उस ने एक बार फिर सत्या के चेहरे को देखा. कल से न जाने कितनी बार वह इस चेहरे को देख चुकी है. दोपहर से अब तक तो वह एक मिनट के लिए भी उस से अलग हुई ही न थी. बस, चुपचाप पास में बैठी रही थी. दोनों एकदूसरे से नजरें चुरा रही थीं. एकदूसरे की ओर देखने से कतरा रही थीं.

सत्या का चेहरा व्यथा और दहशत से त्रस्त था. वह समझ नहीं पा रही थी कि अपनी बेटी को किस तरह दिलासा दे. उस के साथ जो कुछ घट गया था, अचानक ही जैसे उस का सबकुछ लुट गया था. वह तकिए में मुंह छिपाए बस सुबकती रही थी. सबकुछ जाननेसमझने के बावजूद उस ने सत्या से न तो कुछ कहा था न पूछा था. ऐसा कोई शब्द उस के पास नहीं था जिसे बोल कर वह सत्या की पीड़ा को कुछ कम कर पाती और इस विवशता में वह और अधिक चुप हो गई थी.

जब रात घिर आई, कमरे में पूरी तरह अंधेरा फैल गया तो वह उठी और बत्ती जला कर फिर सत्या के पास आ खड़ी हुई, ‘‘कुछ खा ले बेटी, दिनभर कुछ नहीं लिया है.’’

‘‘नहीं, मम्मी, मुझे भूख नहीं है. प्लीज आप जाइए, सो जाइए,’’ सत्या ने कहा और चादर फैला कर सो गई.

कुछ देर तक उसी तरह खड़ी रहने के बाद वह कमरे से निकल कर बालकनी में आ खड़ी हुई. उस के कमरे का रास्ता बालकनी से ही था अपने कमरे में जाने से वह डर रही थी. न जाने कैसी एक आशंका उस के मन में भर गई थी.

आज दोपहर को जिस तरह से लिथड़ीचिथड़ी सी सत्या आटो से उतरी थी और आटो का भाड़ा दिए बिना ही भाग कर अपने कमरे में आ गई थी, वह सब देख कर उस का मन कांप उठा था. सत्या ने उस से कुछ कहा नहीं था, उस ने भी कुछ पूछा नहीं था. बाहर निकल कर आटो वाले को उस ने पैसे दिए थे.

आटो वाला ही कुछ उदासउदास स्वर में बोला था, ‘‘बहुत खराब समय है बीबीजी, लगता है बच्ची गुंडों की चपेट में आ गई थी या फिर…रिज के पास सड़क पर बेहाल सी बैठी थी. किसी तरह घर तक आई है…इस तरह के केस को गाड़ी में बैठाते हुए भी डर लगता है. पुलिस के सौ लफड़े जो हैं.’’

पैसे दे कर जल्दी से वह घर के भीतर घुसी. उसे डर था, आटो वाले की बातें आसपास के लोगों तक न पहुंच जाएं. ऐसी बातें फैलने में समय ही कितना लगता है. वह धड़धड़ाती सी सत्या के कमरे में घुसी. सत्या बिस्तर पर औंधी पड़ी, तकिए में मुंह छिपाए हिचकियां भर रही थी. कुछ देर तक तो वह समझ ही न पाई कि क्या करे, क्या कहे. बस, चुपचाप सत्या के पास बैठ कर उस का सिर सहलाती रही. अचानक सत्या ही उस से एकदम चिपक गई थी. उसे अपनी बांहों से जकड़ लिया था. उस की रुलाई ने वेग पकड़ लिया था.

‘‘ममा, वे 3 थे…जबरदस्ती कार में…’’

सत्या आगे कुछ बोल नहीं पाई, न बोलने की जरूरत ही थी. जो आशंकाएं अब तक सिर्फ सिर उठा रही थीं, अब समुद्र का तेज ज्वार बन चुकी थीं. उस का कंठ अवरुद्ध हो आया, आंखें पनीली… परंतु अपने को संभालते हुए बोली, ‘‘डोंट वरी बेटी, डोंट वरी…संभालो अपने को… हिम्मत से काम लो.’’

कहने को तो कह दिया, सांत्वना भरे शब्द, किंतु खुद भीतर से वह जिस तरह टूटी, बिखरी, यह सिर्फ वह ही समझ पाई. जिस सत्या को अपने ऊपर अभिमान था कि ऐसी स्थिति में आत्मरक्षा कर पाने में वह समर्थ है, वही आज अपनी असमर्थता पर आंसू बहा रही थी. बेटी की पीड़ा ने किस तरह उसे तारतार कर दिया था, दर्द की कितनी परतें उभर आई थीं, यह सिर्फ वह समझ पा रही थी, बेटी के सामने व्यक्त करने का साहस नहीं था उस में.

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सत्या इस तरह की घटनाओं की खबरें जब भी अखबार में पढ़ती, गुस्से से भर उठती, ‘ये लड़कियां इतनी कमजोर क्यों हैं? कहीं भी, कोई भी उन्हें उठा लेता है और वे रोतीकलपती अपना सबकुछ लुटा देती हैं? और यह पुलिस क्या करती है? इस तरह सरेआम सबकुछ हो जाता है और…’

वह सत्या को समझाने की कोशिश करती हुई कहती, ‘स्त्री की कमजोरी तो जगजाहिर है बेटी. इन शैतानों के पंजे में कभी भी कोई भी फंस सकता है.’

‘माई फुट…मैं तो इन को ऐसा मजा चखा देती…’

उस ने घबराए मन से फिर सत्या के कमरे में एक बार झांका और चुपचाप अपने कमरे में आ कर लेट गई. खाना उस से भी खाया नहीं गया. यों ही पड़ेपड़े रात ढलती रही. बिस्तर पर पड़ जाने से ही या रात के बहुत गहरा जाने से ही नींद तो नहीं आ जाती. उस ने कमरे की बत्ती भी नहीं जलाई थी और उस अंधेरे में अचानक ही उसे बहुत डर लगने लगा. वह फिर उठ कर बैठ गई. कमरे से बाहर निकली और फिर सत्या के कमरे की ओर झांका. सत्या ने बत्ती बुझा दी थी और शायद सो रही थी.

वह मंथर गति से फिर अपने कमरे में आई. बिस्तर पर लेट गई. किंतु आंखों के सामने जैसे बहुत कुछ नाच रहा था. अंधेरे में भी दीवारों पर कईकई परछाइयां थीं. वह सत्या को कैसे बताती कि जो वेदना, जो अपमान आज वह झेल रही है, ठीक उसी वेदना और अपमान से एक दिन उसे भी दोचार होना पड़ा था.

सत्या तो इसे अपने लिए असंभव माने बैठी थी. शायद वह भूल गई थी कि वह भी इस देश में रहने वाली एक लड़की है. इस शहर की सड़कों पर चलनेघूमने वाली हजारों लड़कियों के बीच की एक लड़की, जिस के साथ कहीं कुछ भी घट सकता है.

सत्या के बारे में सोचतेसोचते वह अपने अतीत में खो गई. कितनी भयानक रात थी वह, कितनी पीड़ाजनक.

वह दीवारों पर देख रही थी, कईकई चेहरे नाच रहे थे. वह अपने मन को देख रही थी जहां सैकड़ों पन्ने फड़फड़ा रहे थे.

एक सुखीसंपन्न परिवार की बहू, एक बड़े अफसर की पत्नी, सुखसाधनों से लदीफंदी. एक 9 साल की बेटी. परंतु पति सुख बहुत दिनों तक वह नहीं भोग पाई थी. वैवाहिक जीवन के सिर्फ 16 साल बीते थे कि पति का साथ छूट गया था. एक कार दुर्घटना घटी और उस का जीवन सुनसान हो गया. पति की मौत ने उसे एकदम रिक्त कर दिया था.

यद्यपि वह हमेशा मजबूत दिखने की कोशिश में लगी रहती थी. कुछ महीने बाद ही उस ने बेटी को अपने से दूर दून स्कूल में भेज दिया था. शायद इस का एक कारण यह भी था कि वह नहीं चाहती थी कि उस की कमजोरियां, उस की उदासी, उस का खालीपन किसी तरह बेटी की पढ़ाई में बाधक बने. अब वह नितांत अकेली थी. सासससुर का वर्षों पहले इंतकाल हो गया था. एक ननद थी, वह अपने परिवार में व्यस्त थी. अब बड़ा सा घर उसे काटने को दौड़ता था. एकाकीपन डंक मारता था. तभी उस ने फैसला किया था कि वह भारतदर्शन करेगी. इसी बहाने कुछ समय तक घर और शहर से बाहर रहेगी. यों भी देशदुनिया घूमने का उसे बहुत शौक था. खासकर भारत के कोनेकोने को वह देखना चाहती थी.

उस ने फोन पर बेटी को बता दिया था. कुछ सहेलियों को भी बताया. 1-2 ने इतनी लंबी यात्रा से उसे रोका भी कि अकेली तुम कहां भटकती फिरोगी? पर वह कहां रुकने वाली थी. निकल पड़ी थी भारत दर्शन पर और सब से पहले दक्षिण गई थी. कन्याकुमारी, तिरुअनंतपुरम, तिरुपति, मदुरै, रामेश्वरम…फिर मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के अनेक शहर. राजस्थान को उस ने पूरी तरह छान मारा था. फिर पहुंची थी हिमाचल प्रदेश. धर्मशाला के एक होटल में ठहरी थी. वहीं वह अंधेरी रात आई थी. जिन पहाड़ों के सौंदर्य ने उसे खींचा था उन पहाड़ों ने ही उसे धोखा दिया.

दिन भर वह इधरउधर घूमती रही थी. रात का अंधियारा जब पहाड़ों पर उगे पेड़ों को अपनी परछाईं से ढकने लगा, वह अपने होटल लौटी थी. वे दोनों शायद उस के पीछेपीछे ही थे. उस का ध्यान उधर था ही नहीं. वह तो प्रकृति के नैसर्गिक सौंदर्यसुख में ऐसी डूबी थी कि मानवीय छाया पर उस की नजर ही नहीं गई. जैसे रात चुपकेचुपके धीरेधीरे आती है, उन के पैरों की गति भी वैसी ही थी. सन्नाटे में डूबा रास्ता. भूलेभटके ही कोई नजर आता था.

उसी मुग्धावस्था में उस ने अपने कमरे का ताला खोला था, फिर भीतर घुसने के लिए एक कदम उस ने उठाया ही था कि पीछे से किसी ने धक्का मारा था उसे. वह लड़खड़ाती हुई फर्श पर गिर पड़ी थी. गिरना ही था क्योंकि अचानक भूकंप सा वह झटका कैसे संभाल पाती. वह कुछ समझती तब तक दरवाजा बंद हो चुका था.

उन दोनों ने ही बत्ती जलाई थी. उम्र ज्यादा नहीं थी उन की. झटके में उस के हाथपैर बांध दिए गए थे. वह चाहती थी चिल्लाए पर चिल्ला न सकी. उस की चीख उस के अंदर ही दबी रह गई थी. होटल तो खाली सा ही पड़ा था क्योंकि पहाड़ों का सीजन अभी चालू नहीं हुआ था.

वह अकेली औरत. होटल का उस का अपना कमरा. एक अनजान जगह में बदनाम हो जाने का भय. मन का भय बहुत बड़ा भय होता है. उस भय से ही वह बंध गई थी. इस उम्र में यह सब भी भोगना होगा, वह सोच भी नहीं सकती थी.

वे लूटते रहे. पहले उसे, फिर उस का सामान.

वह चुपचाप झेलती रही सबकुछ. कोई कुंआरी लड़की तो थी नहीं वह. भोगा था उस ने सबकुछ पति के साथ. परंतु अभी तो वह रौंदी जा रही थी. एक असह्य अपमान और पीड़ा से छटपटा रही थी वह. उन पीड़ादायी क्षणों को याद कर आज भी वह कांप जाती है. बस, यही एक स्थिति ऐसी होती है जहां नारी अकसर शक्तिहीन हो जाती है. अपनी सारी आकांक्षाओं, आशाओं की तिलांजलि देनी पड़ती है उसे. बातों में, किताबों में, नारों में स्त्री अपने को चाहे जितना भी शक्तिशाली मान ले, इस पशुवृत्ति के सामने उसे हार माननी ही पड़ती है.

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उस रात उसे अपने पति की बहुत याद आई थी. कहीं यह भी मन में आ रहा था कि उन के न होने के बाद उन के प्रति उसे किसी ने विश्वासघाती बना दिया है. न जाने कब तक वे लोग उस के ऊपर उछलतेकूदते रहे. एक बार गुस्से में उस ने एक की बांह में अपने दांत भी गड़ा दिए थे. प्रत्युत्तर में उस शख्स ने उस की दोनों छातियों को दांत से काटकाट कर लहूलुहान कर दिया था. उस के होंठों और गालों को तो पहले ही उन लोगों ने काटकाट कर बदरंग कर दिया था. वह अपनी सारी पीड़ा को, गुस्से को, चीख को किस तरह दबाए पड़ी रही, आज सोच कर चकित होती है.

यह स्पष्ट था कि वे दोनों इस काम के अभ्यस्त थे. जाने से पहले दोनों के चेहरों पर अजीब सी तृप्ति थी. खुशी थी. एक ने उस के बंधन खोलने के बाद रस्सी को अपनी जैकेट के अंदर छिपाते हुए कहा, ‘गुड नाइट मैडम…तुम बहुत मजेदार हो.’ घृणा से उस ने मुंह फेर लिया था. कमरे के दूसरी तरफ एक खिड़की थी, उसे खोल कर वे दोनों बाहर कूद गए थे. बाहर का अंधेरा और घना हो उठा था.

कमरे में जैसे चारों तरफ बदबू फैल गई थी. बाहर का घना अंधेरा उछलते हुए उस कमरे में भरने लगा था. वह उठी. कांपते शरीर के साथ खिड़की तक पहुंची. खिड़की को बंद किया. बदबू और तेज हो गई थी. उस ने नाक पर हाथ रख लिया और दौड़ती हुई बाथरूम में घुसी.

उस ठंडी रात में भी न जाने वह कब तक नहाती रही. बारबार पूरे शरीर पर साबुन रगड़ती रही. चेहरे को मलती रही. छातियों को रगड़रगड़ कर धोती रही, परंतु वह बदबू खत्म होने को नहीं आ रही थी. वह नंगे बदन ही फिर कमरे में आई. पूरे शरीर पर ढेर सारा पाउडर थोपा, परफ्यूम लगाया, कमरे में भी चारों तरफ छिड़का, किंतु उस बदबू का अंत नहीं था. कैसी बदबू थी यह. कहां से आ रही थी. वह कुछ समझ नहीं पा रही थी.

बिस्तर पर लेटने के बाद भी देर तक नींद नहीं आई थी. जीवन व्यर्थ लगने लगा था. उसे लग रहा था, उस का जीवन दूषित हो गया है, उस का शरीर अपवित्र हो गया है. अब जिंदगी भर इस बदबू से उसे छुटकारा नहीं मिलेगा. वह कभी किसी से आंख मिला कर बात नहीं कर पाएगी. अपनी ही बेटी से जिंदगी भर उसे मुंह छिपाना पड़ेगा. हालांकि एक मिनट के लिए वह यह भी सोच गई थी कि अगर वह किसी को कुछ नहीं बताएगी तो भला किसी को कुछ भी पता कैसे चलेगा.

फिर भी एक पापबोध, हीनभाव उस के अंदर पैदा हो गया था.

और ढलती रात के साथ उस ने तय कर लिया था कि उस के जीवन का अंत इन्हीं पहाड़ों पर होना है. यही एक विकल्प है उस के सामने.

वह बेचैनी से कमरे में टहलने लगी. उस होटल से कुछ दूरी पर ही एक ऊंची पहाड़ी थी, नीचे गहरी खाई. वह कहीं भी कूद सकती थी. प्राण निकलने में समय ही कितना लगता है. कुछ देर छटपटाएगी. फिर सबकुछ शांत. पर रात में होटल का बाहरी गेट बंद हो जाता था. कोई आवश्यक काम हो तभी दरबान गेट खोलता था. वह भला उस से क्या आवश्यक काम बताएगी इतनी रात को? संभव ही नहीं था उस वक्त बाहर निकल पाना. चक्कर लगाती रही कमरे में सुबह के इंतजार में. भोर में ही गेट खुल जाता था.

अपने शरीर पर एक शाल डाल कर वह बाहर निकली. कमरे का दरवाजा भी उस ने बंद नहीं किया. अभी भी अंधकार घना ही था. पर ऐसा नहीं कि रास्ते पर चला न जा सके. टहलखोरी के लिए निकलने वाले भी दोचार लोग रास्ते पर थे. वह मंथर गति से चलती रही. सामने ही वह पहाड़ी थी…एकदम वीरान, सुनसान. वह जा खड़ी हुई पहाड़ी पर. नीचे का कुछ भी दिख नहीं रहा था. भयानक सन्नाटा. वह कुछ देर तक खड़ी रही. शायद पति और बेटी की याद में खोई थी. हवा की सरसराहट उस के शरीर में कंपन पैदा कर रही थी. पर वह बेखबर सी थी. शाल भी उड़ कर शायद कहीं नीचे गिर गई थी. नीचे, सामने कहीं कुछ भी दिख नहीं रहा…सिवा मृत्यु के एक काले साए के. एक संकरी गुफा. वह समा जाएगी इस में. बस, अंतिम बार पति को प्रणाम कर ले.

उस ने अपने दोनों हाथ जोड़ लिए और ऊपर आसमान की ओर देखा. अचानक उस की नजरें सामने गईं. देखा, दूर पहाड़ों के पीछे धीरेधीरे लाली फैलने लगी है. सुनहरी किरणें आसमान के साथसाथ पहाड़ों को भी सुनहरे रंग में रंग रही हैं. सूर्योदय, सुना था, लोग यहां से सूर्योदय देखते हैं. आसमान की लाली, शिखरों पर फैली लाली अद्भुत थी.

वह उसी तरह हाथ जोड़े विस्मित सी वह सब देखती रही. उस के देखतेदेखते लाल गोला ऊपर आ गया. तेजोमय सूर्य. रात के अंधकार को भेदता अपनी निर्धारित दिशा की ओर अग्रसर सूर्य. सच, उस दृश्य ने पल भर में ही उस के भीतर का सबकुछ जैसे बदल डाला. अंधकार को तो नष्ट होना ही है, फिर उस के भय से अपने को क्यों नष्ट किया जाए? कोशिश तो अंधकार से लड़ने की होनी चाहिए, उस से भागने की थोड़े ही. वही जीत तो असली जीत होगी.

और वह लौट आई थी. एक नए साहस और उमंग के साथ. एक नए विश्वास और दृढ़ता के साथ.

अचानक छन्न की आवाज हुई. उस की तंद्रा टूट गई. अतीत से वर्तमान में लौटना पड़ा उसे. यह आवाज सत्या के कमरे से ही आई थी. वह समझ गई, सत्या अभी तक सोई नहीं है. शायद वह भी किसी बदबू से परेशान होगी. एक दहशत के साथ शायद अंधेरे कमरे में टहल रही होगी. उस से टकरा कर कुछ गिरा है, टूटा है…छन्न. यह अस्वाभाविक नहीं था. सत्या जिन स्थितियों से गुजरी है, जिस मानसिकता में अभी जी रही है, किसी के लिए भी घोर यातना का समय हो सकता है.

संभव है, उस के मन में भी आत्महत्या की बात आई हो. सारी वेदना, अपमान, तिरस्कार का एक ही विकल्प होता है जैसे, अपना अंत. परंतु वह नहीं चाहती कि सत्या ऐसा कुछ करे…ऐसा कोई कदम उठाए. अभी बहुत नादान है वह. पूरी जिंदगी पड़ी है उस के सामने. उसे सबकुछ झेल कर जीना होगा. जीना ही जीत है. मर जाने से किसी का क्या बिगड़ेगा? उन लोगों का ही क्या बिगड़ेगा जिन्होंने यह सब किया? वह सत्या को बताएगी, एक ठोकर की तरह ही है यह सबकुछ. ठोकर खा कर आदमी गिरता है परंतु संभल कर फिर उठता है, फिर चलता है.

वह स्थिर कदमों से सत्या के कमरे की ओर बढ़ी. उस के पैरों में न कंपन थी न मन में अशांति. कमरे में घुसने से पहले बालकनी की बत्ती को उस ने जला दिया था.

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