शहरीकरण का असर गांवों और शहरों दोनों पर पड़ रहा है. खेती की जमीन धीरेधीरे खत्म होती जा रही है. शहरों के करीब ऐसी कालोनियां तेजी से बढ़ रही हैं, जिन को न गांवों में गिना जा सकता है और न शहरों में. शहरों का गंदा पानी यहां जमा होता है, जिस से कई तरह की बीमारियां शहरों तक पहुंचने लगती हैं. शहरों और गांवों के बीच बनी इस तरह की कालोनियों की समस्या खेती की जमीन भी है. तमाम किसानों की जमीनों पर कालोनियां बन गईं, इस के बाद भी इन जगहों पर खेती के लिए कुछ न कुछ खाली जमीन भी पड़ी मिलती है. जरूरत इस बात की आ गई है कि इस जमीन पर खेती को बढ़ावा दिया जाए, जिस से शहरों और गांवों के बीच बसी कालोनियों में खाली पड़ी जमीनों का सही इस्तेमाल किया जा सके.

दक्षिण भारत के बेंगलूरू और चेन्नई जैसे शहरों के आसपास इस तरह के प्रयोग हो रहे हैं. ऐसी जमीनों पर किसान अब रोजगार करने लगे हैं. इस तरह के किसान फूल, फल और सब्जी की खेती कर के शहरों में बेच रहे हैं. इस से इन कालोनियों में जलभराव की परेशानी दूर हो गई और यहां रहने वाले किसानों को रोजगार भी मिलने लगा. उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में इस तरह का प्रयोग शुरू किया गया. इस से गोरखपुर शहर के पास जलभराव की परेशानी दूर हो गई. यहां के किसानों ने अपना समूह बना कर खेती से होने वाली पैदावार मंडी में बेचनी शुरू कर दी है. इस से किसानों को मंडी से ज्यादा पैसा मिलने लगा है.

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