अंतिम भाग

पूर्व कथा

सुनीता भारत में बसे बेटे मनु से जब भी शादी की बात करतीं तो वह टाल जाता. विदेश में रहते हुए ही सुनीता उस की शादी के लिए कई भारतीय अखबारों और वेबसाइट पर उस की शादी का विज्ञापन देती हैं.

पिछली बार फोन पर बात करते हुए सुनीता मनु को चेतावनी देती हैं कि हमारे दिल्ली आने पर उसे शादी करनी पड़ेगी. पर मनु की ऊलजलूल बातें सुन कर सुनीता और परेशान हो जाती हैं.

10 साल से मनु अकेला भारत में रह रहा था. विदेश मंत्रालय में कार्यरत होने के कारण पति का तबादला होता रहता था, जिस के कारण वह बच्चों को पढ़ाई के लिए भारत भेज देती हैं. अब सुनीता की ख्वाहिश है कि बेटा शादी कर के घर बसा ले.

फोन पर बेटे की बातें सुन कर शर्मा दंपती जल्द ही दिल्ली आ जाता है. मनु उन्हें लेने एअरपोर्ट जाता है. घर की साफसफाई देख कर सुनीता मनु से पूछती हैं तो पति पंकज उस की गर्लफ्रेंड सेंनली के बारे में बताते हैं. सुनीता के पूछने पर मनु कहता है कि दोनों साथ पढ़ते थे. अगले दिन बेटी तुला भी दिल्ली आ जाती है.

सुनीता मनु को सेंनली से मिलाने के लिए कहती हैं. सेंनली जब आती है तो उसे देख कर वह चौंक जाती हैं. उस के टूटीफूटी हिंदी बोलने पर सुनीता और भी चिढ़ जाती हैं. सभी लोगों को सेंनली की मेहमाननवाजी में व्यस्त देख कर सुनीता को जलन होने लगती है. और अब आगे…

बहू के रूप में सेंनली से मिल कर सुनीता को कोई खुशी नहीं हुई. बेटे की शादी को ले कर उन के मन में जितने सपने थे सब पर पानी फिर गया था, उस पर बेटी के बौयफ्रेंड की तसवीर देख कर रहीसही कसर भी पूरी हो गई. पंकज को तो अपने बच्चों की पसंद पर नाज था पर सुनीता विदेश में रह कर भी अपने पुराने खयालों को नहीं छोड़ पाईं. पढि़ए नलिनी शर्मा की एक रोचक कहानी.

गतांक से आगे…

नानी, तुला व पंकज से स्नेह से मिलते हुए सेंनली ने विदा ली. सुनीता को बस, दूर से ही उस ने हाथ जोडे़. मनु उसे टैक्सी स्टैंड तक छोड़ने चला गया.

सेंनली के जाने के बाद सुनीता अपनी जगह से हिलीं. सब से पहले अपने पति पर बिफरीं, ‘‘मुझे तो लड़की बिलकुल पसंद नहीं आई और तुम उस की फोटो पर फोटो खींचने में लगे थे.’’

‘‘अरे भई, अपने आफिस से जल्दी छुट्टी ले कर यह कह कर आया हूं कि लड़के की सगाई करनी है. वहां लोग पूछेंगे तो कुछ फोटो वगैरह तो उन्हें दिखानी ही पड़ेंगी.’’

‘‘और तुला, तेरे लिए भाई की गर्लफें्रड की खबर कोई नई खबर तो नहीं थी, तू शायद बहुत पहले से उसे जानती है.’’

‘‘मम्मी, आप जानने की बात कह रही हैं. मैं तो जब भी बंगलौर, भाई के पास जाती हूं, हम तीनों एकसाथ खूब घूमते हैं, रेस्तरां में जाते हैं, पिक्चर देखते हैं…’’

‘‘हम क्या मर गए थे जो तू ने भी हमें नहीं बताया?’’

‘‘भाई की प्राइवेट लाइफ मैं आप दोनों के साथ क्यों डिस्कस करूं,’’ तुला तुनक कर बोली, ‘‘भाई खुद ही बताए तो ठीक है वरना मैं क्यों…’’

प्राइवेट लाइफ. यह छोटेछोटे बच्चे कब इतने बड़े हो गए कि इन की जिंदगी अपनी निजी जिंदगी बन गई, जिस में मातापिता का हस्तक्षेप भी गवारा नहीं है. सहसा उन के दिमाग में कुछ कौंधा. बेटी से वह बोलीं, ‘‘तुला, अब तू भी बता दे कि कहीं तेरा तो किसी से कोई चक्कर वगैरह नहीं है?’’

‘‘मां, अतुल हिंदू है…और हमारी तरह ब्राह्मण भी,’’ वह ऐसे बोली जैसे समान जाति का होना कुछ कम हतप्रभ होने वाली बात हो.

सुनीता ने खामोश पति की तरफ देखा. क्या कहें वह अपने जवान बच्चों के बारे में.

‘‘यह अतुल…क्या तेरे साथ पढ़ रहा है?’’ पंकज ने बात का सूत्र पकड़ा.

‘‘1 साल मुझ से सीनियर है,’’ तुला शर्माते हुए बोली, फिर झट से उठी, अपना पर्स टटोला व एक फोटो निकाल कर उन की तरफ बढ़ा दिया. सुनीता व पंकज शर्मा दोनों काफी देर तक फोटो को निहारते रहे. लड़का रंगरूप में उन की लड़की से बीस ही था, उन्नीस नहीं.

‘‘पर बेटा, यह तुम पढ़ाई के वक्त लड़कों के चक्कर में…’’ सुनीता बेटी पर झुंझलाईं.

‘‘पढ़ाई भी हो रही है. सेकंड ईयर के अपने बैच में मेरी पोजीशन ऐसे ही तो नहीं आई है.’’

सुनीता की मां बीच में बड़बड़ाईं, ‘‘अब ज्यादा लागलपेट व नखरे मत करो. खुद तो दोनों विदेश में रहते हो और यहां बच्चों को अकेला छोड़ा हुआ है. बच्चे करेंगे ही अपनी मनमानी.’’

‘‘मां, अगर हम यहां दिल्ली में रहते भी तो क्या बच्चे हमारे साथ रहते? एक बंगलौर में रहता है और दूसरा हैदराबाद में. यहां कितने मांबाप के जवान बच्चे उन के साथ रहते हैं?’’

मनु जब सेंनली को छोड़ कर आया तो सुनीता उस से तरहतरह के प्रश्न पूछ कर सेंनली से उस की घनिष्ठता का जायजा लेने लगीं.

‘‘वह बंगलौर में तेरे घर से कितनी दूरी पर रहती है? उस का आफिस तेरे आफिस से कितनी दूर है? कितना तुम परस्पर मिलते हो? कहां मिलते हो? कैसे मिलते हो? एक छत के नीचे कभी अकेले में…’’

‘‘ओहो मम्मी… इस तरीके से मत कुरेदो. अपने बेटे को कुछ सांस तो लेने दो,’’ तुला चिल्लाई.

मां, पति व बेटी ने मिल कर सुनीता को समझाया कि सेंनली चाहे किसी भी प्रदेश की हो और किसी भी धर्म की हो, मनु की पसंद है. उन के बीच की घनिष्ठता पता नहीं किस हद तक है. उन की भलाई इसी में है कि चुपचाप उन के रिश्ते को स्वीकार कर लें और डेनमार्क जाने से पहले कुछ टीका वगैरह कर के अपनी तरफ से उसे होने वाली बहू का दरजा दे दें. बुझे मन से सुनीता मान गईं. विकल्प अधिक नहीं था.

सेंनली को फिर आमंत्रित किया गया. इस बार वह तनछुई साड़ी में     आई थी और माथे पर बिंदी भी लगाए हुए थी.

असमी ब्यूटी सुंदर लग रही थी. उस का चीनी जैसा रंगरूप सुनीता को रहरह कर अखर रहा था.

पंकज ने अंगरेजी में गंभीरता- पूर्वक सेंनली से बातें कीं. उस के राज्य के बारे में पूछा. उस के परिवार के बारे में पूछा. उस ने बताया कि उस का परिवार मूलत: असम में ब्रह्मपुत्र नदी के तटों से घिरा तटवर्ती शहर माजूली का है. वहां उन का पुश्तैनी घर अब भी है और उस के दादादादी वहीं रहते हैं. पर उस के मातापिता नौकरी के सिलसिले में गुवाहाटी बस गए थे. 2 साल हुए पिता एक हादसे में गुजर गए. मां एक आफिस में क्लर्क हैं. 2 छोटी बहनें व 1 छोटा भाई अभी पढ़ ही रहे हैं. छोटा भाई मात्र 12 साल का है.

हालांकि सेंनली ने खुल कर कुछ कहा नहीं पर सुनीता व पंकज समझ गए कि सेंनली पर अपने परिवार की थोड़ी जिम्मेदारी है.

पंकज ने सुनीता को इशारा किया तो वह उठी और भीतर के कमरे में आ कर अलमारी से सोने का सैट निकाला जो वह कोपनहेगन से साथ ले कर आई थीं, इस इरादे से कि अगर सब ठीकठाक रहा तो होने वाली बहू को पहना देंगी. पर बहू की शक्ल देख कर उन का मन इस तरह खट्टा हो रखा था कि पूरे सैट के बजाय सिर्फ एक अंगूठी ही उसे पहनाने के लिए निकाली, जैसे एक औपचारिकता अदा करनी हो.

सेंनली को टीका लगाया और अंगूठी उसे पहना दी. सेंनली भी अपनी कुछ तैयारी के साथ आई थी. शायद मनु ने उसे फोन पर पहले ही बता दिया हो. उस ने अपने बैग से असमी सिल्क की हलके हरे रंग की सुंदर सी साड़ी निकाली, साथ में असम चाय के कुछ पैकेट और सुनीता को आदरपूर्वक थमा दिए. पंकज शर्मा ने फिर कुछ तसवीरें खींचीं. कुछ पोज बने. सेंनली को घेर कर सभी की वीडियो फिल्म बनी और सेंनली चली गई.

मगर उन सभी से विदा लेते वक्त सेंनली मुसकराते हुए बोली, ‘‘भाषा कोई भी हो, भाव समझ में आने चाहिए. पर मैं बंगलौर जाते ही कोई हिंदी भाषी स्कूल ज्वाइन करूंगी और हिंदी सीखूंगी. देखना…आप से अगली मुलाकात होने पर मैं फर्राटे से हिंदी में बात करूंगी.’’

सुनीता व पंकज 1 महीने के लिए भारत आए थे. भारत आने के एक नहीं कई मकसद हुआ करते थे, सो सेंनली से ध्यान हटा कर वे अपने रिश्तेदारों से मिले, जरूरी खरीदारी की, अपने शहर के डाक्टरों से अपने शरीर के कुछ परीक्षण करवाए, नए चश्मे बनवाए, बीकानेर वाले के यहां जा कर जायकेदार भारतीय स्नैक्स खाए.

10 दिन मातापिता के साथ रह कर तुला हैदराबाद चली गई थी. बेटीदामाद के जाने के दिन करीब आने पर मां भी अपने बेटे के पास लौट गईं. मनु आखिरी दिन तक उन के साथ बना रहा. उन्हें दिल्ली शहर में इधर से उधर घुमाता रहा.

1 माह का समय पलक झपकते ही बीत गया और फिर एक शाम सुनीता व पंकज कोपनहेगन जा रहे प्लेन पर बैठे हुए थे. मनु उन्हें एअरपोर्ट तक छोड़ने आया था. अगले रोज वह भी बंगलौर वापस लौट रहा था. दोनों में से किसी ने उस से नहीं पूछा कि उस का शादी को ले कर क्या विचार है.

हवाईजहाज ने जब उड़ान भरी और हिंदुस्तान की धरती उस ने छोड़ी तो सुनीता लंबी सांस भरते हुए पति से बोलीं, ‘‘दोनों बच्चों ने अपने साथी खुद ही तलाश कर लिए. हमारी तो उन्हें जरूरत ही नहीं रही.’’

पंकज बोले, ‘‘मनु की गर्लफें्रड को देख कर तो मुझे भी थोड़ा अफसोस हुआ है पर तुला के बौयफें्रड को ले कर सच कहूं तो मैं बहुत खुश हूं. अरे, लड़की अगले साल पढ़ाई पूरी कर रही है. कहां मैं उस के लिए लड़का खोजता? उस ने खुद ही खोज कर हमारा काम हलका कर दिया.’’

भारत जाने से पहले सुनीता अपने घर की एक चाबी शीतल श्रीनिवासन को दे आई थी ताकि उन के न रहने पर शीतल घर में लगाए पौधों को पानी दे सकें और उन की डाक वगैरह चैक कर सकें. उन के पहुंचने से पहले ही दूध व ब्रेड वगैरह खरीद कर शीतल ने फ्रिज में रख दिए थे.

इस तरह का सहयोग दोनों परिवारों के बीच स्वत: ही कायम हो गया था. वह विदेशी भूमि पर थे. यहां न भाईबहन, न मातापिता, न नजदीकी रिश्तेदार, सिर्फ एक भारतीय ही दूसरे भारतीय की मदद करता है. सुनीता ने घर पहुंचते ही उसे फोन लगाया. वह बड़े मनसूबे बांध कर भारत गई थीं. उस से कह कर गई थीं कि अगर सबकुछ ठीक रहा था तो भारत 2-4 महीने के लिए टिक जाएंगी. बेटे की शादी कर के ही लौटेंगी.

‘‘आप भी पंकजजी के साथ वापस आ गईं?’’ शीतल श्रीनिवासन ने सुनीता की आवाज सुन कर हतप्रभ हो पूछा.

‘‘हां.’’

‘‘बेटे की शादी का क्या हुआ?’’

‘‘बहू को अंगूठी पहना आए हैं.’’

‘‘अरे, बधाई हो. आप इतनी अच्छी खबर इतने दुखी मन से क्यों सुना रही हो?’’

‘‘वह लड़की असम की ईसाई है. चाइनीज जैसी दिखती है.’’

‘‘कोई बात नहीं,’’ शीतल ने कहा, ‘‘दिल मिलने चाहिए. अच्छा, आप का खाना वगैरह…’’

‘‘खाना हम प्लेन में खा चुके हैं.’’

‘‘अच्छा, आप कल दोपहर लंच पर हमारे घर आइए. संडे है, आराम से बैठेंगे, बातें करेंगे.’’

दूसरे दिन भारत से लाए बीकानेर वाले की मिठाई का डब्बा और सेंनली की फोटो व वीडियो फिल्म ले कर वे दोपहर में उन के घर पहुंच गए. शीतल व उस के पति ने बड़ी दिलचस्पी से उन की होने वाली बहू की तसवीरों को निहारा. उन के बेटे की पसंद की दाद दी, ‘‘इस तरह की शादियां हमारे देश में होनी चाहिए. अब नई पीढ़ी के लोग ही ऐसी अंतरजातीय शादियां रचा कर हिंदुस्तान से जातिधर्म के भेदभाव को दूर कर सकेंगे. सदियों से पृथक हुई जातियां एकदूसरे से ऐसे ही जुड़ेंगी, परस्पर एकीकरण करेंगी.’’

35 साल की शीतल मेहरा ने खुद वेनू श्रीनिवासन से प्रेम विवाह किया था. वह पंजाबी थीं और वेनू दक्षिण भारतीय. 5 साल पहले वे शादी कर के मुंबई से कोपनहेगन आए थे. वेनू एक प्रतिष्ठित शिपिंग कंपनी में साफ्टवेयर प्रोफेशनल था. शीतल भी कोपनहेगन बिजनेस स्कूल से 2 साल का कोर्स कर के संयुक्त राष्ट्र की एक शाखा में नौकरी करने लगी थी. उन की 2 साल की प्यारी सी बच्ची भी थी. सुनीता शीतल के लिए बड़ी बहन जैसी और उस की बच्ची के लिए मौसी जैसी थीं.

एक दिन जब सुनीता, शीतल के साथ बैठी थीं, मन के ऊहापोह उस के सामने जाहिर करते हुए बोलीं, ‘‘शीतल, तुम मुझ से काफी छोटी हो. आजकल के जवान बच्चों के नए तौरतरीके मुझ से बेहतर समझती हो. तुला ने भी अपने लिए एक लड़का पसंद कर लिया है और मनु तो उस लड़की से पता नहीं कब से जुड़ा है…कहीं उन के बीच यौन घनिष्ठता…’’

‘‘आप को लगता नहीं कि भारतीय पुराने रीतिरिवाजों को अब थोड़ा बदलना चाहिए. आजकल आप की तरह 17-18 साल में तो लोगों की शादी नहीं होती. समाज में शादी की उम्र बढ़ रही है और लड़केलड़कियां प्यूबर्टी जल्दी हासिल कर रहे हैं. फिर टीवी, फिल्में व इंटरनेट का खुलाव…ऐसे में मातापिता अपने बच्चों से यह उम्मीद लगाएं कि उन के बच्चे 30-35 साल तक बिना सेक्स के रहें… मैं तो समझती हूं कि मातापिता स्वयं ही अपने बच्चों को उचित यौन शिक्षा दे कर उन्हें समझा दें ताकि उन के मन में बेवजह कोई गलत धारणा न पनपे, वे गलत राहों में न पड़ें.’’

‘‘शीतल…तुम्हारा भी वेनू से प्रेम काफी वर्षों तक चला था…उस दौरान कभी तुम दोनों के बीच…’’

एक पल के लिए शीतल ने सुनीता को निहारा. उन के प्रश्न को तौला. फिर बोली, ‘‘वैसे तो यह मेरा निजी मामला है पर आप की मनोस्थिति को समझते हुए बता देती हूं कि हां, हमारे बीच शादी से पहले कई बार सेक्स हुआ था. हमारे घर वाले हमारी शादी के पक्ष में नहीं थे क्योंकि हम अलगअलग जातियों के थे. शुरू के 2 साल तक तो हम ने अपने पर संयम रखा, फिर एक बार हम अपने किसी फें्रड के घर अकेले में मिले और वहां… फिर न तो कोई झिझक रही और न संयम ही…’’

सुनीता सोचने लगी कि शीतल व वेनू एक आदर्श व समर्पित पतिपत्नी हैं. वे डेनमार्क में बसे एक ऐसे भारतीय युगल हैं जिस पर हर किसी भारतीय को गर्व है.

‘‘सुनीताजी, आप का बेटा मनु एक परिपक्व व पढ़ालिखा लड़का है. आप बेवजह की शंकाएं पाल कर टेंशन मत लीजिए.’’

अगर ऐसे मित्र मिल जाएं जो मन का बोझ हलका कर दें तो चाहिए ही क्या…सुनीता ने अपना मोबाइल उठाया. सीधे भारत बेटे को फोन मिलाया. पहले उस से कुछ इधरउधर की बातें कीं, फिर उस से चुहल करते हुए बोलीं, ‘‘तू अपनी सेंनली से मिल कर अपनी शादी की कोई तारीख तय कर के हमें बता दे. हम पहुंच जाएंगे तेरी शादी में भारत…’’

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...