Pankaj Udhas Death: ‘चिट्ठी आई है...’ गीत को सुनते ही गजल गायक पद्मश्री पंकज उधास का चेहरा सामने आ जाता है, जिन का आज पैंक्रियाज कैंसर की बीमारी के बाद निधन हो गया. वे पैंक्रियाज कैंसर से जूझ रहे थे. लता मंगेशकर को अपना गुरु मानने वाले अपनी मखमली आवाज के लिए मशहूर गजल गायक पंकज उधास एक बेहतरीन गायक ही नहीं बल्कि बेहतरीन इंसान भी थे. वे हमेशा प्रयास करते थे कि किसी भी गरीब का नुकसान न होने पाए. वे हमेशा लोगों की मदद के लिए तैयार रहते थे.
उन्होंने अपनी संगीत बिरादरी अर्थात गायकों, संगीतकारों व गीतकारों को रौयलिटी दिलाने की लड़ाई भी लता मंगेशकर, आशा भोंसले, संजय टंडन, शैलेंद, शान व सोनू निगम के साथ मिल कर सदा लड़ते रहे. जब इंडियन सिंगर्स राइट एसोसिएशन यानी कि इसरा का गठन नहीं हुआ था, सिर्फ एक विचार आया था, तभी से पंकज उधास इस के लिए कार्य करने लगे थे.
अब जबकि ‘इसरा’ और ‘इसामरा’ के चलते गायक, संगीतकार को रौयलिटी मिलने लगी है, तो इस के लिए पंकज उधास के अद्वितीय योगदान को भुलाया नहीं जा सकता. वे अपनी जिंदगी के अंतिम समय यानी कि आज भी ‘इसरा’ व ‘इसामरा’ के निदेशक मंडल के सदस्य थे.
 गायकों व संगीतकारों के लिए निस्वार्थ भाव से किया काम
मुझे आज भी याद है, 23 अप्रैल, 2023 का दिन जब इंडियन सिंगर्स राइट एसोसिएशन यानी कि ‘इसरा’ और संगीत कंपनियों की संस्था इंडियन म्यूजिक इंडस्ट्री यानी कि आईएमए के बीच केद्रीय मंत्री पीयूष गोयल की मौजूदगी में गायकों व संगीतकारों की रौयलिटी को ले कर समझौते पर हस्ताक्षर हुए थे. तब उस दिन पंकज उधास कैंसर से पीड़ित होने के बावजूद ‘मास्क’ लगा कर पहुंचे थे, जबकि इसरा की मानद चेयरमैन आशा भोंसले इस खास अवसर पर नहीं पहुंची थीं. उन के लिए 2 घंटे इंतजार किया गया, बाद में बताया गया कि वे बीमार हैं, इसलिए नहीं आ पाईं. पर कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी से जूझते हुए भी पंकज उधास वहां पर समय से पहुंच गए थे. उस वक्त उन्होंने हम से कहा था, ‘बीमारी तो अपना काम करती रहती है, इलाज चल रहा है. पर जिस हक की लड़ाई हम अपनी गुरु लता मंगेशकर के साथ मिल कर 1991 से अब तक लड़ते आए हैं, वह अब हम ने जीत ली है. आज ऐतिहासिक समझौता हो रहा है तो आज मैं अपने साथी गायकों व संगीतकारों के साथ कैसे मौजूद न रहता. मैं ने बीमारी के बावजूद इस ऐतिहासिक समझौते का साक्षी बनने का फैसला करते हुए आया हूं. मैं अपने उत्तरदायित्व से मरते दम तक मुंह नहीं मोड़ सकता.’
उसी दिन पंकज उधास ने हम से आगे कहा था, ‘मैं इस फैसले/समझौते को ऐतिहासिक ही कहूंगा क्योंकि जब से हम पैदा हुए हैं तब से हम यह बात सुन रहे थे कि गायकों को रौयलिटी मिलनी चाहिए. पर हम ये बातें सिर्फ सुन रहे थे. आज भी मन मानने को नहीं हो रहा है कि यह बात सच हो गई है जिस के लिए हम 1991 से लड़ाई लड़ रहे थे. हम ने जिस ख्वाब को वर्षों पहले देखा था, वह आज पूरा हो गया है. इस के लिए मैं संजय टंडन व गायकों का भी आभारी हूं कि आज गायक समुदाय को हम एक ऐतिहासिक मुकाम पर ले आए हैं.’

 इसरा और इसामरा के सीईओ संजय टंडन ने क्या कहा

पंकज उधास के निधन की खबर से सब से अधिक दुखी इसरा और इसामरा के सीईओ संजय टंडन कहते हैं, ‘‘मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा है कि पंकजजी अब हमारे बीच नहीं हैं. वे तो संगीत से जुड़े लोगों को रौयलिटी दिलवाने में सब से बड़े संबल थे. पंकजजी मेरे निजी दोस्त हैं. वे तो रौयलिटी की लड़ाई के पहले दिन से, जब इसरा का गठन नहीं हुआ था, तब से यानी कि 1991 से आज तक हमारे साथ थे. जहांजहां हम चाहते थे कि वे हमारे साथ चलें, जहां भी हम अपना प्रेजैंटेशन देने जाते थे, वहांवहां वे हमारे साथ होते थे. वे अपने अनुभवों से इतना योगदान देते थे कि कई बार हम अचंभित हो जाते थे कि उन्हें रचनात्मक पहलुओं के साथ ही कानून व समाजिकता का इतना ज्ञान कैसे है.
“कला के हिसाब से उन का जो योगदान रहा है उस की भरपाई नहीं हो सकती. अंतिम समय तक वे इसरा यानी कि ‘इसामरा’ में पैशिनेट थे. ऐसे लोग कम ही मिलेंगे. मुझे दुख इस बात का है कि जितने भी गुणी लोग हैं वे हम से बिछुड़ते जा रहे हैं. कुछ समय पहले हमारे निदेशक एस पी बाला सुब्रमण्यम हमें छोड़ कर चले गए. पंकजजी आज भी हमारे निदेशक हैं. वे हमेशा चाहते थे कि कलाकार को हर हाल में रौयलिटी मिलनी चाहिए. वे हंसमुख व मैच्योर थे. वे अपने विचारों से हमें अवगत कराते हुए एक ही बात कहते थे कि ऐसा कुछ नहीं होना चाहिए जिस से किसी गरीब कलाकार का नुकसान हो जाए. ऐसे लोग बहुत कम मिलते हैं जो अपने बारे में सोचने के बजाय सभी के हित के बारे में सोचते हों.
“मैं तो 3 दिनों पहले ही उन से मिलने उन के घर पर गया था. तब ढेर सारी बातें हुई थीं. उस वक्त भी संगीत जगत को बेहतर बनाने को ले कर कई सलाह दी थीं. उन की आदत थी कि हर बार वे यह जरूर कहते थे कि यह मेरी निजी राय है, बाकी आप समझ लो. इसलिए मुझे यकीन नहीं हो रहा है कि अब वे हमारे बीच नहीं हैं.”

 जब  गायिका मंजू भाटिया की बात का बुरा नहीं माना

पंकज उधास की विनम्रता का कोई भी इंसान कायल हो सकता है. जब वे गजल गायकी में चरम पर थे, उस वक्त भी अपने बारे में कही गई बात का वे बुरा नहीं मानते थे. बौलीवुड में आम राय है कि हर गजल गायक शराब पी कर ही स्टेज पर गजल गायकी करने बैठता है. और पंकज उधास ने शराब को ले कर जितनी भी गजलें लिखीं, वे सभी आज भी सर्वाधिक लोकप्रिय हैं.
पंकज उधास ने तो भजन भी गाए हैं. एक बार उन दिनों उभरती हुई गजल गायिका मंजू भाटिया, जो कि उस दौर के भजन टीवी चैनलों में स्टार बनी हुई थी, ने एक पत्रकार से बातचीत करते हुए कह यों ही दिया था कि यहां तो गजल छोड़िए, भजन भी शराब पी कर गाते हैं. उस पत्रकार ने मंजू भाटिया के इंटरव्यू में इस बात को अपनी पत्रिका में छाप दिया कि पंकज उधास तो गजल के साथ ही भजन भी शराब पी कर गाते हैं. जब मंजू भाटिया ने पढ़ा तो वे बहुत परेशान हो गईं. उन्हें लगा कि जिस तरह से छापा गया, वैसा कहने का उन का कोई मकसद नहीं था और अब पंकज उधासजी बुरा मान जाएंगे. मंजू भाटिया ने पत्रकार को फोन किया कि मैं ने यह बात छापने के लिए नहीं कहा था. अब मैं पंकजजी का सामना कैसे करूंगी.
पत्रकार ने कह दिया कि पंकज जी बुरा नहीं मानेंगे. लेकिन मंजू भाटिया को ग्लानि हुई और परेशान हो कर उन्होंने पंकज उधास को फोन लगाया. तब तक पंकज उधास को इस इंटरव्यू की भनक लग चुकी थी. मंजू भाटिया पंकज उधास से कुछ कहतीं, उस से पहले ही मंजू की घबराई हुई आवाज सुन कर पंकज उधास ने कहा, ‘आप इतना घबराई व डरी हुई क्यों हैं. मैं ने इंटरव्यू पढ़ा. मुझे बुरा नहीं लगा. यहां इस तरह की बातें चलती रहती हैं. मेरे बारे में पत्रकार अकसर बुरा लिखते रहते हैं. आप बिलकुल फिक्र न करें.’
पंकज उधास की बातें सुन कर मंजू भाटिया को बड़ा सकून मिला और उन्होंने यह बात खुद फोन कर उस पत्रकार को बताई थी कि उन्होंने अपनी जिंदगी में ऐसा कलाकार नहीं देखा.
पंकज उधास मैच्योर, हंसमुख और ऐसे विनम्र इंसान थे, जो कि हर किसी की मदद करने, उसे आगे बढ़ाने के लिए तत्पर रहते थे. उन का जाना संगीत जगत की बहुत बड़ी क्षति है.

 मनोज देसाई उवाच : मैं ने अपना सहपाठी और 50 वर्ष का साथी खो दिया

पंकज उधास के सहपाठी और मशहूर फिल्म वितरक मनोज देसाई ने पंकज उधास को याद करते हुए कहा, ‘‘मुझे यकीन ही नहीं हो रहा है कि हम ने पंकज उधास को खो दिया. मैं पंकज उधास को 50 से अधिक वर्षों से जानता था. हम एक ही कालेज में पढ़ते थे और मेरा पंकज उधास के परिवार के साथ व्यक्तिगत संबंध है. मैं पंकज उधास के अनगिनत गजल स्टेज शो का भी हिस्सा रहा हूं. हर बार मैं ने एंजौय किया. पंकजजी के निधन की खबर अविश्वसनीय है पर प्रकृति के आगे किसी की नहीं चलती.’’

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...