन सा रोग पनप रहा है, किस रोग की रोकथाम के लिए कौन सी दवा का इस्तेमाल करना चाहिए, ये सभी काम कृषि कर्मचारी के जिम्मे हैं, लेकिन कर्मचारी न तो खेतों में जाते हैं और न ही किसानों की परेशानी दूर करते हैं.
कृषि कर्मचारियों का कहना है कि खेतों में जा कर किसानों को सलाह देने के लिए उन के पास सही इंतजाम नहीं हैं. वहीं कृषि अधिकारी भी खेतों में जाने में रुचि नहीं दिखा रहे हैं. जब ‘फार्म एन फूड’ के लेखक द्वारा जयपुर जिले के चाकसू ब्लाक के आसपास के खेतों में पड़ताल की गई, तो किसानों ने बताया कि कृषि अधिकारी व कर्मचारी न तो खेतों में आते हैं और न ही उन को फसल में लगे कीटों व रोगों की रोकथाम संबंधी जानकारी मिल पाती है. किसान सेवा केंद्रों की भी बुरी हालत है. ग्राम पंचायत स्तर पर किसानों को अपने गांव में ही कृषि के बारे में हर तरह की जानकारी देने के लिए किसान सेवा केंद्र बनाए गए हैं. लेकिन इन केंद्रों के भवनों की हालत यह है कि कई जगहों पर भवनों का निर्माण अधूरा पड़ा है, तो कई जगह बने भवनों में कृषि कर्मचारी बैठते ही नहीं हैं.
पंचायतीराज विभाग जयपुर से मिली जानकारी के अनुसार विभाग की ओर से किसानों को एक ही जगह सभी तरह की कृषि संबंधी जानकारी व सुविधाएं देने के लिए प्रदेश के सभी ग्राम पंचायत मुख्यालयों पर किसान सेवा केंद्र बनाने की इजाजत मिली हुई है. हर सेवा केंद्र में करीब 10 लाख रुपए की लागत से 4 कमरे व 2 लौबी बनाई जा सकती हैं. इन केंद्रों पर किसानों की कई तरह की समस्याओं के हल के लिए समयसमय पर कृषि विभाग की बैठकें भी की जा सकती हैं. दिलचस्प बात तो यह है कि प्रदेश की तकरीबन 9800 ग्राम पंचायतों में से अभी तक महज 4500 ग्राम पंचायत मुख्यालयों पर ही भवन बनाए गए हैं. कई ग्राम पंचायतों में तो किसान सेवा केंद्रों की सिर्फ नींव का ही काम हुआ है, तो कई जगह काम ही शुरू नहीं हो पाया है. इस के चलते भी किसान जरूरी जानकारी व सुविधाओं का फायदा नहीं ले पा रहे हैं.
पिछले कुछ सालों में अनुदान से चलाई जाने वाली योजनाओं के चलते किसानों ने बागबानी व खेती के पुराने तरीकों में बदलाव करते हुए नई तकनीक के जरीए खेतीबारी करने में रुचि दिखानी शुरू की थी. किसानों का रुझान बूंदबूंद सिंचाई तकनीक से ले कर ग्रीन हाउसों व पौली हाउसों में नई तकनीक से खेती करने में बढ़ने लगा था. योजनाओं का फायदा ले चुके किसानों की देखादेखी बाकी दूसरे किसान भी इन अनुदानित योजनाओं के जरीए खेती में बदलाव के इच्छुक थे, लेकिन सरकार द्वारा अनुदान की रकम घटा दिए जाने से किसानों की मंशा व रुझान पर पानी फिरता नजर आ रहा है.
लगातार मौसम की मार झेल रहे किसानों को राहत देने के बजाय सरकार ने खेती के कामों से जुड़ी ज्यादातर अनुदानित योजनाओं पर दी जाने वाली सब्सिडी राशि में कटौती कर दी है या फिर उन का लक्ष्य कम कर दिया है. हाईटेक खेती के लिए किसानों को बढ़ावा देने के लिए कृषि विभाग द्वारा चलाई जा रही अनुदानित योजनाओं पर सरकार द्वारा कटौती करने से किसान अब सरकारी मदद से मुंह फेरने लगे हैं.
गौरतलब है कि केंद्र व राज्य सरकार की ओर से अलगअलग योजनाओं पर किसानों को ग्रीन हाउस, पौली हाउस, शेडनेट, सोलर पंप, बूंदबूंद सिंचाई, पाइप लाइन, फव्वारा सिंचाई, फार्म पौंड व डिग्गी निर्माण पर अनुदान दिया जा रहा है. लेकिन इन तमाम योजनाओं पर सरकार ने अनुदान 75 फीसदी से घटा कर 45 से 65 फीसदी तक कर दिया है. ऐसे में अनुदानित योजनाओं में फायदा लेने वाले किसानों की रुचि 60 से 70 फीसदी तक घट गई है.
किसानों ने सब से ज्यादा रुचि बूंदबूंद सिंचाई तकनीक और सोलर पंप योजना को ले कर दिखाई थी, लेकिन अनुदान में कटौती करने से किसानों ने अब इन में रुचि दिखाना छोड़ दिया है. अनुदान में कटौती ने गरीब व छोटे किसानों को निराश किया है. जबकि कृषि अधिकारियों व कृषि कर्मचारियों की मानें तो किसान अब बागबानी के साथसाथ सभी तरह की खेतीबारी में भी तकनीक का इस्तेमाल करना चाहते हैं और इस से उत्पादन भी दोगुना तक बढ़ने की संभावना है, लेकिन अनुदानित योजनाओं की सब्सिडी घटा दिए जाने से इन योजनाओं का लाभ छोटे व गरीब किसानों के बूते से बाहर हो गया है.
अनुदान पर भी कटौती
सरकार द्वारा किसानों को माली मदद देने और नए व वैज्ञानिक तरीके से खेती कर के कम लागत में अधिक उपज लेने के लिए ड्रिप सिंचाई, पाइप लाइन व कृषि पौध संरक्षण यंत्रों सहित कई अनुदानित योजनाएं भी चलाई गई हैं. इन योजनाओं से किसानों को फायदा तो मिला ही है, साथ ही किसानों का इन योजनाओं के प्रति रुझान भी बढ़ा है.
सिंचाई में बूंदबूंद सिंचाई तकनीक व फव्वारा सिस्टम के इस्तेमाल से जहां पानी की बचत होती है, वहीं कृषि यंत्रों से कम समय में अच्छा काम हो जाता है. लेकिन सरकार द्वारा चलाई जाने वाली व अनुदानित इस कृषि यंत्र योजना पर भी सरकार ने कटौती कर दी है.
घट रहा खेती का रकबा
मुख्य सड़कों व संपर्क सड़कों के आसपास की किसानों की कृषि लायक जमीनों पर हजारों कालोनियां बन गई हैं. इन कालोनियों में कच्चीपक्की सड़कें बना कर व बिजली के खंभे लगा कर भूकारोबारी लोगों को प्लाट बेच रहे हैं और कालोनियों के कई तरह के नक्शे बना कर कालोनाइजर जमीनों की खरीदफरोख्त में जुटे हैं. इस के चलते जहां खेती का रकबा घट रहा है, वहीं किसानों की खेती में रुचि घटती जा रही है. इतना ही नहीं कई भूमाफियाओं ने किसानों के मवेशियों के लिए आरक्षित चरागाहों समेत नालों व पानी के बहाव क्षेत्रों की जमीनों पर भी अवैध कालोनियां बना दी हैं.