टिकट से ही नेता की वफादारी है, टिकट न मिलने पर नेता के सामने बगावत की लाचारी है. टिकट न मिले तो एक झटके में बगावत पर उतर आता है. वर्षों की वफादारी का गुणगान गालियों में तब्दील होते देर नहीं लगती. बगावती नेता अपनी ही पार्टी और नेतृत्व को खिलाफ आग उगलने लगता है.
विधानसभा चुनावों में बगावत का बवंडर उठ रहा है. इन दिनों 5 राज्य विधानसभा चुनावों में टिकट बंटवारा चल रहा है. टिकट की उम्मीद पर जिंदा जिन नेताओं को टिकट नहीं मिला, वह अपने नेताओं को गरियाता फिर रहा है. कल तक जो पार्टी उस के लिए मांईबाप थी, उस में वह अब हजार दोष भर गए हैं.
राजस्थान से ले कर मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और झारखंड तक में टिकट के बिना बगावत का शोर है. पार्टियों में बगावत के झंडे बुलंद हो रहे हैं. अनगिनत नेता बगावत के झंडे लिए घूम रहे हैं.
राजस्थान के रणबांकुरे स्वभाव से बगावती रहे हैं. अभी भाजपा के बगावतियों का गुस्सा शांत हुआ ही नहीं था कि कांग्रेस ने 152 उम्मीदवारों की लिस्ट जारी की तो प्रदेश भर में बगावत का शोर मच गया. यहां 30 से ज्यादा सीटों पर बगावत का डंका बज रहा है. भाजपा के 23 विधायकों सहित मंत्रियों को टिकट न मिलने पर समर्थकों सहित पार्टी कार्यालयों और बड़े नेताओं के यहां प्रदर्शन पर उतर आए थे.
राजधानी जयपुर से ले कर राज्य के अलगअलग इलाकों में विरोध प्रदर्शन हुए. बड़े नेताओं का घेराव किया गया. भाजपा में देवस्थान मंत्री राजकुमार रिणवां, जल संसाधन मंत्री सुरेंद्र गोयल का टिकट कटने से उन के समर्थकों ने जम कर हंगामा किया. पार्टी के प्रदेश महामंत्री कुलदीप धनकड़ ने पार्टी से ही इस्तीफा दे दिया. वह जयपुर की विराटनगर सीट से टिकट मांग रहे थे. भाजपा ने उन की जगह डा. फूलचंद को प्रत्याशी बना दिया.
उधर कांग्रेस की बात करें तो दिल्ली में नाराज नेताओं के समर्थकों ने राहुल गांधी के घर के बाहर प्रदर्शन किया. अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के कार्यालय के बाहर अशोक गहलोत और भंवर जितेंद्र सिंह की गाड़ियां रोक कर नारेबाजी की. सचिन पायलट को आक्रोश देखते हुए पिछले दरवाजे से निकलना पड़ा.
राजस्थान कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डा. बीडी कल्ला को टिकट नहीं मिलने पर समर्थकों ने बीकानेर की सड़कों पर प्रदर्शन किया. जयपुर के पार्टी कार्यालय के बाहर आक्रोश का माहौल था. जयपुर की पूर्व महापौर ज्योति खंडेलवाल को किशनपोल से टिकट न मिलने पर विरोध में पार्टी के सभी पदों से राहुल गांधी को सीधे इस्तीफा भेज दिया. कोटा, धौलपुर, फलौदी, बसेड़ी, शाहपुरा, लाडपुरा में गुस्से का नजारा देखा गया.
भाजपा ने पूर्व विदेश मंत्री जसवंत सिंह और उन के पुत्र को तवज्जो नहीं दी तो उन के पुत्र मानवेंद्र सिंह ने भाजपा का दामन छोड़ कांग्रेस का थामने में देरी नहीं की. मानवेंद्र सिंह को कांग्रेस ने हाथोंहाथ लिया और उन्हें प्रदेश की मुख्यमंत्री व सब से ताकतवर नेता वसुंधरा राजे के सामने उतार दिया.
प्रदेश में विधानसभा की 200 सीटें हैं. यहां 19 नवंबर को नामांकन की आखिरी तारीख है और 7 दिसंबर को मतदान होगा. जनसेवा के लिए टिकट चाहिए. बिना टिकट और कुर्सी के जनता की सेवा कैसे करें नेताजी? नेता की जान टिकट औैर फिर कुर्सी में बसी है. टिकट नहीं तो कुछ नहीं. नेता की टिकट से वफादारी, न मिली तो बगावत की लाचारी.