सोनीपत हरियाणा में जन्में यश टोंक तो फौज में जाना चाहते थे  लेकिन उनकी तकदीर ने उन्हें अभिनेता बना दिया पिछले 25 वर्ष के अभिनय कैरियर में यश टोंक जस्ट मोहब्बत, क्योंकि सास भी कभी बहू थी, कुंडली, कर्म अपना अपना जैसे दो दर्जन से अधिक सीरियल और किस-किस से प्यार करूं, जय हे, मणिकर्णिका सहित कई फिल्मों में अभिनय कर शोहरत बटोर चुके हैं. इन दिनों वह फिल्म हरियाणा को लेकर चर्चा में हैं.

प्रस्तुत है यश टोंक से हुई बातचीत के अंश

छोटे शहर से मुंबई आकर संघर्ष करने से लेकर अब तक के कैरियर के संदर्भ में क्या कहना चाहेंगें

मेरी पैदाइश सोनीपत हरियाणा की है मगर मेरी शिक्षा व परवरिश हिसार हरियाणा में हुई. वह फौज में थे लेकिन उन्होंने वहां से रिटायरमेंट ले ली उसके बाद वह हरियाणा अग्रीकल्चरल युनिवर्सिटी हरियाणा में चीफ सिक्यूरिटी ऑफिसर के रूप में कार्य करने लगे बचपन मेरा हिसार में बीता, 12वीं तक की पढ़ाई मैने वहीं पर की. उसके बाद बीकाम की पढ़ाई करने के लिए मैं दिल्ली अपनी मौसी के पास चला गया मैंने दिल्ली में रहकर बीकाम ऑनर्स की पढ़ाई पूरी की. पढ़ाई के साथ कालेज में मनाए जाने वाले फेस्टिवल में हिस्सा लिया करता था फिक एक दिन पता चला कि पिलानी ए राजस्थान में फैशन शो होता है जहां भारत के सभी कालेज हिस्सा लेते हैं तो हम भी अपने कालेज की टीम बनाकर पिलानी गए और फैशन शो में हिस्सा लिया उससे पहले हमारे कालेज से कभी कोई गया नहीं था लेकिन हमने पहली बार कोशिश की वहां मुझे सर्वश्रेष्ठ मॉडल का पुरस्कार मिला मुझे लगता है कि वहीं से एक शुरूआत हुई थी वास्तव में सर्वश्रेष्ठ मॉडल का पुरस्कार मिलने से एक पहचान मिली हर जगह चर्चा हुई कि हरियाणा के छोटे शहर के लड़के ने कमाल कर दिया इधर दिल्ली के कालेज में हर कोई मुझे पहचानने लगा उसके बाद कुछ अन्य फैशन शो किए पोर्टफोलियो भी बनवाया इसके बाद मैं प्रोफेशनल मॉडल के रूप में फैशन शो करने लगा तब कहीं मेरे पिता जी को लगा कि शायद बेटे में कुछ प्रतिभा है तो उन्होने स्वयं एबीसीएल का फार्म मंगवाकर कहा कि भर दो एबीसीएल ने टैलेंट हंट शुरू किया था एबीसीएल में टॉप पचास में मेरा चयन हो गया फिर दस दिन के लिए मुझे मुंबई बुलाया गया था तब मेरे पिताजी ने मुझसे कहा कि मुंबई ही रहे हो तो वहां कोशिश करना मैं तुम्हे दो वर्ष का समय दे रहा हूं यदि दो वर्ष मुंबई में कुछ नहीं कर पाए तो वापस आ जाना फिर मैं जो कहॅूंगा वह करना मैं मुंबई आया और तकदीर ने साथ दिया. मैं दो वर्ष के अंदर अभिनय करने लगा था.

कैसे शुरूआत हुई थी

मुंबई आने के दस बारह दिन में ही समझ में आ गया था कि एबीसीएल से कुछ नहीं होना है तो एक माह के अंदर ही मैं मकरंद देशपांडे के नाट्य ग्रुप से जुड़कर पृथ्वी थिएटर पर नाटक करने लगा था इससे कला की जानकारी मुझे मिलने लगी धीरे धीरे निर्माताओं तक मेरी तस्वीरें पहुंचने लगी थीं. लोग मुझे बुलाकर काम देते रहे.

आपके अब तक के कैरियर में टर्निंग प्वाइंट्स क्या रहे

मेरे कैरियर में रूकावटें बहुत कम आयी सब कुछ बहुत ही स्मूथली होता रहा है मैं खुद ही नहीं समझ पाया कि यहां इतना समय कैसे निकल गया पहले मैंने दिया टोनी सिंह, रवि राय आदि बेहतरीन सर्जकों के साथ साप्ताहिक रूप से प्रसारित होने वाले धारावाहिकों में काम करता रहा इससे बतौर अभिनेता मेरी अच्छी पहचान बनने लगी. सीरियल जस्ट मोहब्बत काफी लोकप्रिय हुआ था ण्रवि राय के साथ ष्टीचरष् सहित कई सीरियल किए इसी बीच बालाजी टेलीफिल्मस से बुलावा आ गया बालाजी के साथ क्योंकि सास भी कभी बहू थी सहित दर्जन भर से अधिक सीरियल किए डेली सोप के साथ ही फिल्मों में काम करने लगा मैं खुशनसीब हॅूं कि मेरे सभी सीरियल व फिल्में सफल होते रहे मुझे काम मिलता रहा.

आपके लगभग सभी सीरियलों को जबरदस्त शोहरत मिली और आपको भी शोहरत मिली पर फिल्मों में वैसी पहचान नही बन पायी

सच कहॅूं तो मुझे लगातार काम मिलता रहा मुझे काम मांगने के लिए किसी के पास जाने की जरुरत ही महसूस नहीं हुई जिस फिल्म के लिए मुझे बुलाया गया मैंने उस फिल्म में अभिनय किया फिल्म हो या टीवी कभी कहीं किसी भी कैंप में घुसने की मैंने अपनी तरफ से कोशिश ही नही की.

आपने फिल्म हरियाणा के निर्देशक संदीप बसवाना के साथ कई सीरियलों में अभिनय कर चुके हैं तो क्या इसी कारण आपने फिल्म हरियाणा से जुड़ने का निर्णय लिया

देखिए संदीप बसवाना से मेरे काफी पुराने संबंध हैं वह मेरे भाई जैसा है हम दोनों ही हरियाणा से हैं लेकिन इस फिल्म से जुड़ने की वजह इसकी कहानी रही संदीप बसवाना ने जिस बारीकी से इसकी कहानी लिखी है कि न करने का सवाल ही नहीं उठता संदीप लंबे समय से इस विषय पर काम कर रहे थे उन्होंने इस पर काफी शोध किया है उसी आधार पर कहानी में काफी बदलाव भी किए.

फिल्म हरियाणा किस तरह की फिल्म है

यह बहुत साधारण व यथार्थ परक पारिवारिक फिल्म है इसका एक भी किरदार लाउड या फिल्मी नजर नहीं आएगा फिल्म में किसी भी किरदार ने ठेठ देसी यानी कि हरियाणवी भाषा नही बोली है. टच हरियाणा का रखते हुए सभी ने हिंदी ही बोली है. इसमें हमने कई मुद्दे उठाए हैं मगर बहुत ही हल्के से ससलन पहले गांवो में संयुक्त परिवार हुआ करते थे संयुक्त परिवार में एक दूसरे के प्रति जो जुड़ाव है उनमें एक प्रेम होता है वह दिखाने का प्रयास है. तीनों भाइयों के प्रेम को दिखाया है अब आधुनिकता की बातें हो रही है इस आधुनिकता के चक्कर में ही संयुक्त परिवार की जगह एकाकी परिवार आ गए पर इससे हम कितना अकेले हो गए हैं पहले सभी भाई बहन एक जगह इकट्ठा हुआ करते थे पर अब एक एक फ्लैट में दो तीन लोग रह रहे हैं इसमें भाषा को लेकर भी बात की गयी है हमारी राष्ट्रभाषा हिंदी है मगर छोटे शहर या गांव से आने वाले इंसान को हिंदी बोलने में शर्म आती हैं और सामने वाला जिसे हिंदी आती है वह भी हिंदी की बजाय अंग्रेजी ही झाड़ता है जबकि भाषा तो एक दूसरे को समझने और अपनी बात एक दूसरों से सहजता से कहने के लिए होती है हमारी फिल्म कहती है कि अगर किसी को हिंदी नही आती है तो कोई बात नहीं पर यदि हिंदी आती है तो फिर हिंदी में बात करने में शर्म कैसी इस मुद्दे को बहुत अच्छे से फिल्म में उठाया गया है बहुत ही यथार्थ परक फिल्म है

फिल्म हरियाणा के अपने किरदार को लेकर क्या कहेंगे

मैंने इसमे तीन भाईयों मे सबसे बड़े भाई महेंद्र का किरदार निभाया है परिवार के हर सदस्य से उसका अच्छा संबंध है सभी साथ में रहते हैं महेंद्र कर्मठी है एअपने भाईयों का ख्याल रखता है फिल्म में मेरा महेंद्र का किरदार कहीं न कहीं सूत्रधार है जब भाई मुसीबत में फंसता हैएतो महेंद्र उसकी मदद के लिए पहुंचता है.

हरियाणा की अपनी एक अलग पहचान है कहा जाता है कि हरियाणा के लोग उद्दंड होते हैंण्जब आप मुंबई आए तो इस पहचान के चलते किस तरह की समस्या आपको आयी थी

.देखिए ऐसा नही है हरियाणा में सभी बदतमीज नही है जो लोग हरियाणवी भाषा व कल्चर से वाकिफ नही है उन्हें ऐसा लगता होगा हकीकत में हरियाणा के लोग बहुत साधारण हैं पर मेरी राय में जैसा देश वैसा भेष होना जरुरी है तो हमें कुछ चीजें अपनानी चाहिए मान लीजिए कोई मुंबई से हरियाणा के गांव जाता है तो जब तक वह वहां की कुछ बारीक चीजों को सीखेगा नहीं एतब तक वह वहां अपनाया नहीं जाएगा तो जब मैं मुंबई पहुंचाए तो एक ही बात सीखी कि अब भेष बदलना पड़ेगा पर जड़े तो मेरे अंदर ही रहेगी बाकी चीजें अपना ली खुद की ग्रूमिंग करना बहुत जरुरी है जो भी हरियाणा ही नहीं कहीं किसी भी गांव या छोटे शहर से मुंबई महानगरी में फिल्म या टीवी में काम करने के लिए आना चाहते हैं उन सभी से कहूंगा कि जो आपके अंदर है उसे खत्म किए बगैर जो नही है उसे भी अपनाओ.

हमने देखा है कि हिंदी भाषी अंग्रेजी जानते हुए भी हिचकिचाता है ऐसा क्यों

मैं अपनी बात बताना चाहूंगा हिसार हरियाणा में हमने अंग्रेजी माध्यम से ही पढ़ाई की लेकिन हम आपस में बातें हमेशा हिंदी में करते थे यानी कि अंग्रेजी माध्यम में पढ़ते हुए भी अंग्रेजी में बातें करने का चलन नही था हमें अंग्रेजी आती थी मगर जब तक हम एक दूसरे से उस भाषा में बात नही करेंगे तब तक एक हिचक सी बनी रहती है जब मैं दिल्ली युनिवर्सिटी में पढ़ने गया तो वहां सभी अंग्रेजी में बातें करते थे उस वक्त मुझे शर्म आती थी लेकिन जहां चाह हो वहां राह अपने आप निकल आती है मैं सिर्फ छह माह के अंदर अंग्रेजी में बातें करने लगा थाएमगर मैं अपनी हिंदी भाषा को भी भूला नही था

आपके अनुसार आधुनिकता के चलते एकाकी परिवार के आनेके बाद किस तरह की समस्याएं आ रही हैं क्या संयुक्त परिवार होने चाहिए

इस संबंध में मुझे कुछ कहने की जरुरत नही हैण्एकाकी परिवार के रूप में रह रहे सभी लोग खुद अपने अंदर झांक कर देख लें तो उनकी समझ में आ जाएगा कि एकाकी परिवार से तकलीफ बढ़ी हैं अपनापन खत्म हुआ है संयुक्त परिवार में हर छोटी बड़ी समस्या के वक्त सभी एक दूसरे के साथ खड़े नजर आते हैं मगर एकाकी परिवार में रह रहे लोगों को अहसास होता है कि अरेए मेरे साथ तो कोई नही है इसलिए हर इंसान को अपने अंदर झांकने की जरुरत है कि हम आधुनिकता के चक्कर में आगे बढ़ तो जाते हैं पर यह नहीं सोचते कि हम अच्छे के लिए आगे बढ़ रहे हैं या बुरे के लिए इस पर तो हर इंसान को खुद ही आकलन करना होगा

इसके अलावा कोई दूसरी फिल्म कर रहे हैं

मैंने एक वेब सीरीज की शूटिंग पूरी की है जो कि सितंबर माह में एमएक्स प्लेअर पर आएगी सोनीपत या हिसार यानी कि हरियाणा में कला का कोई माहौल क्यों नही है वहां पर लोग सेना में जाना या खेलकूद में हिस्सा लेना पसंद करते हैं सच कहॅूं तो मैं भी फौज में जाना चाहता था या क्रिकेटर बनना चाहता था लेकिन पिलानी के फैशन शो के बाद किस्मत ने पलटा खायाण्एक के बाद एक कड़ी जुड़ती चली गयी और अब लोग मुझे अभिनय करते हुए देख ही रहे हैं

देखिए हरियाणा के सभी लोग सामान्य साधारण लोग हैं  हरियाणा में सभी के पास खेती ही मुख्य साधन है मेरे दादाजी भी किसान ही थे वह साधारण जिंदगी जीते हैं फिल्में वगैरह देखने का भी ज्यादा चलन नहीं रहा लेकिन मेरी पीढ़ी तक चीजे बदलने लगी थी और अब जो नई पीढ़ी है उसमें तो काफी बदलाव आ गया है अब तो हरियाणा से कई प्रतिभाशाली कलाकारए निर्देशक व तकनीशियन आ रहे हैं.

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