इस में दो राय नहीं कि कजरारी आंखें किसी भी लड़की के सौंदर्य में चारचांद लगा देती हैं, लेकिन यदि नजर कमजोर हो तो चश्मा लगाना एक मजबूरी बन जाता है. ऐसे में कई पेरैंट्स सोचते हैं कि चश्मा लगाने से उन की बेटी को अच्छा रिश्ता नहीं मिलेगा या फिर कोई लड़का उस की तरफ आकृष्ट नहीं होगा, क्योंकि इसे एक कमी समझा जाता है, इसलिए ऐसे में वे हर संभव प्रयास करते हैं कि उन की लड़की को चश्मा न लगाना पड़े. लेकिन क्या उन की यह सोच सही है? क्या वाकई लड़के चश्मे वाली लड़की की ओर आकर्षित नहीं होते या उन्हें अच्छे रिश्ते नहीं मिलते?
किसी लड़की की नजर कमजोर है तो इस में उस का कोई दोष नहीं है. इसलिए उसे कमी मानना या लड़की के व्यक्तित्व की खामी मानना उचित नहीं है. जब किसी लड़के को चश्मा लगाने से कोई फर्क नहीं पड़ता, तो लड़कियों के चश्मा लगाने पर आपत्ति क्यों? इसलिए जिन किशोरियों की नजर कमजोर है या अन्य किसी कारण से डाक्टर ने उन्हें चश्मा लगाने को कहा है, उन्हें बेहिचक चश्मा लगाना चाहिए. इस से व्यक्तित्व बिगड़ता नहीं संवरता है. जो लड़कियां जानबूझ कर चश्मा नहीं लगातीं वे अपना ही अहित करती हैं. इस से उन की नजर और कमजोर होती चली जाती है और चश्मे का नंबर भी बढ़ जाता है. फिर एक स्थिति ऐसी आती है कि बिना चश्मे के घर से बाहर निकलना भी मुश्किल हो जाता है. इसलिए जब लगे कि आंख से ठीक से दिखाई नहीं दे रहा है या अन्य कोई समस्या है, तो तुरंत नेत्र रोग विशेषज्ञ से जांच करवाएं तथा उस की सलाह को नजरअंदाज न करें.
कुछ लड़कियां इस भय से कि कहीं उन्हें चश्मा न लग जाए, अपनी आंखों की समस्या को ले कर डाक्टर के पास जाती ही नहीं हैं और चुपचाप कष्ट सहती रहती हैं. जब स्थिति काफी बिगड़ जाती है, तब डाक्टर के पास जाती हैं. काश, समय पर अगर वे डाक्टर के पास जातीं तो उन की समस्या इतनी न बढ़ती. चश्मा किसी के व्यक्तित्व की कमजोरी नहीं है, क्योंकि व्यक्तित्व का निर्धारण किसी के चश्मा लगाने या न लगाने से नहीं होता, अपितु यह अनेक बातों पर निर्भर करता है. लड़की की शिक्षा, गुण, संस्कार, व्यवहारकुशलता, कदकाठी, रंगरूप या नैननक्श आदि से उस का व्यक्तित्व उभरता है. इस में चश्मा लगाना कोई अर्थ नहीं रखता.
चश्मा बनवाते समय उस के फ्रेम का चयन अपने चेहरे के मुताबिक करें, इस से आकर्षण बढ़ता है. फ्रेम ऐसा हो जो चेहरे पर जंचे. बेहतर होगा कि मोटे फे्रम वाले चश्मे से बचें, क्योंकि इस में उम्र ज्यादा दिखती है. आमतौर पर काले, मोटे फ्रेम वाले चश्मे बुजुर्ग पहनते हैं. पतला पारदर्शी फ्रेम ज्यादा उपयुक्त रहता है. रंगहीन या हलके रंग का होने के कारण दूर से देखने पर पता ही नहीं चलेगा कि आप ने चश्मा पहन रखा है. इसी प्रकार अत्यधिक बड़े फ्रेम का चुनाव भी न करें, अन्यथा आप के चश्मे के कारण आप का आधा चेहरा छिप जाएगा.
चश्मे की फिटिंग भी सही होनी चाहिए अन्यथा वह बारबार नीचे खिसकेगा और आप को उसे ऊपर चढ़ाना पड़ेगा. इस से आप हंसी और उपहास की पात्र बन सकती हैं. जब चश्मा नीचे आ जाता है तो इस से आप के विजन में भी फर्क पड़ता है और देखने में परेशानी होती है. यदि आप की पास और दूर दोनों ही दृष्टि कमजोर हैं तो आप के समक्ष 2 विकल्प हैं, पहला यह कि बायफोकल चश्मा बनवाएं, इस में दूर और पास दोनों का ठीक से दिखता है. यदि केवल पढ़ने के लिए चश्मा चाहिए तो उसे अलग से बनवाएं. यदि केवल दूर का देखने हेतु नंबर दिया हो तो वैसा बनवाएं. आप को दोनों तरह का दृष्टिदोष है तो आप इस के अलगअलग चश्मे भी बनवा सकती हैं.
यदि आप चश्मा नहीं लगाना चाहतीं तो इस के लिए कौंटैक्ट लैंस का विकल्प खुला है, लेकिन हर लड़की को ये सूट नहीं करते और फिर इन्हें अधिक समय तक पहनने से कुछ परेशानी भी हो सकती है. इन्हें लगाना, उतारना और तरल द्रव में रखना किसी मशक्कत से कम नहीं. कुछ लड़कियां इस बात को छिपाने के लिए कि उन्हें चश्मा लगा हुआ है, जब कोई लड़का या उस के परिजन उन्हें देखने आते हैं तो उस समय कुछ देर के लिए कौंटैक्ट लैंस लगा लेती हैं तथा उन के जाने के बाद उतार देती हैं, लेकिन ऐसा करना ठीक नहीं. यदि चश्मा लगा है तो इसे छिपाना नहीं चाहिए. इस में शर्म कैसी? सोचिए, आप चश्मा लगाने की बात छिपाती हैं और जब शादी के बाद उसे पहनेंगी तो क्या होगा? आप यह बात अपने मन से निकाल दें कि चश्मा लगाने की वजह से आप रिजैक्ट कर दी जाएंगी.
यदि आप को चश्मा लगा है तो अपने चेहरे का मेकअप करते समय कुछ बातों का खास ध्यान अवश्य रखना चाहिए. पलकों पर नैचुरल कलर का शैडो लगाएं जिस से चश्मे के भीतर से भी आप की आंखें बोलती नजर आएंगी और उन का आकर्षण बरकरार रहेगा. चाहें तो सौफ्ट शिमरयुक्त क्रीम लगा कर भी अपनी आंखों को आकर्षक बना सकती हैं. इसी प्रकार चश्मे के फ्रेम के मुताबिक लिप कलर लगाने से होंठों की सुंदरता बढ़ती है.