जयपुर घराने के गजल गायक मोहम्मद वकील को संगीत विरासत में मिला है. उनके परदादा और दादा संगीत जगत की मशहूर हस्तियां थीं. उनके पिता ने जरुर संगीत से दूरी बनाकर बतौर टूरिस्ट गाइड काम किया, मगर मोहम्मद वकील ने अपने मामा और मशहूर संगीतज्ञ उस्ताद अहमद हुसैन, उस्ताद मोहम्मद हुसैन के शागिर्द बनकर संगीत जगत में एक अलग पहचान बना ली है.

Mohammed Vakil biography music need soul

मोहम्मद वकील ने 1997 में टीवी के रियालिटी शो ‘‘सारेगामापा’’ का हिस्सा बनकर पूरी दुनिया को अपनी प्रतिभा से परिचित करवाया था. उसके बाद से अब तक उनके ग्यारह गजल अलबम आ चुके हैं. मोहम्मद वकील ने यशराज चोपड़ा की फिल्म ‘‘वीरजारा’’ और टीवी सीरियल ‘‘बिखरी आस निखरी प्रीत ’’ में पार्श्वगायन भी किया था. इन दिनों वह अपने सिंगल गीत ‘‘वजूद’’ को लेकर चर्चा में हैं.

आपने संगीत सीखना कब शुरू किया था?

मैंने बचपन से ही संगीत का माहौल देखा. मेरे डीएनए में संगीत है. मैंने अपने मामा उस्ताद अहमद हुसैन को बचपन से अपने शागिर्दों को संगीत सिखाते देखा. वह मेरे गुरू व सगे मामा हैं. उनकी बेटी से ही मेरी शादी हुई है. मैंने उन्हीं से संगीत सीखा.

फिर मेरी जिंदगी में ‘सारेगामापा’ आ गया. उसके बाद एमपी साल्वे साहब ने जनवरी 2001 मुझे जयपुर में सुनने के बाद अपने बंगले में मुझे लता मंगेशकर जी के सामने गवाया. मैंने जब लता जी का चरण स्पर्श किया, तो उन्होंने कहा कि उन्होंने मुझे सारेगामा में सुना था और उन्होंने मेरे गायन की तारीफ की. यह मेरे लिए बहुत बड़ा अवार्ड था. मेरे परिवार में मेरे अलावा दो भाई भी गजल गाते हैं. हमारे यहां औरतों के गायन पर प्रतिबंध है. मेरे बेटे गाते हैं.

अपनी अब तक की संगीत यात्रा को आप किस तरह से देखते हैं?

मैं अपने आपको भाग्यशाली मानता हूं कि 1998 में मैं टीवी के रियालिटी शो ‘सारेगामापा’ का विजेता बना, जिसके जज थे पंडित जसराज, खय्याम, हरि प्रसाद चौरसिया, नौशाद, कल्याण जी आनंद जी और जगजीत सिंह. इसके अलावा मैंने यश चोपड़ा की फिल्म ‘‘वीर जारा’’ में उस्ताद के साथ एक कव्वाली ‘आया तरे दर पे दीवाना..’ गाया था.

अब तक दस अलबम बाजार में आ चुके हैं. अब मेरा सिंगल गाना ‘वजूद’ जी म्यूजिक पर आया है. सबसे पहले ‘जी म्यूजिक’ ने 1998 में एक अलबम ‘सारेगामापा फाइनलिस्ट’ रिलीज किया था. उसके बाद ‘मैग्ना साउंड’ ने ‘कसक’ सहित दो अलबम रिलीज किए. फिर टाइम्स म्यूजिक कंपनी से दो अलबम ‘गुजारिश’ और ‘मौला का दरबार’ आए. उसके बाद ‘फलसफ़ा’ अलबम आया. उसके बाद ‘पहली नजर’ और ‘तेरा ख्याल’ अलबम आए. खय्याम साहब के लिए प्ले बैक किया है. एक टीवी सीरियल ‘बिखरी आस निखरी प्रीत’ मेंं मैंने व अलका याज्ञनिक ने मिलकर गाया था. मैं फिल्मों में भी गाना चाहता हूंं अब जी म्यूजिक पर सिंगल गाना ‘वजूद’ आया है.

इस सिंगल गाने का नाम ‘‘वजूद’’ क्यों?

इस अलबम का नाम मैंने ‘वजूद’ इसलिए रखा, क्योंकि मेरी सोच यह कहती है कि हर इंसान का वजूद उसके माता पिता से और खासकर पिता से बनता है.

सिंगल गाने ‘वजूद’ पर विस्तार से बताएंगे?

यह गीत विश्व के सभी पिताओं को समर्पित है. हर पिता अपनी औलाद को बेहतरीन परवरिश देने की कोशिश करता है. लोग हमेशा मां के गुणगान गाते हैं. मेरी राय में हर इंसान की जिंदगी में उसकी मां का योगदान बहुत बड़ा होता है. पर पिता के योगदान को नकारा नहीं जा सकता. एक बच्चे को बड़ा करने में पिता जो तकलीफें होती हैं, जो कुर्बानी होती हैं, उन्हें कमतर नहीं आंका जाना चाहिए. एक बच्चे की परवरिश में उसके पिता का दर्द मिला होता है. इसलिए मैंने अपने इस गाने को संसार के सभी पिताओं को समर्पित किया है. जिससे उनका दर्द उनकी पीड़ा लोगों के सामने आ सके, इस गाने में सभी पिताओं का दर्द उनकी पीड़ा शामिल है. इसे शकील आजमी ने लिखा है.

आपकी जिंदगी में आपके पिता की क्या भूमिका रही?

हमारे पिता ने हमें बहुत मुश्किल से पाला है. उन्होंने हमारे लिए जो तकलीफ उठाईं, उसे मैं कभी भुला नहीं सकता. उनकी तकलीफों को ही मैंने इस गीत में पिरोया है. मेरे पिता जयपुर में टूरिस्ट गाइड थे. लेकिन मेरे दादा, परदादा वगैरह गायक थे. हमें याद है कि कई बार हमारे पास पहनने के लिए कपड़े नहीं हुआ करते थे, तब मेरे पिता किस तरह से इंतजाम करते थे.

आपके दादाजी गायक थे. पर आपके पिता ने संगीत नहीं चुना. तो फिर आपने संगीत क्षेत्र क्यों चुना?

हमारे यहां छह पीढ़ियों से संगीत चला आ रहा है. पर संगीत किसी के ऊपर थोपा नहीं जा सकता. मेरे पिता ने संगीत को नही अपनाया. पर मैंने बचपन से अपना लिया था. मुझे लगता है कि मेरे परिवार में जिस तरह से लोग संगीत से जुडे़ हुए थे, उसके चलते मैं कुदरती तौर पर संगीत से जुड़ा. सात वर्ष की उम्र में मैंने बतौर बाल कलाकार गाया था और मुझे संगीतकार जयदेव के हाथों अवार्ड मिला था.

बचपन में तो मैं संगीत सुने बिना और बिना रियाज किए सो नहीं सकता था. मुझे दीवानगी की हद तक संगीत से प्यार है. मेरे पिता ने भले ही संगीत को करियर नहीं बनाया, पर वह शौकिया गाते थे. और मुझे भी आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया.

जब आप किसी गजल को गाने के लिए चुनते हैं, तो किस तरह की चीजों पर ध्यान देते हैं?

मैं सबसे पहले गजल के शब्दों पर गौर करता हूं. फिर उसके अर्थ क्या हैं? वह समझता हूं. फिर यह सोचता हूं कि लोगों तक यह गजल क्यों पहुंचनी चाहिए. उसके बाद उसकी ग्रामर पर भी ध्यान देता हूं. देखिए, हर गजल में कुछ न कुछ संदेश जरूर होना चाहिए. दूसरी बात मुशायरे में जो हम गाते हैं, वह अलग होता है.

पर अलबम के लिए या सिंगल गाने के लिए जो गाते हैं, वह अलग होता है. इसके अलावा उसकी धुन अच्छी बननी चाहिए. फिर उसका वीडियो वगैरह भी अच्छा बनना चाहिए.

शायरी या गजल को समझना आसान नहीं होता है, यह आपके अंदर कहां से आया?

यह सब हमारे उस्ताद द्वारा हमें दी गयी शिक्षा का परिणाम है. हमारे उस्ताद ने बताया कि शायरी क्या होती है? गजल क्या होती है? मोमिन का एक शेर है, जिसके लिए मिर्जा गालिब ने कहा था – ‘मेरा पूरा दीवान ले ले, पर मुझे यह शेर दे दे.’ मेरा शायरों के साथ उठना बैठना बहुत रहा है. ‘चुपके चुपके रात दिन आंसू बहाना याद है..’ अब इसमें कहां पर हमें शब्दों को तोड़ना है, यह भी हमें सिखाया गया.

अहमद फरहाज की गजल है – ‘अबकी हम बिछड़े तो,शायद कभी ख्वाबों में मिलें.’’
शायरों ने मुझे लफ्जों को तोड़ना सिखाया. शायरों के साथ यदि आप समय बितायें तो आपकी जिंदगी बन सकती है. हसरत जयपुरी और मेरे नाना जी बहुत अच्छे दोस्त थे. तो मुझे हसरत जयपुरी के साथ भी उठने बैठने और बहुत कुछ सीखने का मौका मिला. हसरत जयपुरी से तो मेरे उस्ताद साहब ने भी बहुत कुछ सीखा था. और मैंने भी सीखा.

किस शायर ने आपको प्रभावित किया?

बशीर बद्र बहुत पसंद हैं और वसीम बरेली. एक गजल है – ‘‘कहां सवार कहां आजाद होता है, मोहब्बतों में कब इतना हिसाब होता है, बिछुड़ कर मुझसे तुम अपनी कशिश मत खो देना, उदास रहने से चेहरा खराब होता है.’’ यह मुझे बहुत पसंद है.

‘यह दिल में कसक रह गयी’ मैंने वसीम बरेली की गजलों को बहुत गाया है.

संगीत नाटक अकादमी क्या करती है?

राजस्थान संगीत अकादमी ने मुझे अवार्ड दिया है. लेकिन इस संस्था से किसी भी कलाकार को फायदा नही होता है. इस संस्था से जुड़े लोग सिर्फ बातें करते हैं. इनका कर्तव्य बनता है कि प्रतिभाशाली कलाकारों को प्रमोट करें, पर ऐसा नहीं होता है. मुझे आकाशवाणी और दूरदर्शन से सहारा मिला.

सिनेमा से गजल गायब हो गयी है?

जी हां!!यह बहुत दुःख की बात है. पर कुछ समय से कव्वाली पुनः फिल्मों में आ रही है. जरुरत है कि कव्वाली के साथ साथ गजल को भी पुनः फिल्मों में लाया जाए.

आप टीवी के रियालिटी शो ‘‘सारेगामापा’’ का हिस्सा रहे हैं. क्या टीवी के रियालिटी शो से फायदा होता है?

जिनमें टैलेट है, उन्हें फायदा होता है. जो सिर्फ रो धोकर अपने परिवार की कमियों का बखान कर जनता का वोट बटोरते हैं, उनको फायदा नहीं होता. मेरी राय में टीवी के रियालिटी शो में पब्लिक वोट के आधार पर विजेता नहीं चुना जाना चाहिए. बल्कि यह अधिकार जजों को मिलना चाहिए. जो लोग सीखकर आते हैं, उनका तो इससे फायदा हो जाता है. क्योंकि उनके पास सबक व इल्म होता है. जो बिना सीखे आता है, वह लंबी उड़ान नहीं भर सकता. अफसोस की बात यह है कि लोग हमदर्दी के वोट बटोर कर जीत जाते हैं.

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