गरमी तेज पड़ रही है और चारों तरफ बिजली के लिए हाहाकार मचा हुआ है. गांव में तो बिजली एक सपना बन गई है. शहरों में भी बुरा हाल है. जबरदस्त बिजली कटौती के कारण आम उपभोक्ता परेशान है ही लेकिन बिजली के भुगतान की लगातार बढ़ रही दर से तो उस का पसीना सूखने का नाम नहीं ले रहा है. बिजली संकट से निबटने के लिए सरकार के पास फिलहाल कोई उपाय नहीं है. परमाणु ऊर्जा संयंत्रों की शुरुआत की गई है लेकिन उन में जोखिम ज्यादा है. इस क्रम में अक्षय ऊर्जा ही बेहतर विकल्प है. लेकिन ऐसा लगता है कि उस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जा रहा. पन बिजली, सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा कुछ ऐसे विकल्प हैं जिन पर सरकार ध्यान दे तो संकट काफी कम किया जा सकता है. सरकार की ही उदासीनता है कि टाटा पावर जैसे बड़े औद्योगिक घराने अक्षय ऊर्जा के उत्पादन के लिए विदेश भाग रहे हैं जबकि देश को उस की सख्त जरूरत है. टाटा पावर अफ्रीकी बाजार के अक्षय ऊर्जा के कारोबार की संभावना तलाश रहा है जबकि इंडोनेशिया और भूटान में तो उस का यह कारोबार अच्छा चल रहा है. सवाल यह है कि देश ऊर्जा संकट से जूझ रहा है और इस दिशा में राहत पहुंचाने वाली बड़ी कंपनियां बाहर भाग रही हैं. निश्चित रूप से सरकार को निजी क्षेत्र की बड़ी कंपनियों को स्वदेश में ही ऊर्जा, विशेषकर अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में काम करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए.

 

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