यह अच्छी बात है कि आजकल एक्सपैरिमैंटल फिल्में बनने लगी हैं. ‘फाइंडिंग फैनी’ का सब्जैक्ट आम फिल्मों से हट कर है. यह एक क्लासी फिल्म है. दर्शक इसे देख कर खूब ऐंजौय करेंगे. फाइंडिंग फैनी एक हलकीफुलकी दिलचस्प फिल्म है जो आज की भागमभाग वाली जिंदगी से परेशान लोगों को सुकून देती प्रतीत होती है. फिल्म जिंदगी जीने का तरीका बताती है. फिल्म में सिर्फ 5 किरदार हैं, पांचों गोआ के एक गांव में रहते हैं, पांचों में आपस में प्यार है. पांचों एकदूसरे के सुखदुख को समझते हैं. रोजलीना (डिंपल कापडि़या) विधवा है (यह बाद में पता चलता है कि उस का पति भाग गया था और वह विधवाओं वाला जीवन जी रही थी) तो भी उसे कोई गम नहीं. उस की नईनवेली बहू एंजेलीना (दीपिका पादुकोण) भी शादी वाले दिन ही विधवा हो गई थी. उस के अंदर भी उमंग है, प्यार है, खिलखिलाहट है. फ्रेडी (नसीरुद्दीन शाह) 45 सालों से अपने प्यार की बाट जोह रहा है, मगर फिर भी जिंदादिल है. निर्देशक होमी अदजानिया ने इन पांचों कलाकारों की जिंदगी को अलगअलग नजरिए से दिखा कर सभी को अपनीअपनी बात कहने का मौका दिया है. यह फिल्म सिर्फ फैनी को ही ढूंढ़ने की नहीं है बल्कि एकदूसरे को ढूंढ़ने, उन्हें समझने की है.

होमी ने खुद ही इस फिल्म की कहानी भी लिखी है. उस ने इस फिल्म में इन पांचों कलाकारों को ले कर एक रोड जर्नी दिखाई है. इस जर्नी को ये पांचों कलाकार खूब ऐंजौय करते हैं. इन कलाकारों को ऐंजौय करता देख दर्शकों के चेहरों पर स्वत: ही मुसकान बिखर जाती है.

फिल्म की कहानी गोआ के एक गांव से शुरू होती है. उस गांव में एक पोस्टमास्टर फ्रेडी (नसीरुद्दीन शाह), रोजलीना, एंजेलीना, सावियो (अर्जुन कपूर) और एक सनकी पेंटर पेड्रो (पंकज कपूर) रहते हैं. फ्रेडी को डाक से एक लैटर मिलता है जो उस ने अपनी प्रेमिका फैनी को 45 साल पहले भेजा था और उस में शादी का प्रस्ताव रखा था. वह लैटर 45 सालों के बाद उस के पास बिना डिलिवर हुए वापस लौट आता है. फ्रेडी उदास हो जाता है. यह बात जब ऐंजी (दीपिका पादुकोण) को पता चलती है तो वह फ्रेडी की मदद करने का फैसला करती है. ऐंजी शादी वाले दिन ही विधवा हो गई थी. वह फ्रेजी को ले कर अपने बचपन के दोस्त सावियो के साथसाथ गांव के ही एक सनकी पेंटर पेड्रो और अपनी सास रोजलीना को ले कर फैनी को ढूंढ़ने निकल पड़ती है. यह सफर हलकेफुलके  क्षणों में आगे बढ़ता है. सफर के पहले पड़ाव में उन्हें फैनी नहीं मिलती.

फिर भी अनजान रास्तों पर वे आगे चल पड़ते हैं. रास्ते में ऐंजी सावियो के करीब आती है और दोनों में शारीरिक संबंध बन जाते हैं. उधर, पेड्रो रोजलीना पर लाइन मारता है, मगर रोजलीना को फ्रेडी पसंद है. इस सफर का अंत होने से पहले उन्हें फैनी मिलती भी है तो डैड बौडी की शक्ल में, जिसे दफनाने उस की बेटी ले जा रही थी. तब उसे पता चलता है कि फैनी ने तो जीवन में कभी उसे याद ही नहीं किया. गांव लौट कर ऐंजी सावियो से शादी कर लेती है और रोजलीना फ्रेडी से.

असली फिल्म शुरू होने से पहले इन पांचों किरदारों को कार्टूनों की शक्ल दे कर दिखाया गया है, जिसे देख कर दर्शकों के चेहरों पर हंसी आती है. यानी आभास हो जाता है कि शुरुआत अच्छी है तो अंत भी अच्छा ही होगा. निर्देशक होमी अदजानिया ने इस कहानी को सीधेसीधे कह डाला है, कहीं कोई घुमावफिराव नहीं. निर्देशक ने बताया है कि जीवन समाप्त हो जाता है परंतु प्यार कभी खत्म नहीं होता. मध्यांतर से पहले कहानी की रफ्तार कुछ धीमी है तो मध्यांतर के बाद यह चौथे गियर में चल पड़ती है. फिल्म खत्म होने के बाद ऐसा लगता है कि फिल्म अभी और आगे बढ़ती. यह तो बहुत जल्द खत्म हो गई.

निर्देशक ने फिल्म में सिनेमाई ड्रामा भरने की कोशिश कहीं भी नहीं की है. पंकज कपूर का अभिनय काबिलेतारीफ है. नसीरुद्दीन शाह और डिंपल कापडि़या ने भी आकर्षित किया है. दीपिका पादुकोण का तो जवाब ही नहीं. वह क्यूट और बबली लगी है. किसी भी ऐंगल से वह विधवा नहीं लगती. अर्जुन कपूर भी जमा है. फिल्म का गीतसंगीत अच्छा है. टाइटिल सौंग ‘प्यार वाले दिन… ओ फैनी रे…’ अच्छा बन पड़ा है. छायांकन बहुत बढि़या है.

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