बिहार के बेगूसराय में 9 मार्च को कन्हैया ने पर्चा दाखिल किया तो उन के पीछे उमड़ी बेतहाशा भीड़ ने पटना से ले कर दिल्ली तक को चौंका दिया. चौंकाया ही नहीं बल्कि भयभीत कर दिया. बौलीवुड से ले कर जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के कई छात्र नेता बेगूसराय में कन्हैया की रैली में नजर आ रहे थे. रैली में जिग्नेश मेवाणी, गुरमेहर, स्वरा भास्कर, शबाना आजमी, जावेद अख्तर, शेहला राशिद जैसे पोपुलर चेहरे मौजूद थे. जिधर देखो उधर ही भीड़ लाल झंडों के साथ नजर आ रही थी.

कन्हैया बेगूसराय लोकसभा सीट से भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के उम्मीदवार हैं और भाजपा के गिरिराज सिंह उन के सामने हैं.

गिरिराज सिंह बेगूसराय से मौजूदा सांसद हैं. माथे पर तिलक और जुबान पर हिंदुत्व का जाप करने वाले गिरिराज सिंह का बड़बोलापन सुर्खियों में रहा है. इन दोनों नेताओं के बीच दिलचस्प मुकाबला देखने को मिल रहा है.

दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्रसंघ के अध्यक्ष रहे कन्हैया कुमार फरवरी 2016 से उस वक्त से सुर्खियों हैं जब उन पर कश्मीर की कथित आजादी के नारे लगाने के आरोप चस्पा हुए थे और बाद में देशद्रोह के आरोप में जेल भेज दिया गया था. हालांकि बाद में उन की जमानत हो गई थी.

कन्हैया तब से केंद्र सत्ता की ताकत से टक्कर ले रहे हैं. भाजपा और संघ के विचारों को लगातार चुनौती दे रहे हैं. सत्ता भी उन ने घबरार्ई हुई है इसलिए झूठों की सेना को यह चेहरा रास नहीं आ रहा है. वह कट्टरपंथियों के लिए किरकिरी बने हुए हैं.

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कन्हैया के खौफ से केंद्र सरकार पिछले दो ढाई साल से उन्हें हर मोर्चे पर घेरने की कोशिशें करती दिखाई दे रही है. भाजपा उन्हें हर संभव रोकने के षड्यंत्र में जुटी दिखार्ई दी है. कन्हैया को देशद्रोही साबित करने की पूरी कोशिशें की जा रही हैं.

गिरिराज सिंह ही नहीं, दिल्ली से भी उन्हें घेरने और रोकने के पूरे प्रयास किए गए. जेएनयू में देश विरोधी नारे लगाए जाने के मामले में कन्हैया कुमार समेत अन्य के खिलाफ बिना दिल्ली सरकार से मंजूरी लिए चार्जशीट दाखिल करने पर दिल्ली पुलिस को अदालत की फटकार सुननी पड़ी. केंद्र के अधीन दिल्ली पुलिस ने आननफानन में कन्हैया के खिलाफ आरोपपत्र दाखिल कर दिए थे.

अदालत को कहना पड़ा कि इस मामले में पुलिस इतनी जल्दबाजी क्यों कर रही है. कोर्ट ने कहा कि जब तक दिल्ली सरकार चार्जशीट दायर करने की मंजूरी नहीं देती, तब  तक हम इस पर संज्ञान नहीं लेंगे.

दिल्ली पुलिस केंद्र सरकार के अधीन है इसलिए विपक्ष का आरोप है कि कन्हैया को जानबूझ कर रोकने की कोशिश की जा रही है ताकि वह चुनाव न लड़ पाए और जैसेतैसे अयोग्य घोषित किया जा सके.

दरअसल 9 फरवरी 2016 को जेएनयू कैंपस में अफजल गुरु और मकबूल भट्ट के फांसी के विरोध में आयोजित कार्यक्रम के दौरान कथित देश विरोधी नारे लगाने के मामले में पुलिस ने पटियाला हाउस कोर्ट में चार्जशीट दाखिल की थी. पुलिस ने उस वक्त दिल्ली के वसंत कुंज थाने में कन्हैया कुमार, उमर खालिद और अनिर्बान भट्टाचार्य के खिलाफ मामला दर्ज कर उन्हें गिरफ्ïतार किया था. बाद में सभी आरोपियों को दिल्ली हाईकोर्ट ने सशर्त जमानत दे दी थी.

देशद्रोह के मामले में सीआरपीसी की धारा 196 के तहत जब तक सरकार मंजूरी नहीं दे देती तक तक कोर्ट चार्जशीट पर संज्ञान नहीं सकता.

गिरिराज सिंह अपने प्रतिद्वंद्वी कन्हैया को नीचा दिखाने और अपने कट्टर हिंदूवादी विचारों को जाहिर करने से बाज नहीं आ रहे हैं. वह अपनी सभाओं में प्रतिद्वंद्वी कन्हैया को घेरने की कोशिश कर रहे हैं. कन्हैया को देशद्रोही, पाकिस्तान समर्थक, हिंदूद्रोही जैैसी अनगिनत बातें कह कर मतदाताओं का समर्थन हासिल करने का प्रयास कर रहे हैं.

हालांकि कन्हैया के सामने आने से गिरिराज खुद घिर गए हैं. एक तो अपने विचारों को ले कर, दूसरा, पार्टी के भीतर ही अपने विरोध से.

गिरिराज सिंह का उन की पार्टी के भीतर ही विरोध खुल कर सामने आ रहा है. शुरू में लोगों ने उन की उम्मीदवारी का ही विरोध किया था.

why bjp afraid of kanhaiya

कन्हैया को वो ताकतें रोकने के षड्यंत्र रच रही है जो अमानवीय धर्म की पक्षधर है और लोकतंत्र की जगह देश को पौराणिक परंपराओं, नियमकायदों के आधार पर चलाना चाहती है. पुराणों के ऐसे नियम जो ऊंचनीच, भेदभाव आधारित हैं. ये ताकतें धर्म का राज स्थापित करना चाहती है.

कन्हैया की राह में इसलिए कांटे बोए जा रहे हैं क्योंकि वह भाजपा और संघ की अलोकतांत्रिक विचारधारा का विरोध करते हैं. जाति, धर्म के पैराकारों को ललकारते हैं. वह अपने चुनाव प्रचार में जाति, धर्म के आधार पर वोट नहीं करने की अपील करते हैं. वह कहते हैं कि देश में एक खास तरह की विचारधारा थोपने की कोशिश की जा रही है.

कन्हैया के भाषण लोगों को आकर्षित करते हैं. यह उन की वैचारिक पहचान है. जब वह बोलते हैं तो लोग सांस थाम लेते हैं. तर्क और तथ्यों से अपनी बात कहते हैं और विरोधी का मुंह बंद करा देते हैं. राजनीतिक तौर पर परिपक्व कन्हैया को देश की राजनीति और सामाजिक समझ गहरी है. उन्होंने सड़ीगली सामाजिक व्यवस्था देखी ही नहीं, स्वयं झेली हैं.

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कन्हैया के सवालों पर भाजपा घबराती है. भाजपा को डर इसलिए है क्योंकि कन्हैया राजनीति के परंपरागत ढांचे में हस्तक्षेप कर रहे हैं. वह सदियों पुरानी जमीजमाई ब्राह्ïमणवादी ताकतों की बेखौफ हो कर पोल खोल रहे हैं.

कन्हैया वे मुद्दे उठाते हैं जिन से देश की जनता चिंतित हैं. संवैधानिक मूल्यों और भारतीय संविधान के लिए खतरा, बेरोजगारी, धर्मांधता, जातीय भेदभाव, असमानता, अमीरीगरीबी, मौब लिंचिंग, अभिव्यक्ति की आजादी, किसानों की आत्महत्या. इन मुद्दों से भाजपा और कांग्रेस को भी परहेज है इसलिए यह युवा नेता इन के लिए खतरा हैं.

कन्हैया कुमार जिस जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में पढे हैं वह शुरू से ही वामपंथी विचारों का गढ रहा है. यहां आजादी के नारे का मतलब तमाम पुरातनपंथी, सामंतवादी और दमनकारी व्यवस्थाओं से आजादी है. जेएनयू में छात्रों के बीच रातरात भर कैंपस के ढाबों में राजनीतिक, सामाजिक बहसों का दौर चलता रहा है.

केंद्र में भाजपा की सरकार आने के बाद राजनीतिक, सामाजिक विमर्श और बहसों के ऐसे केंद्रों को नेस्तनाबूद करने की कोशिशें शुरू हो गईं. बदले में गोरक्षा, वंदेमातरम, राममंदिर निर्माण, झूठे राष्टवाद, देशभक्ति जैसी दुकानों को खुल कर प्रोत्साहन दिया जाने लगा. धर्म के नाम पर नफरत का कारोबार परवान चढाने वालों को अवतार, उद्घारक, मसीहा घोषित कर दिया गया.

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यानी देश को आगे के बजाय सैंकड़ों साल पीछे की ओर ले जाने वाली व्यवस्था को लागू करने करने के प्रयास होने लगे. कन्हैया कुमार ने ऐसी व्यवस्था और उस के पैरोकारों को चुनौती देनी शुरू कर दी.

कन्हैया के खिलाफ नकारात्मक प्रचार की आंधी चलाई गई. मानो वह कोई बहुत बड़ा अपराधी है. वह झूठे राष्टवादियों से कहीं अधिक सच्चा और पक्का देशभक्त हैं. उन में देशभक्ति का दिखावा नहीं है.

असल में जब शासक विचारों से डरने लगे, उदार लोकतांत्रिक विचारकों पर हमलावर हो जाए तो इस का अर्र्थ है वे भयभीत हैं. हर नागरिक को अपने विचारों के अनुसार राजनीतिक गतिविधियां करने की आजादी है और सामान्य रूप से अपनी बात को कहने की स्वतंत्रता है, यह सब कुछ हमें संविधान, लोकतंत्र और उन से उपजी संस्थाओं से मिलता है पर ‘वसुधैव कुटुंबकम का मंत्र जपने वाले लोग अपने ही देश के नागरिकों को मौलिक अधिकारों के हनन और अपने पुरातनपंथी विचार थोपने पर आमादा है. कन्हैया जैसे नेता उन की काट है.

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