देश में तेजी से शहरीकरण हो रहा है. गांव खाली हो रहे हैं और शहरों में आबादी के साथ ही बेरोजगारों की भीड़ बढ़ रही है. शहरों के आसपास खेती की जमीन पर बहुमंजिली इमारतें खड़ी हो रही हैं. दिल्ली से हरिद्वार, मुरादाबाद, आगरा, जयपुर, चंडीगढ़ जिस राजमार्ग पर जाएंगे सड़कों के दोनों तरफ मकान उगते नजर आएंगे.
आर्थिक उदारवादी व्यवस्था के बाद शहरों की तरफ तेजी से पलायन हुआ है और अर्थव्यवस्था के साथ ही शहरी आबादी में भी बूम आया है. आवासविकास मामलों के केंद्रीय मंत्रालय का कहना है कि देश के शहरों में करीब 2 करोड़ घरों की जरूरत है. शहर फैल रहे हैं और इस के मुख्य भूभाग पर धनाढ्य वर्ग का कब्जा है.
कमजोर वर्ग शहरों के बाहरी इलाकों में आवास तलाश रहा है. शहरों की तरफ इसी वर्ग का तेजी से पलायन हो रहा है और उसे ही आवास की सब से ज्यादा जरूरत है. बड़े बिल्डर नएनए प्रोजैक्ट ला रहे हैं और हजारों की तादाद में आवास बना रहे हैं लेकिन उस से निम्न आयवर्ग के लोगों को फायदा नहीं हो रहा है.
बिल्डरों की परियोजनाओं के आवास इस वर्ग की पहुंच से बाहर हैं, इसलिए प्रौपर्टी बाजार सुस्त पड़ा है. उस के ग्राहक मध्यम आयवर्ग के लोग हैं लेकिन डैवलपर्स का जोर लग्जरी घरों के निर्माण पर है जिन में उन्हें ज्यादा फायदा होता है.
पहले हर शहर में गरीबों को सस्ती दर और सरल किस्तों पर आवास उपलब्ध कराने के लिए सरकारी विकास प्राधिकरण बनाए गए जिन्होंने ठेकेदारों और इंजीनियरों की धांधली से सही, गरीबों के लिए मकान बनाए. मकान चाहने वाले ज्यादा लोग होते थे, इसलिए लौटरी सिस्टम से घर आवंटित होते थे.
अब इस तरह की परियोजनाएं लगभग बंद हो गई हैं और बिल्डरों के हाथ में भवन निर्माण चला गया है. परिणाम यह हुआ कि आज महानगरों के सस्ते मकानों में सिर्फ 7 फीसदी और लग्जरी मकानों में 130 फीसदी का इजाफा हुआ है. शहरों में विकास का ऐसा मौडल तैयार किया जा रहा है कि गरीब महानगरों से भागने को मजबूर हों और वे दूरदराज में रह कर ही अभाव का जीवन जिएं व अपनी अगली पीढि़यों को भी शहर भेजने की भूल न कर सकें.