थिएटर से अपने करियर की शुरुआत करने वाले अभिनेता और निर्देशक मकरंद देशपांडे अपनी ओरिजिनल एक्टिंग के लिए जाने जाते हैं. उन्होंने हिंदी के अलावा कन्नड़, मराठी, तेलगू और मलयालम फिल्मों का भी निर्देशन किया है. थिएटर इंडस्ट्री में उनका बहुत बड़ा योगदान रहा है.

उन्होंने 50 छोटे नाटकों और 40 बड़े नाटकों में काम किया है. चरित्र अभिनेता के रूप में उन्होंने अधिकतर फिल्में में अपनी एक अलग पहचान बनायी है. जंगली, सरफ़रोश, स्वदेश, मकड़ी, डरना जरुरी है आदि फिल्मों में उन्होंने बहुत अच्छा काम किया. जिसे दर्शकों ने काफी पसंद किया. बचपन से ही अभिनय की इच्छा रखने वाले मकरंद को आज भी बच्चों की फिल्मों और नाटकों में काम करना पसंद है.

अभी वे एंड टीवी पर प्रसारित शो विक्रम बेताल की रहस्य गाथा में बेताल की भूमिका निभा रहे हैं. उनसे मिलकर बातचीत करना रोचक था. पेश हैं कुछ अंश :

इस शो को करने की ख़ास वजह ?

इस शो के ज़रिये मैं अपने बचपन को देखता हूं. जब मैं बच्चों की किताबें और कहानियां पढ़ा करता था. इस प्रकार जो मैं अब तक पढ़ रहा था. उसी को अभिनय कर रहा हूं. बचपन की कहानियां जिसे किसी और ने कभी किया था, आज मुझे उसे करने का मौका मिल रहा है. ये मेरे लिए एक अच्छी बात है.

हमारा अनुभव रंगमंच का है जिसमें आप कुछ भी कर सकते हैं और यही मौका मुझे यहां बेताल को एक अलग रूप में प्रस्तुत करने का मिल रहा है. इसमें मैं मौखिक नहीं आंगिक अभिनय कर रहा हूं. जो बहुत ख़ास और अलग है.

बच्चों के लिए फिल्में कम हैं और जो बनती भी हैं वो कुछ खास नहीं होतीं, आपके हिसाब से कहां कमी है ?

इसके लिए हमारी अर्थव्यवस्था जिम्मेदार है. बीच में कुछ फिल्में बनी भी थीं. एक फिल्म मकड़ी मैंने की थी. मेरे हिसाब से इसका कारण पैसे की कमी है. लेकिन टीवी पर बच्चों की फिल्में बन सकती हैं. कई बार फिल्में बनने पर भी बच्चे उसे देखने नहीं जाते. असल में बच्चों को उनके माता पिता फिल्मों तक ले जाते हैं. लेकिन महंगे टिकट होने की वजह से वे उन्हें नहीं ले जाते. लेकिन हौलीवुड की फिल्मों में वे उन्हें ले जाते हैं इसका अर्थ ये निकलता है कि वैल्यू फौर मनी अंग्रेजी फिल्मों में उन्हें अधिक दिखता है. अच्छी कहानियों और अच्छे बजट की यहां जरुरत है.

आप अपनी जर्नी को कैसे देखते हैं, क्या कोई मलाल रह गया है ?

जर्नी तो ठीक ही थी, लेकिन जब मैं पीछे मुड़कर देखता हूं तो ऐसा लगता है कि जिन फिल्मों के लिए मैंने ना कही थी, उसे कर लेनी चाहिए था. मसलन फिल्म मुन्नाभाई एम बी एस में सर्किट की भूमिका कर लेता या फिल्म लगान कर लेता, तो कुछ फर्क पड़ता या नहीं पड़ता ये कहना संभव नहीं, क्योंकि तब मैं थिएटर कर रहा था. अब लगता है कि उन फिल्मों को कर लेना चाहिए थी. हालांकि रंगमंच ने मुझे बहुत कुछ दिया है. जहां मन और मस्तिष्क दोनों को ही संतुष्टि मिलती है.

आजकल फिल्मों का दौर बदल चुका है, इस दौर को आप कैसे लेते हैं?

बदलाव फिल्मों में काफी हुआ है, क्योंकि आज हर एक कलाकार के लिए काम है, जो पहले नहीं था. मुझे याद आता है कि जब मैंने अभिनय शुरू किया था. उस समय फ़ोन नहीं थे. इससे किसी से मिलना उसका समय लेना बहुत मुश्किल होता था. ऐसे में कई मौके आप तक पहुंचे बगैर ही चले जाते थे. लेकिन पहले लोगों में सहनशीलता अधिक थी. जो अब नहीं है.

पहले फिल्मों में काम करने वाले एक परिवार में बंध जाते थे. जो अब नहीं है. इसकी वजह क्या मानते हैं?

अभी सब कुछ बंटा हुआ है. कई किसी से एक धारावाहिक में काम करते हुए भी नहीं मिल पाते. आज लोग अधिक प्रोफेशनल हो चुके हैं. कलाकार एक शो से खाली होकर दूसरे शो के लिए चले जाते हैं.

आज लोगों की गति बढ़ गयी है. उनके जीवन में शांति के दो पल अब नहीं रह गए हैं कि वे अपने बारे में कुछ सोच सकें. जब भी वे फ्री होते हैं तो फ़ोन पर लग जाते हैं.

आगे की योजनायें क्या हैं ?

इस शो के अलावा एक मराठी और हिंदी फिल्म कर रहा हूं.

“मी टू” को लेकर आजकल बहुत चर्चा है. इस तरह की बातें कलाकारों के लिए कितनी घातक हैं ?

मेरे हिसाब से ये सब बातें किसी भी इंडस्ट्री के लिए सही नहीं है. लेकिन मुद्दा ये है कि ऐसी बातें कब और कैसे बोलनी चाहियें, इसे कानून को समझना पड़ेगा. ये सही है कि अगर आपने अपने बचाव के लिए मर्डर किया है, तो वह इंसान बच सकता है, लेकिन अगर आपने सोच समझकर किसी की हत्या की है, तो उसे सजा मिलनी ही चाहिए. उसी प्रकार ये बातें तभी बताई जानी चाहिए थीं. जब ये हुआ था. इतना सोच समझने के बाद नहीं. जब आपके साथ कुछ भी गलत होता है तो तुरंत उसे सबके सामने लाना अच्छा होता है.

आप एक लेखक भी हैं किस तरह का लेखन अधिक करते हैं?

मैं फिक्शन वाले नाटक अधिक लिखता हूं, जिसमें ह्यूमन रिलेशन की बातें अधिक होती हैं.

रिश्तों की अगर हम बात करें तो उसके मायने आजकल बदल चुके हैं. आप इस बारे में क्या सोचते हैं?

रिश्तों को रिलेट करना बहुत जरुरी है. जिसकी आजकल के यूथ में कमी होती जा रही है. रिश्ते हर किसी के जीवन में जरुरी हैं और इसे निभाना पड़ता है. आज अगर हमारा कोई वर्कर बीमार पड़ता है, तो उसे हटाने के बजाय उसे अच्छे डाक्टर के पास ले जाने की जरुरत है और ये आजकल कोई करना नहीं चाहता.

आप अपनी कामयाबी का श्रेय किसे देते हैं?

मेरी कामयाबी में मेरी मां का सबसे बड़ा हाथ है, जिन्होंने मुझे काम करने की आज़ादी दी. इसके बाद मैंने जिसे सही समझा उसे करता गया.

सफलता और असफलता आपके जीवन में क्या मायने रखती है?

जिसे करने में आपको आसानी हो, वह सफलता है और जिसे करने पर आपको तृप्ति न मिले वह असफलता है.

अगर आपको कोई सुपर पावर मिले, तो क्या करना चाहेंगे?
सब एक दूसरे को प्यार करें और प्यार से रहें, इसे बांटने की कोशिश करूंगा.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...