एक समय था जब भारत के लोग कहते थे कि हमारा देश कृषि प्रधान है, तब था भी, लेकिन पिछली 3 दशाब्दियों से कृषि के प्रति लोगों की रुचि कम हुई है. ज्यादातर किसानों के बच्चे पढ़लिख कर महानगरों की ओर भाग रहे हैं. किसानों के बच्चे ही नहीं कामगार भी. फलस्वरूप गांव में खेतों के लिए मजदूर नहीं मिलते.

आशा की किरण वहां नजर आती है, जहां पढ़ेलिखे कुछ डिग्रीधारियों ने अपने कंधों पर खेती के औजार उठाए ही नहीं बल्कि यह भी साबित कर दिखाया है कि अगर उन्नत ढंग से खेती की जाए तो बड़ी नौकरियों से बेहतर है.

बेंगलुरु की 37 वर्षीय गीतांजलि राजमणि ऐसी ही महिला हैं. गीतांजलि ने 2017 में दो दोस्तों के साथ मिल कर स्टार्टअप कंपनी फार्मिजन शुरू की थी. अब यह कंपनी बेंगलुरु, हैदराबाद और सूरत में काम कर रही है. एक तरफ यह किसानों से बराबर की पार्टनरशिप कर उन से जैविक खेती करवाती है, दूसरी ओर उन के खेत को 600-600 वर्गफुट के आकार में बांट कर ग्राहकों को 2500 रुपए प्रति माह दर पर किराए पर देती है.

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ग्राहक मोबाइल ऐप से चुने प्लौट में अपनी पसंद की सब्जियां लगवाते हैं. सब्जियां तैयार होने पर फार्मिजन का वाहन उन्हें ग्राहकों के घर तक पहुंचा देता है. इस से 2 फायदे होते हैं. एक तो यह कि ग्राहकों को घर बैठे 100 प्रतिशत जैविक सब्जियां मिल जाती हैं. दूसरा यह कि किसानों की कमाई 3 गुना बढ़ जाती है.

3 महीने पहले फार्मिजन ने जैविक फलों की डिलीवरी शुरू की है. इस के ग्राहकों की संख्या 3 हजार से भी ज्यादा है. सालाना का टर्न ओवर 8.40 करोड़ है. गोल्ड मैन साक्स और फौर्च्यून ने पिछले साल अक्तूबर में गीतांजलि को ग्लोबल वीमन लीडर के अवार्ड से सम्मानित किया था.

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