लघु एवं मझोले उद्योगों को ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए प्रमुखता दी जा रही है. इस के लिए अगले 5 वर्ष में सरकार की, इस उद्योग को मजबूत बनाने के लिए करीब डेढ़ करोड़ युवाओं को प्रशिक्षित करने की योजना है. देश को कुटीर उद्योगों के जरिए आत्मनिर्भर बनाने की सरकार की यह महत्त्वपूर्ण पहल है. उस का मानना है कि सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी में इस की हिस्सेदारी 37.5 फीसदी है जबकि इस का निर्यात का हिस्सा 40 फीसदी है. इस के लिए सरकार ने अपनी ऋण नीति में बदलाव भी किया है ताकि इन उद्योगों को बढ़ावा देने में किसी तरह की आर्थिक दिक्कत पैदा न हो. इस क्षेत्र में कुशल श्रमिकों को रोजगार मिले, इस के लिए डिजिटल रोजगार एक्सचेंज बनाया गया है. मुद्रा बैंक स्थापित कर के इस क्षेत्र में निवेश को बढ़ावा देने का काम किया गया है.

सरकार का मानना है कि लघु और मझोले उद्योगों को बढ़ावा देने से अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान की जा सकती है. चीन इस का उदाहरण है. उस ने इसी प्रक्रिया को अपनाते हुए दुनिया के विभिन्न देशों में अपनी मौजूदगी दर्ज कराई है और भारत जैसे कई देशों के कुटीर उद्योगों के समक्ष संकट खड़ा किया है. यहां यह देखना जरूरी है कि चीन जिस शिद्दत के साथ अपने लघु उद्योग पर ध्यान दे रहा है, भारत के लिए उस स्तर पर काम करना थोड़ा कठिन है क्योंकि हमारे यहां भ्रष्टाचार जैसा खतरनाक वायरस मौजूद है. हर लेनदेन में भ्रष्टाचार सब से बड़ा बाधक है. निर्माण कार्यों में रिश्वत का प्रतिशत तय है और यदि उस का भुगतान नहीं होता है तो ठेकेदार को दरदर की ठोकरें खानी पड़ सकती हैं. ठेकेदारों का साफ कहना है कि उन्हें कुल भुगतान का 30 से 40 फीसदी चढ़ावा अवैधरूप से संबद्ध विभाग के सरकारी कर्मचारियों को निश्चित रूप से देना पड़ता है. ऐसे में इन से काम को ले कर ईमानदारी की उम्मीद कैसे की जा सकती है. इसी तरह से लघु और मझोले उद्योगों को बढ़ावा देते समय भ्रष्टाचार को रोकने का उपाय नहीं किया जाता तो इस योजना की सफलता की उम्मीद करना बेमानी होगी.

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