डोरे डालने का सामाजिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम अपने देश में अनादिकाल से चला आ रहा है. स्त्री और पुरुष तो परस्पर एकदूसरे पर डोरे डालते ही हैं, जानवरों में भी नर व  मादा एकदूसरे पर डोरे डालते हैं. जीवित प्राणियों की बात तो छोडि़ए आदमी ने बेजान चीजों के मामले में भी डोरे डालना सीख लिया है. अब देखिए कि इनसान ने सिलाई मशीन तक को नहीं छोड़ा, सुई को भी नहीं छोड़ा. वहां भी अनेक प्रकार के डोरे डाले जाते हैं.

सतयुग में एकदूसरे पर डोरे डाले जाते थे. विश्वामित्र पर मेनका ने डोरे डाले तो दुष्यंत ने शकुंतला पर. त्रेता में राम और उन के भाई लक्ष्मण पर रावण की बहन सूर्पणखा ने डोरे डाले. द्वापर में कृष्ण और राधा के परस्पर डोरे डालने की दास्तां तो अनेक कवियों ने बखानी है. कलियुग में तो डोरे डालने का अभियान विधिवत और योजना बना कर अबाध गति से चल रहा है. पूरे महल्ले से ले कर विदेशों तक डोरे डालने के कार्यक्रम चलते आए हैं.

एक राजनेता विदेशी महारानी पर डोरे डालने में सफल हो गए थे. दूसरे राजनेता तो विदेशी मैडम पर डोरे डाल कर उसे डोली में बिठा कर बाकायदा स्वदेश ही ले आए. प्रेम के डोरों से ही तो प्रेम की रस्सी बनती है. कोई छिप कर डोरे डालता है तो कोई खुलेआम डोरे डाल कर प्रेम की डोर तगड़ी करता रहता है.

डोरे डालने के लिए उम्र का बंधन नहीं होता है. किशोरों से ले कर बुजुर्गों तक और किशोरियों से ले कर बुजुर्ग बालाओं तक परस्पर डोरे डालने का कार्यक्रम चलता रहता है. फलां लड़का फलां लड़की को या फलां आदमी फलां स्त्री को भगा ले गया या वह उस के साथ भाग गई, ये सभी डोरे डालने के नतीजे हुआ करते हैं.

डोरे डालतेडालते ही घर बसते हैं, तो कहीं घर उजड़ते हैं, कई जेल की हवा खाते हैं.

डोरे डालने के वाबस्ता कइयों के मंत्री पद छिन गए, कइयों के मुख्यमंत्री पद छिने. प्राचीनकाल में तो कइयों के राज्य छिन गए और राजगद्दियां छिन गईं. पड़ोसी अपनी पड़ोसिन पर और पड़ोसिन अपने पड़ोसी पर डोरे डालते देखे जा सकते हैं. बहरहाल अंजाम कुछ भी हो, डोरे डालने का व्यक्तिगत और सामाजिक कार्य कभी रुकता नहीं है.

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यों तो डोरे डालने का कार्यक्रम सदाबहार रहता है और यह कार्यक्रम बारहों महीने चलता है, लेकिन कुछ समय या ऋतु विशेष इस के लिए विशेष मुफीद होती है. शीत ऋतु सब से अच्छी होती है जब डोरे डालने का कार्य सर्वत्र चलता है. शीतकाल में जिधर देखिए उधर, जब देखिए तब डोरे डलते दिखाई देते हैं. महिलाएं अपनी नाजुक कलाइयों की उंगलियों से स्वैटर बुनने की सलाइयों पर फंदे तो रजाइयों में डोरे डालती देखी जा सकती हैं. उधर लड़कीलड़का, पुरुष व महिलाएं धूप सेंकने के बहाने छत पर या एक छत से दूसरी छत पर डोरे डालते मिल जाएंगे. अपनी छत पर एक खड़ा है तो सामने या बगल की छत पर दूसरा खड़ा है और बस हो जाती है डोरे डालने की प्रक्रिया प्रारंभ.

डोरे डालतेडालते प्रेम की डोर बन जाती है जो 2 प्राणियों को बांधने में समर्थ होती है. ऐसी स्थिति को कवि देखता है तो कह बैठता है, ‘‘पहले मन लेते बांध प्यार की डोरी से पीछे चुंबन पर कैद लगाया करते हैं.’’ पाबंदी तो जालिम जमाना लगाता है, जो प्रेमीप्रेमिकाओं को जीने नहीं देता. डोरे डालतेडालते यह स्थिति हो जाती है कि ‘मरने न दे मुहब्बत, जीने न दे जमाना.’ आजकल टेलीविजन पर चैनल वाले भी तरहतरह के सीरियल दिखा कर डोरे डालने का अच्छा प्रशिक्षण दे रहे हैं.

पहले जमाने में महल्ले में ही डोरे डालने की डबिंग और कार्यक्रम होता था. मकान की छतों, छज्जों, बालकनियों, खिड़कियों, पिछले दरवाजों और एकांत गलियों का उपयोग इस कार्य के लिए होता था. अब महल्ले की सीमा लांघ कर बागबगीचे, पार्क, दफ्तर, मैट्रो स्टेशन की सीढि़यां, तालाब और नदी के किनारे, एकांत सड़कें या पहाडि़यां परस्पर डोरे डालने के मुफीद स्थान हैं.

अपने देश और विदेशों में प्रेम करने का यही मूलभूत अंतर है. विदेशों में तो परस्पर मिलनेजुलने के लिए समय की कमी है, इसलिए तड़ाकफड़ाक प्रेम किया और काम पर चल दिए. अपने यहां प्यार भी विधिवत तरीके से होता है. डोरे डालतेडालते प्रेम की डोर में लिपटते हैं, और डोर जब तक सड़ नहीं जाती तब तक उस में बंधे रहते हैं. कोई ऐरागैरा सत्यानाशी व्यक्ति प्रेम की डोर को बीच से काट देता है, तो फिर स्थिति अलग होती है.

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जब से राजनीतिक दलों की हिम्मत टूटी है और अकेले सरकार बनाने की कूवत नहीं रही, तब से राजनीति में भी डोरे डालने का कार्यक्रम शुरू हुआ है. घटक दलों पर परस्पर डोरे डाले जा रहे हैं. कभी अम्मा किसी दल के दादा पर डोरे डालती हैं तो कभी किसी दल का सदस्य किसी दल की बहनजी या मैडम पर डोरे डालता है. यह राजनीति ही है, जहां सभी मर्यादाओं और पिछली परंपराओं को दरकिनार करते हुए कुरसी हेतु अम्मा और बहनजी पर भी डोरे डाल कर गठबंधन की गांठ मजबूत की जाती है. तभी सरकार चलती है और कुरसी कुछ समय के लिए स्थिर होती है.

ये डोरे बड़े महीन होते हैं लेकिन इस में एक से एक तीसमारखां बांधे जा सकते हैं. राजनीति में भी यों तो परस्पर डोरे डालने का समय 5 साल तक रहता है लेकिन चुनावों के समय डोरे डालने की गतिविधियां काफी तेज हो जाती हैं. इस समय अगर किसी पर डोरे डाल कर पटा लिया जाए तो चुनाव की वैतरणी पार होने में काफी मदद मिलती है.

डोरे डालते समय डोरा टूटता भी है, कभी व्यवधान भी आता है. घबराइए नहीं और आप भी समय और अनुकूल मौका पा कर डोरे डालिए. डोरे डालने के लिए उम्र, समय, ऋतु तथा स्थान का तो बंधन होता नहीं है, यह सदाबहार प्रक्रिया है. यह जरूर ध्यान रहे कि डोरे डालने में सावधानी रहे, आप भी न फंसें और डोरे भी न फंसें. फंसने पर दोनों के टूटने का डर है, तभी तो कहा है कि ‘रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो चटकाय…’ और हां, कैंची ले कर घूमने वालों से सावधान.

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उमाशंकर चतुर्वेदी 

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