किसी मुद्दे पर आधारित मकसदपूर्ण फिल्म बनाना भारतीय फिल्मकारों के लिए हमेशा टेढ़ी खीर रहा है. मगर ‘पिंक’ में नारीवाद व नारी स्वतंत्रता पर बिना भाषणबाजी के सटीक बात की गयी है.
भारत जैसे देश में लड़कियों व औरतों का चरित्र जिस तरह से मर्दों से अलग कसौटी पर कसा जाता है, उस पर भी यह फिल्म कुठाराघात करती है.
दिल्ली जैसे महानगर में आए दिन लड़कियों के साथ जिस तरह की वारदात सुर्खियों में रहती है, उन्हीं के इर्द-गिर्द बुनी गयी कथा पर बनी फिल्म है, पिंक.
पिंक की कहानी दिल्ली महानगर की है. दिल्ली महानगर के एक पॉश इलाके में तीन कामकाजी लड़कियां मीनल अरोड़ा (तापसी पन्नू), फलक अली (कीर्ति कुलहारी) और आंद्रिया (आंद्रिया) एक ही मकान में एक साथ किराए पर रहती हैं.
एक रात यह तीनों लड़कियां मौजमस्ती के लिए फलक के एक दोस्त के साथ निकलती है. यह सूरजकुंड में रॉक कॉन्सर्ट का लुत्फ उठाने के बाद कुछ दोस्तों के साथ ड्रिंक व डिनर का भी मजा लेती हैं. मगर ड्रिंक लेने के बाद यह रात इन तीनों के लिए मुसीबत का सबब बन जाती है.
आंद्रिया को अहसास होता है कि डंपी (रशूल टंडन) उसे गलत तरीके से छूने की कोशिश कर रहा है. विधायक के बेटे होने यानी कि पारिवारिक पृष्ठभूमि की ताकत में चूर राजवीर (अंगद बेदी), मीनल को गलत तरीके से छूता है. मीनल के विरोध करने पर भी वह मिनल के साथ छेड़खानी करता है.
खुद को राजवीर के चंगुल से छुड़ाने के लिए मिनल, राजवीर के उपर शराब की बोतल से वार करती है जो कि उसकी आंख के उपरी हिस्से पर लगती है और राजवीर के माथे से खून बहने लगता है. यह देख तीनो लड़कियां वहां से भागकर दिल्ली अपने घर पहुंच जाती हैं. इन्हें लगता है कि रात गयी बात गयी. उधर राजवीर के दोस्त उसे अस्पताल ले जाते हैं.