विज्ञापन पत्रपत्रिकाओं की जान होते हैं. यदि विज्ञापन नहीं हों तो अखबार और पत्रिकाएं 10 गुना अधिक कीमत पर भी उपलब्ध नहीं हों. यहां भी प्रसार संख्या महत्त्वपूर्ण है. जिस की प्रसार संख्या जितनी अधिक होगी उस की विज्ञापन की दर भी उसी दर से बढ़ेगी. प्रसार और पाठक संख्या का प्रमाणपत्र पत्रपत्रिकाओं को सरकारी एजेंसी से मिलता है जिस के बल पर बड़ेबड़े होर्डिंग दावा करते हुएकहते हैं कि देश की सर्वाधिक प्रसार संख्या वाला समाचारपत्र या सब से अधिक पढ़ा जाने वाला अखबार आदि.
दरअसल, पत्रिकाओं की प्रसार संख्या उन के विज्ञापन का आधार होती है. इधर, टैलीविजन चैनलों की संख्या तेजी से बढ़ रही है. उन्हें कितने लोग देख रहे हैं या उन्हें साप्ताहिक स्तर पर मिली टीआरपी के आधार पर विज्ञापन मिलते हैं और विज्ञापन की दर उसी आधार पर तय होती है. विज्ञापनदाता को अपना सामान बेचना होता है, इसलिए वह ज्यादा से ज्यादा ग्राहकों तक अपने विज्ञापन के जरिए पहुंचना चाहता है और इस के लिए वह टैलीविजन, समाचारपत्रपत्रिकाओं का सहारा लेता हैं.
विज्ञापन दुनिया की प्रमुख कंपनी डाबर और नेस्ले ने साप्ताहिक आंकड़ा नहीं मिलने के कारण 8 टीवी चैनलों के विज्ञापन बंद कर दिए हैं. उन का कहना है कि टीवी कंपनियों की साप्ताहिक दर्शक संख्या यानी टैलीविजन औडियंस मेजरमैंट का डाटा नहीं मिल रहा है. टैम मीडिया रिसर्च का डाटा नहीं मिलेगा तो कंपनी टीवी चैनलों को विज्ञापन देना बंद कर देगी. टीवी चैनलों में इस निर्णय से हड़कंप मचा हुआ है. चैनलों को करोड़ों रुपयों का नुकसान हो रहा है. इन कंपनियों का कहना है कि टैम 14 साल से देश में टीवी दर्शकों का आंकड़ा प्रस्तुत करता रहा है और उस के आंकड़ों के आधार पर ही विज्ञापन देने की योजना बनाई जाती रही है लेकिन इधर टैम का आंकड़ा नहीं आया तो विज्ञापन देने के निर्धारण में दिक्कत खड़ी हो गई.
टैम का कार्य अब ब्रौडक्रास्ट औडियंस रिसर्च कौंसिल को मिलने की बात चल रही है लेकिन कौंसिल को काम की शुरुआत करने में अभी महीनों लगने की संभावना है. बहरहाल, पाठक और दर्शक या श्रोता किसी मीडिया संस्थान के लिए कितने महत्त्वपूर्ण हैं, इस का अंदाजा इन विज्ञापन कंपनियों के फैसले से लगाया जा सकता है. इसलिए आम आदमी की ताकत का सदैव सम्मान किया जाना जरूरी है.