आजकल खेतीबारी में हो रही रिसर्च से खाद, बीज, दवा और तकनीक में तरक्की जारी है, जिस से खेती की क्वालिटी व पैदावार में भी काफी इजाफा हो रहा है. लेकिन देश में अभी भी कुछ किसान ऐसे हैं, जो इन नई सहूलियतों में होने वाले खर्चों से बचने के लिए खेती के पुराने तरीकों को ही अपनाए रखना चाहते हैं.
वहीं कुछ किसान ऐसे भी हैं, जिन्होंने समय के साथ चल कर नए तरीकों को अपनाया. नतीजतन, इन किसानों ने अपने खेतों को कारोबार जैसा बना दिया है और कम खर्च में ही पहले से अच्छी क्वालिटी की ज्यादा पैदावार पा रहे हैं.
इन्हीं नई तकनीकों में से एक है ड्रिप इरिगेशन सिस्टम, जो बूंदबूंद कर के सभी फसलों को बराबर से और उन की जरूरत के मुताबिक पानी देता है. यह पुराने तरीकों के मुकाबले बहुत कम पानी में ही कई गुना ज्यादा उत्पादन देता है. साथ ही, खेती में होने वाले कई तरह के खर्चों को भी कम कर देता है. यानी एक बार होने वाले थोड़े से ज्यादा खर्च के बाद हमेशा के लिए हर तरह से ज्यादा मुनाफा.
पैसों की बचत
इस तकनीक से सिंचाई करने से 60 से 70 फीसदी पानी की बचत होती है. इस सिस्टम को लगवाने के बाद किसानों ने महसूस किया कि ड्रिप इरिगेशन से और भी फायदे हैं. सरकार अगर इस के लिए सब्सिडी नहीं देती, तब भी वे इसे लगवाते, क्योंकि कुछ फसलों के बाद होने वाली बचत और फायदे से इस का पूरा खर्च निकल आता है.
खजोड़ मल कहते हैं कि यहां खेतों में पानी देने के लिए मेंड़ बनवाने में मजदूरों पर काफी पैसा खर्च होता है. इस के अलावा मेंड़ों पर खरपतवार उग आते हैं, जिन की निराईगुड़ाई के लिए अलग से खर्चा करना पड़ता है. वहीं ड्रिप सिस्टम से पैसों की बचत होती है. इस के अलावा फसल 15-20 दिन पहले पक कर तैयार हो जाती है. सभी फसलों को बराबर और जरूरत के मुताबिक पानी मिलने से सभी पौधों में ज्यादा उत्पादन होता है. यानी ड्रिप इरिगेशन से 20 से 30 फीसदी खर्च की बचत होती है.
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