बौलीवुड में अक्षय कुमार एक मात्र ऐसे कलाकार हैं, जो लगातार व्यावसायिक फिल्मों के साथ साथ लीक से हटकर विषयों व सच्चे घटनाक्रमों पर आधारित फिल्में भी करते आ रहे हैं. फिर चाहे वह ‘एयरलिफ्ट’ हो या ‘रूस्तम’ या ‘ट्वायलेट एक प्रेम कथा’ हो या ‘पैडमैन’. अब वह सत्य घटनाक्रम यानी कि ‘सारागढ़ी के युद्ध’ पर फिल्म ‘‘केसरी’’ लेकर आ रहे हैं. अनुराग सिंह निर्देशित फिल्म ‘‘केसरी’’ होली के अवसर पर 21 मार्च को सिनेमा घरों में पहुंच रही है.
सारागढ़ी के युद्ध पर आधारित फिल्म ‘‘केसरी’ ’को आप महज एक युद्ध वाली फिल्म मानते हैं?
हकीकत में यह फिल्म ‘‘युद्ध’’ पर आधारित ही है. पर यह इमोशनल बहुत है. यह फिल्म 21 सिख जवानों की कहानी है. जो कि जानते थे कि उनकी मृत्यू निश्चित है. उस वक्त उनके पास वहां से भागने का मौका था, पर इन सैनिकों ने भागने की बजाय अपनी मातृभूमि के लिए दुश्मनों से लड़कर अपनी जान न्यौछावर करने का विकल्प अपनाया. वह जानते थे कि दस हजार अफगान सैनिकों से उन 21 जवानों के लिए लड़ना संभव नही है, पर उन्होंने अपनी तरफ से अफगान सैनिकों को किले के अंदर घुसने से रोकने के लिए लड़ा. अफगान सैनिक सोच रहे थे कि सैनिकों की नई खेप आने से पहले ही हम आधे घंटे के अंदर इन 21 जवानों को खत्म कर देंगे. मगर ईश्वर सिंह के नेतृत्व में इन 21 जवानों ने निर्णय ले लिया था कि हम इन्हें किसी भी सूरत में अंदर घुसने नहीं देंगे. वह सुबह नौ बजे से लेकर शाम के छह बजे तक लड़े. जब वह अंदर घुसे तभी सैनिकों का दूसरा दल आ गया और अफगान सैनिकों को वहां से भागना पड़ा था. मेरी सोच कहती है कि इसमें एक सैनिक के माइंड सेट और उसकी मानसिक सोच की कहानी है. हम लोग युद्ध की बात समझते हैं पर एक सैनिक के दिमाग में क्या चल रहा होता है, इसके बारे में हम नहीं जानते. हमारी फिल्म ‘केसरी’ दषर््ाकांे को उस यात्रा पर भी ले जाती है कि उस वक्त जवानों ने अपने दिमाग में क्या सोच रखा था.
फिल्म के निर्देशक अनुराग सिंह ने इस बात को लेकर काफी शोध किया. मैं तो चाहूंगा कि आप बड़े शब्दों में लिखें कि मैं अपली करता हूं कि हर माता पिता अपने बच्चों को यह फिल्म जरुर दिखाए. क्योंकि यह आपका अपना इतिहास है. आपके अपने वतन के इतिहास का हिस्सा है. इतिहास हर बच्चे को देश के भविष्य के बच्चों को पता होना चाहिए कि कैसे यह 21 जवान लड़े थे. यह दुःख की बात है कि ‘सारागढ़ी के इस युद्ध’ का हमारी इतिहास की किताबो में जिक्र ही नही है. हमारे इतिहास में अब तक छात्रों को यह पढ़ाया नहीं गया. आज हमें अचसर मिला कि मैं इस कहानी को फिल्म के माध्यम से लोगों के सामने लेकर आउं, जिसे मैंने पूरी इमानदारी के साथ अंजाम दिया है.
आप शायद न जानते हो मगर जब मैने फिल्म ‘‘एयर लिफ्ट’’ बनायी, उस वक्त इस कहानी के बारे में किसी को नहीं पता था. उस वक्त तक एक खबर छपी थी. मगर आज ‘एयरलिफ्ट’ को लेकर एक लाख लेख कई पन्ने भरे जा चुके हैं. अब धीरे धीरे ‘सारागढ़ी’ पर भी कई लेख आ गए है. मैं चाहता हूं कि सारागढ़ी के युद्ध पर ज्यादा से ज्यादा लेख छपें. इन 21 जवानों की कथा इतिहास के पन्नों में हमेशा हमेशा के लिए अमर रहे.
तो क्या आप मानते हैं कि एक सैनिक किसी भी युद्ध को महज हथियार के बल पर नहीं बल्कि अपनी दिमागी सोच यानी कि अपने माइंड सेट की वजह से जीतता है?
जी हां! आपने एकदम कटु सत्य को पकड़ा है. मैं मानता हूं कि यदि एक सैनिक अपने मन में निश्चय कर ले तो फिर उसे हराना बहुत मुश्किल है.
आपने एयरलिफ्ट, रूस्तम या केसरी जैसी सत्य घटनाक्रमों पर आधारित फिल्में करते हैं. तब आपके उपर कितना दबाव रहता है. दूसरे लोग जब इसी तरह की फिल्में करते हैं, तो उन पर कई तरह के आरोप लगते रहे हैं?
देखिए हम जितनी कोशिश कर सकते हैं उतनी इमानदार कोशिश करते हुए सच को ही अपनी फिल्म का हिस्सा बनाते हैं. अब जैसे कि आप फिल्म ‘‘केसरी’ को लें. तो इस फिल्म के निर्देशक व लेखक अनुराग सिंह ने काफी शोध करके इसकी पटकथा लिखी. मैं इस फिल्म का सारा श्रेय उन्हे ही देता हूं. देखिए,मैं हर साल चार फिल्में करता हूं तो स्वाभाविक तौर पर हर फिल्म पर मैं उतना ध्यान नहीं दे सकता. इसलिए मेरी हर फिल्म के लिए सारा रिसर्च करने वाले निर्देशक या लेखक ही होते है. पर हम जिम्मेदारी से ही काम करते हैं. हम किसी की फिलिंग को हर्ट करने का प्रयास कभी नहीं करते. वैसे भी देखा जाए तो कोई भी फिल्मकार या कलाकार किसी की फींलिंग को हर्ट नहीं करता फिर भी कई बार अनजाने में ऐसा हो जाता है. अगर वह माफी मागते हैं तो उसे माफ कर आगे बढ़ना चाहिए. यह नहीं कि उसको हम खींचते रहे. ‘केसरी’के निर्माण से पहले कई किताबें पढ़ी गयी काफी शोध किया गया.
कहानी ‘सारागढ़ी युद्ध’ की है, तो फिर पर फिल्म का नाम ‘केसरी’ रखने के पीछे सोच क्या रही?
केसरी का रंग बहादुरी का, शौर्य का, वीरता का प्रतीक है. यह कलर आफ वार है. इसलिए इससे बेहतर नाम सूझा ही नहीं.
फिल्म‘‘केसरी’’के एक्शन दृश्य को लेकर क्या कहना चाहेंगे?
इस फिल्म का एक्शन बहुत अलग है. हमने इसमें सिख, सरदारों का जो मार्शल आर्ट का फार्म है-गटका’, उसका उपयोग किया है, जिसके लिए हमें ट्रिनंग भी लेनी पड़ी. उस वक्त की लड़ाई गटका से लड़ी गयी थी. सरदारों को पकड़ना मुशिक्ल था. वह घूम घूम कर अपने शत्रु पर वार करते थे. उनकी तलवार ही बीस से बाइस किलो की होती थी. उनकी पगड़ी ही सवा किलो की वजन की होती थी.
आपके करियर में एक खास बात नजर आती है कि आप जिस विषय वाली फिल्म से जुड़ते हैं, वह जल्द बन जाती हैं, जबकि दूसरे लोग सिर्फ योजना बनाते रह जाते हैं. ‘सारागढ़ी के युद्ध’पर तीन दूसरे फिल्मकार पिछले चार वर्षों से भी अधिक समय से फिल्म बना रहे हैं, पर अब तक नहीं बना पाए. आप ‘केसरी’ लेकर आ गए. इसी तरह स्पेस पर भी दो फिल्में चार साल से बन रही हैं पर नही बन पायी. आपने स्पेस फिल्म ‘मंगल यान’’ की शूटिंग पूरी कर चुके हैं?
शायद मैं लक्की हूं दूसरो की फिल्में क्यों रूक जाती हैं, पता नही.मैं खुद को भाग्यशाली मानता हूं कि मुझे अच्छे लोग मिल जाते हैं और हम तीन माह कें अंदर फिल्म पूरी कर लेते हैं.
गत वर्ष आपकी दो महत्वपूर्ण फिल्में ‘‘ट्वायलेट एक प्रेम कथा’’ और ‘‘पैडमैन’’ आयी. दोनों ही फिल्में औरतों की सुरक्षा व उनके आत्म सम्मान से जुड़ी फिल्में रही. इन फिल्मों के प्रदर्शन के बाद कोई खास प्रतिक्रिया मिली हो जिसने आपके दिल को भी छू लिया हो.
मैं एक किस्सा बताना चाहूंगा, जो कि पंजाब में रह रहे मेरे एक दोस्त के साथ घटी थी. एक रात डेढ़ बजे मेरे दोस्त की बेटी ने अपनी मां से कहा कि मेरे पीरियड शुरू हो गए हैं. और मैं सैनेटरी पैड लाना भूल गयी. डेढ़ बजे सैनेटरी पैड कैसे आए. क्योंकि 24 घंटे खुली रहने वाली दवा की दुकान उसके घर से 18 किलोमीटर दूर थी. मेरे दोस्त ने जब अपनी बेटी की बात सुनी तो वह तुरंत घर से निकलकर गया और अपनी बेटी को सैनेटरी पैड लाकर दिया. एक पिता अपनी बेटी को सैनेटरी पैड लाकर दिया.उसने मुझे बताया कि उसे यह प्रेरणा मेरी फिल्म ‘‘पैडमैन’’ की वजह से ही मिली थी. मेरं दोस्त ने मुझसे कहा- अक्षय वह दिन है और आज का दिन है, मेरी बेटी अपने मन की हर बात मुझसे करती है. मेरी बेटी मुझसे बहुत प्यार करती है. यह होता है फिल्म का असर. मैं बहुत खुश हूं कि अब बडे शहर में इसको लेकर टैबू नही रहा. अब लोग इस पर खुलकर बात करने लगे हैं. यह जो बदलाव है, वह मेरी या आपकी नहीं बल्कि सिनेमा की ताकत है. सिनेमा से ही बदलाव आता है.
हम बौलीवुड वाले हौलीवुड से इतना डरे हुए क्यों रहते हैं. सभी हौलीवुड फिल्म ‘‘अवेजर’’ को लेकर सहमें हुए हैं?
उनकी फिल्मों का बजट बहुत बड़ा है. उस तरह की फिल्में भारत में नहीं बन रही हैं, इसलिए एक डर तो रहेगा.वह हमारा काफी बिजनेस खा जाते हैं. हमारे पास उस स्तर की फिल्में बनाने के लिए नहीं है. यदि हमें उनकी तरह बजट मिले तो हम उन्हे डरा दें. जिस बजट में उनकी फिल्में बनती हैं. उसके एक प्रतिशत के बजट में हम फिल्म बनाकर लाभ कमाते हैं. हमें सीधा देखना चाहिए. मैं यह मानता हूं कि उनकी फिल्मों में इमोशन कम होता है और हमारी फिल्मों में इमोशन बहुत होता है.
चांदनी चैक,दिल्ली से चुनाव लड़ने की खबरें भी रही है?
बिलकुल गलत खबर है. यदि ऐसा होता तो मैं खुद ही बता देता.
पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के संग आपकी काफी नजदीकियां हैं?
नही.. मेरी नजदीकियां अच्छे कार्य से है.
आप ऐतिहासिक फिल्म ‘‘पृथ्वीराज चैहाण’’ कर रहे हैं?
हां डां.चंद्रप्रकाश द्विवेदी के निर्देशन में यह फिल्म कर रहा हूं. इस साल के अंत में हम इसकी शूटिंग शुरू करेंगे. निर्देशक से बात हुई. वह बहुत अच्छी जानकारी रखते हैं.
आपकी रूचि इतिहास में कितनी है?
इतिहास, रामायण, महाभारत की कहानियां सुनने में मजा आता है. शूरवीर वाली कहानी सुनने में बहुत मजा आता है.
आने वाली फिल्में?
‘मंगलयान’, ‘सूर्यवंशी’ कौमेडी फिल्म ‘हाउसफुल 4’, ‘पृथ्वीराज चैहाण और एक हौरर फिल्म कर रहा हूं
‘हेराफेरी 3’ भी कर रहे हैं?
नहीं..हेरा फेरी 3 नहीं कर रहा.