फिल्म द लास्ट आप्शन नक्सलाइटकी निर्देशिका पायल कश्यप ने कहा कि आजादी के बाद नक्सलवाद देश के सामने सबसे बड़ी आंतरिक चुनौती बन कर उभरी है. 23 मई 1967 को बंगाल के एक छोटे से गांव नक्सलबाड़ी से निकला यह आंदोलन आज केरल, कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश, उड़ीसा, बंगाल, झारखंड, छत्तीसगढ़, बिहार होते नेपाल तक फैल गया. भारतीय राजनीतिक घटना प्रवाह में ऐसा पहली बार हुआ है जब एक स्थान विशेष (नक्सलबाड़ी) से शुरु हुई परिघटना ने वाद का रूप ले लिया और इसके फौलोवर का कहना है सत्ता बंदूक की नली से निकलती है. लेकिन मेरी फिल्म द लास्ट आप्शन नक्सलाइट के माध्यम से यह बतलाने की कोशिश की गई है कि बंदूक की नली से सिर्फ और सिर्फ आतंक ही निकल सकता है.

पायल कश्यप ने कहा कि क्या हिंसा के रास्ते परिवर्तन संभव है? कतई नहीं यह कहानी इसी की वकालत करती है और बतलाने की कोशिश करती है कि बंदूक से समस्या का समाधान कभी नहीं हो सकता. हमारा अंतिम विकल्प स्टेट (राजसत्ता) के खिलाफ बंदूक उठा नक्सली बन जंगल चला जाना नहीं वरन उसके भी आगे एक राह है और वह है शांति की राह.

फिल्म के माध्यम से समाज सुधार की बात पर उन्होंने कहा कि देखिये मेरा काम कहानी को पर्दे पर उतारना है, साथ ही मेरी फिल्मों का एक अहम हिस्सा होता है मनोरंजन. मैं कहानी के माध्यम से कुछ कहना चाहती हूं. जिस कहानी का विषय दिल को छू जाता है उस कहानी को सेल्यूलायड पर गढ़ने की तैयारी में मैं जुट जाती हूं. और रही बात समाज सेवा की तो मैं भी समाज का एक हिस्सा हूं. सो मेरी भी यह जिम्मेवारी बनती है देश और समाज के लिए कुछ न कुछ करूं. मनोरंजन तो फिल्म देखने के वक्त तक होता है, जबकि संदेश आप अपने दिमाग के साथ घर तक ले जा सकते हैं और इसी संदेश का समाज पर प्रतीकात्मक प्रभाव पड़ता है.

नक्सल को ही अपना विषय क्यों बनाया? इसके जवाब में पायल कहती हैं देखिये मुझे फिक्शन से ज्यादा फैक्ट अपील करता है. साथ ही रियलिस्टिक फिल्म बनाने से दर्शक ज्यादा जुड़ाव महसूस करते हैं. छत्तीसगढ़ की एक घटना एक महिला के साथ हुए दुर्व्यवहार जो बाद में नक्सल बन बंदूक उठा लेती है ने मुझे उद्वेलित किया. और मैने इसी घटना के इर्दगिर्द कहानी बुनी. और मैं जानती हूं कि सिनेमा सम्प्रेषण का शक्तिशाली माध्यम है इसलिए फिल्म के माध्यम से गुमराह होकर समाज से कटे युवकों को मुख्य धारा से जोड़ने का एक प्रयास किया जायेगा.

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