बिहार के मुजफ्फरपुर लीची खाने से बच्चों की मौत के मामले में लीची को खलनायक बना दिया गया है. असल में मरने वाले बच्चे कुपोषण का शिकार थे. कुपोषण के शिकार बच्चे प्रशासन की व्यवस्था की पोल खोल रहे हैं. ग्रामीण स्तर पर बच्चों के कुपोषण को दूर करने के लिये आंगनबाड़ी और मिडडे मील जैसी योजनायें भी चल रही है. इसके बाद भी बच्चे कुपोषण का शिकार हो रहे हैं. पूरे बिहार में 300 से अधिक बच्चो की जान गई है.

चर्चा केवल मुजफ्फरपुर में मरने वाले बच्चों की ज्यादा हो रही है. इस वजह से सरकार का भी ध्यान वहीं पर ज्यादा केन्द्रित हो रहा है. बड़ी चतुराई से पूरे मामले में लीची को खलनायक बनाने का काम किया गया. लीची पर केन्द्रित इस प्रचार से ऐसा लग रहा है जैसे बच्चों की मौत की वजह लीची खाना ही है. जबकि मरने वाले बच्चों के परिजनो में से बहुत बड़े हिस्से ने यह माना है कि उनके बच्चे ने लीची नहीं खाई थी.

बदनाम हो रही लीची:

मुजफ्फरपुर लीची की खेती का सबसे बड़ा केंद्र है. यह बहुत से किसानों की रोजीरोटी का जरिया है. बच्चों की मौत से लीची को जोडने से लोग लीची खाने से लोग परहेज करेंगे और किसान इसकी खेती से दूर हो जायेंगे. मुजफ्फरपुर की लीची अपनी मिठास के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है. एक छोटी सी लापरवाही ने लीची को मुजफ्फरपुर में 114 बच्चो की मौत का जिम्मेदार ठहराया गया है. जिससे अब लोग लीची खाने से बचने लगे हैं. लीची ‘खलनायक‘ बन गई है.

असल में जिम्मेदारी लीची की नही लचर व्यवस्था की है. लीची की खेती में काम करने वाले मजदूरों के बच्चे भी लीची तोड़ने का काम करते हैं. यह बच्चे कुपोषण का शिकार पहले से होते है. ऐसे में कई बार खाली पेट कच्ची लीची खाना से बच्चों की जिंदगी पर भारी पड़ता है.

जरूरत यह है कि लीची को खलनायक मत बनाये. नासमझी और खराब व्यवस्था को ही जिम्मेदार बनाये.

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‘चमकी बुखार‘ क्या है ?

‘चमकी बुखार‘ का सबसे प्रमुख कारण कुपोषित बच्चों के द्वारा अधपकी लीची का ज्यादा सेवन करना है. दरअसल लीची में प्राकृतिक रूप से हाइपोग्लाइसिन ए एवं मिथाइल साइक्लोप्रोपाइल ग्लाइसिन टौक्सिन पाया जाता है. अधपकी लीची में ये टौक्सिन अपेक्षाकृत काफी अधिक मात्रा में मौजूद रहते हैं. ये टौक्सिन शरीर में बीटा औक्सीडेशन को रोक देते हैं और हाइपोग्लाइसीमिया (रक्त में ग्लूकोज का कम हो जाना) हो जाता है एवं रक्त में फैटी एसिड्स की मात्रा भी बढ़ जाती है. चूंकि बच्चों के लिवर में ग्लूकोज स्टोरेज कम रहता है, जिससे पर्याप्त ग्लूकोज रक्त के द्वारा मस्तिष्क में नहीं पहुंच पाता और मस्तिष्क गंभीर रूप से प्रभावित हो जाता है.

चमकी बुखार से बचाव के उपाय

बुखार से बचाव के लिये बच्चों को रात में अच्छी तरह से खाना खिलाकर सुलाएं. खाना पौष्टिक होना चाहिए. बच्चों को खाली पेट लीची न खाने दें. अधपकी लीची का सेवन कदापि न करने दें. जैसे ही चमकी बुखार के लक्षण दिखाई पड़ें वैसे ही बच्चे को मीठी चीजें खाने को देनी चाहिए.

अगर संभव हो तो ग्लूकोज पाउडर या चीनी को पानी में घोलकर दें. जिससे कि रक्त में ग्लूकोज का स्तर बढ़ सके और मस्तिष्क को प्रभावित होने से बचाया जा सके. इसके बाद तुरंत अस्पताल ले जाएं.

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