वर्ष 2017 में उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव में जीत हासिल करने के लिए भारतीय जनता पार्टी हर तरह के हथकंडे अपना रही है जिन में कैराना से हिंदू पलायन का हल्ला और अमित शाह का दलित के घर खाना खाने को भरपूर प्रचार देना शामिल हैं. ये स्टंट अगर वोट दिला दें तो आश्चर्य नहीं, क्योंकि इस देश में इंदिरा गांधी ने गरीबी हटाओ के स्टंट से चुनाव जीता था और जयललिता ने अम्मा किचन के नाम पर जीता है.

देश को आज ऐसी सरकारें चाहिए जो लोगों को शांति से काम करने दें, कानून व्यवस्था बनाए रखें और सही तरह से टैक्स वसूलें. सरकारें ये न करने के बजाय कानून व्यवस्था के हक का इस्तेमाल जाति, धर्म, उपजाति के झगड़ों को फैलाने में कर रही हैं. शांति न बनी रहे, इस के लिए जम कर विवाद खड़े किए जा रहे हैं, टैक्स पर टैक्स लादे जा रहे हैं और सरलीकरण के नाम पर दुरूह कंप्यूटर जनित टैक्स व्यवस्था थोपी जा रही है.

भारतीय जनता पार्टी के साथ बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी भी यही कुछ कर रही हैं. उत्तर प्रदेश को हिंदू, मुसलिमों, दलितों, पिछड़ों, अतिपिछड़ों, यादवों, कुर्मियों, ब्राह्मणों में बांटा जा रहा है. गंगाजुमनी संस्कृति को नष्ट कर के उसे खेमों में बदला जा रहा है जिन में रामवृक्ष यादव जैसे सिरफिरे सुभाष चंद्र बोस का नाम ले कर बड़े शहर के बीच अपनी अलग सरकार चला सकते हैं.

चुनावों में कोई वर्ग नाराज न हो जाए या वह वर्ग जो उन्हें वोट नहीं देगा, बुरी तरह सताया जाए की तरकीबें बनने लगी हैं. सभी दल उत्तर प्रदेश को तारतार करने में लग गए हैं. इस करतूत में भगवाई सब से आगे हैं. उत्तर प्रदेश देश के सब से पिछड़े प्रदेशों में से एक है. वहां गरीबी देखनी हो तो कहीं भी खड़े हो जाओ, 100 गज में दिख जाएगी. बदहाल घर, भूखेनंगे बच्चे, बीमार औरतें, बेसहारा वृद्ध, बेतरतीब बसे शहर और बाजार, संकरी गंदी गलियां, कूड़े के ढेर हर 100 गज पर दिख जाएंगे. वहां व्यवस्था नाम की कोई चीज है, लगता नहीं है.

ऐसे में नेता लोग सोचविचार और नारों के मल हर जगह फेंक रहे हैं. केंद्र में सत्तारुढ़ भाजपा को कैराना में बजाय राजनीति खेलने के, वहां अमन स्थापित करना चाहिए था क्योंकि देश की सुरक्षा की जिम्मेदारी उस की है पर हुकुम सिंह जैसे उस के नेता ऐसे बयान देने लगे मानो वहां भिंडरावाले का राज स्थापित हो गया हो.

देश का मुसलमान आज वैसे ही डरासहमा हुआ है. वह अब दड़बों में बंद है. उसे न केवल सवर्ण हिंदुओं द्वारा हेय दृष्टि से देखा जा रहा है, पिछड़े और दलित भी हिंदूमयी आंखों से देख रहे हैं. उन पर बेबुनियाद आरोप लगा कर, जरमनी के हिटलर की तरह यहूदियों से बरताव करने जैसी कोशिश की जा रही है. यह बेहद खतरनाक है. 3 प्रतिशत सिख देश का क्या हाल कर चुके हैं, हम देख चुके हैं. विकास की दौड़ में हम विध्वंस की तैयारी करते नजर आ रहे हैं.

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