रेटिंगःआधा स्टार
निर्माता: ‘आरटीजीएस पिक्चर्स’’ के बैनर तले राहुल गणेश तुलसीराम
निर्देशक: नयन पचोरी
लेखकः नयन पचोरी व अभिजीत कांबले
कलाकारः राहुल गणेश तुलसीराम, श्रिजिता डे, इषिता गांगुली, मेघा शर्मा, रानी अग्रवाल, ब्रजेंद्र काला, गिरीश थापर, अभिनव आनंद, शुभांगी लिटेरिया अन्य.
अवधिः 1 घंटा 41 मिनट
कहानीः
‘‘रेस्क्यू’’ की कहानी तीन मनोरोगी मेडिकल छात्राओं द्वारा अपने किराए के मकान के एजेंट से डरावना बदला लेने की है. फिल्म में तीन लड़कियां हनी(श्रिजिता डे ), आएशा (मेघा शर्मा) और मीरा (इशिता गांगुली) हैं. जो कि मुंबई के मेडिकल कौलेज में डाक्टरी की पढ़ाई कर रही हैं. अतीत में तीनों की जिंदगी में कुछ घटनाएं घट चुकी हैं. अब तीनों सायकिक हो चुकी हैं. इनमें से दो ‘गे’ हैं, यानी कि इनके बीच समलैंगिक संबंध हैं. जब मीरा के पिता को आएशा व मीरा के संबंधों के बारे में पता चलता है, तो मीरा अपने पिता की हत्या कर देती हैं और घर पर चोरी करने के मकसद से आयी हनी की मदद से अपने पिता को एक जगह गढ्ढा खोदकर दफन कर देती है. फिर यह तीनों लड़कियां मुंबई पहुंचने के बाद किराए के मकान में रहना शुरू करती हैं. इधर जतिन की पूर्व प्रेमिका श्वेता(रानी अग्रवाल) एक दिन राहुल के घर आती है कि उसके उसके पति ने उसे घर से निकाल दिया है और रात में जतिन के साथ हमबिस्तर होती है. पर सुबह गायब हो जाती है.

अतीत में पुरूषों के साथ इन तीनों लड़कियों के जो अनुभव रहे हैं, उसके लिए किसी पुरूष से बदला लेने के लिए वह तीनों मिलकर एक दिन किराए का मकान दिलाने वाले एजेंट जतिन (राहुलगणेश तुलसीराम) को बंदी बना लेती हैं. तीन दिन तक उसको कई तरह की यातनाएं देती हैं, जिसमें बलात्कार सहित बहुत कुछ होता है. अंततः जतिन मारा जाता है. अंत में पता चलता है कि श्वेता ने अपने पति का कत्ल कर दिया है और जतिन की हत्या में भी उसका हाथ है. श्वेता भी इन तीनेा लड़कियों के साथ थी.

लेखन व निर्देशनः
फिल्म एक सत्य घटना पर है. यदि लेखक ने शोधकर इस घटना की पूरी जानकारी इकट्ठा कर उसे ज्यों का त्यों पटकथा का रूप दिया होता, तो शायद फिल्म बेहतर बन सकती थी. पर यह पूरी तरह से एक बचकानी पटकथा पर बनी एक अधूरी फिल्म लगती है. कहानी का कहीं कोई सिरा ही नहीं है. तीनो लड़कियां मनोरोगी क्यों बनी? अतीत में इनके साथ ऐसा क्या हुआ कि यह तीनो अब बदला लेने पर उतारू है, वगैरह कुछ भी फिल्म में साफ तौर पर उभरता नही है. क्या यह लड़कियां सेक्स की गुलाम बन चुकी हैं? क्या महज अनुशासन के बंधन के चलते मनोरोगी बनी?
नयन पचोरी का निर्देशन भी अति सतही व बचकाना है. 21 वर्ष की उम्र में यह उनके निर्देशन में बनी दूसरी फिल्म है. पहली फिल्म अभी प्रदर्शन का इंतजार कर रही है. फिल्म में बेवजह कान फोड़़ू गाने ठूंसे गए हैं.
अभिनयः
हर कलाकार ने अभिनय को लेकर निराश ही किया है.





