स्कूलों के बाहर बड़ेबड़े संस्थानों में दाखिले के लिए एंटरेंस टैस्ट देने वाले छात्रों और उन के साथ अभिभावकों की भीड़ तो आप सभी ने कई बार देखी होगी लेकिन हाल ही में देश के एक बड़े संस्थान में एंटरेंस परीक्षा के मौके पर जो देखने को मिला वह एक अलग और अनोखा अनुभव था. पत्रकार के नजरिए से जो देखा वह आप सब के साथ साझा करना चाहती हूं. स्कूल के बाहर लगी छात्रों और अभिभावकों की भीड़, सभी की आंखों में एक ही सपना था कि उच्च प्रतिष्ठित संस्थान की एंटरेंस परीक्षा में कामयाबी मिल जाए. वहां कुछ ऐसे लोग भी थे जो अभिभावकों व छात्रों के इस सपने को भुनाने की फिराक में थे.

यहां हर कोई अपनेअपने मिशन पर तैनात था. भीड़ में कुछ लोग शिक्षा की मार्केटिंग में लगे थे. दरअसल, ये लोग अपनेअपने संस्थान का विज्ञापन करने के लिए छात्रों और अभिभावकों को ब्रोशर्स व बुकलैट्स बांटने में व्यस्त थे. पहली नजर में तो माजरा कुछ खास समझ नहीं आया लेकिन जैसे ही छात्र परीक्षा देने के लिए परीक्षा हौल में चले गए और भीड़ कम हो गई तो मैं ने वहां के माहौल को समझने की कोशिश की और जल्द ही मुझे पूरा माजरा समझ में आ गया. दरअसल, ब्रोशर्स बांटते लोग कोचिंग सैंटरों, प्राइवेट शिक्षा संस्थानों के नुमाइंदे थे जो पूरे लावलश्कर के साथ अपने मिशन ‘एजुकेशन मार्केटिंग’ पर आए हुए थे. ये वौलंटियर्स अपने ब्रोशर्स के साथ लुभावने व आकर्षक विज्ञापनों के जरिए अभिभावकों को आकर्षित करने की भरपूर कोशिश में लगे थे.

शिक्षा की इस मार्केटिंग में काउंसलिंग करने वाले संस्थान, प्राइवेट शिक्षण संस्थान, कोचिंग संस्थान सब रंगबिरंगे ब्रोशर्स, आकर्षक गुड्डी बैग लिए अपनी मार्केटिंग टीम के साथ वहां मौजूद थे. सभी का एकमात्र उद्देश्य था अधिक से अधिक अभिभावकों को अपने संस्थान की ओर आकर्षित करना ताकि वे अपने बच्चों की कोचिंग, काउंसलिंग और ऐडमिशन उन के संस्थानों में करवाएं. परीक्षा के लिए आए हजारों छात्रों में से अगर कुछ छात्रों को भी वे अपने संस्थान में ऐडमिशन के लिए राजी कर पाए तो उन का आज का मिशन पूरा हुआ समझो. क्योंकि ऐसे अनेक परीक्षा केंद्र होते हैं जहां जा कर मार्केटिंग करने वाले ये नुमाइंदे अपने संस्थान की पब्लिसिटी करते रहते हैं. दूसरे संस्थानों से कंपीटिशन करते ये वौलंटियर्स छात्रों का पूरा रिकौर्ड अपनी डाटा शीट में ले रहे थे ताकि परीक्षा परिणाम के बाद बारबार इन छात्रों व अभिभावकों को मेल भेज कर, एसएमएस या फोन कर के उन्हें अपने संस्थान में ऐडमिशन के लिए तैयार किया जा सके. इस सब के बीच अभिभावकों की स्थिति बेचारगी वाली थी. वे सभी ब्रोशर्स को सहेज कर रख रहे थे कि पता नहीं कब इन की शरण लेनी पड़ जाए.

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