उत्तर प्रदेश को उल्टा प्रदेश ऐसे ही नहीं कहा जाता. यहां पुलिस हत्या और बलात्कार जैसे जघन्य अपराधों से जुड़े आरोपियों को भले ही समय पर न पकड़ पाये पर मुख्यमंत्री के खिलाफ टिप्पणी करने वालों को तुरंत जेल में भेज दिया जाता है. एक या दो दिन के लिये नहीं पूरे 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया जाता है.

ताजा मामला उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के वीडियो पर टिप्पणी को लेकर प्रशांत कन्नौजिया की गिरफतारी और 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेजने का है. उत्तर प्रदेश पुलिस को झटका देते हुये सुप्रीम कोर्ट ने इसे संविधान के खिलाफ बताते हुए प्रशांत को तुरंत रिहा करने का आदेश दे दिया. पुलिस के इस कदम को जिस तरह से सुप्रीम कोर्ट ने खारिज किया उससे योगी सरकार और उत्तर प्रदेश पुलिस विरोधियों के निशाने पर आ गई है.

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नेताओं से लेकर पत्रकार संगठनों ने इसका विरोध भी किया था. वैसे इसके पहले भी ऐसे मामले हो चुके हैं. 5 साल पहले अखिलेश सरकार के समय दलित चिंतक लेखक कमल भारतीय ने आरक्षण और दुर्गानागपाल को लेकर अखिलेश यादव, शिवपाल यादव, आजंम खां और मुलायम सिंह यादव के खिलाफ टिप्पणी की थी.

सपा सरकार में उनको जेल भेज दिया गया था. रामपुर पुलिस ने 2015 में एक छात्र को आजम खां पर टिप्पणी करने पर जेल भेज दिया गया था. ऐसी घटनायें हर सरकार में होती रही है. यही वजह है कि पुलिस संविधान उपर जाकर काम करने लगती है जिससे उसको कोर्ट की फटकार सुननी पड़ती है. अब योगी सरकार पर टिप्पणी करने वाले को जेल जाना पडा. पर जिस तरह से सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को सुना उससे साफ हो गया कि कोर्ट ने पुलिस के काम को सही नहीं माना.

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सोशल मीडिया पर मुख्यमंत्री के खिलाफ टिप्पणी करने वाले को जेल भेजने की कड़ी में प्रशांत अकेला नाम नहीं है. गोरखपुर के नर्सिग होम संचालक सहित दिल्ली के एक चैनल पर काम करने वाले 2 और लोग भी शामिल हैं. पत्रकारों के पकड़े जाने पर कांग्रेस के नेता राहुल गांधी और बसपा नेता मायावती ने भी आवाज बुलंद की. पूरे मामले को लेकर लोग भाजपा के खिलाफ हैं. पुलिस ने अगर समझधारी से काम लिया होता तो उसे सुप्रीम कोर्ट की फटकार ना सुननी पड़ती. पुलिस को अपनी कार्यशैली में बदलाव करना होगा नहीं तो बार-बार उसे एक ही जैसे हाल से गुजराना होता है.

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