कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष राहुल गांधी जापानी युद्धकला अकीदों में ब्लैक बैल्ट हैं. यह सैल्फडिफैंस मार्शल आर्ट है. इस में सामने वाले को पटकनी देना सरल होता है. इस में खुद को नियंत्रित और एकाग्र रखना जरूरी होता है. इस कला में दुश्मन की एनर्जी को ही उस के खिलाफ प्रयोग किया जाता है. राहुल गांधी अब यही दांव राजनीति में अपना रहे हैं. यही वजह है कि वे अपनी किसी आलोचना से घबरा नहीं रहे.

राहुल गांधी अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उन की ही भाषा में जवाब दे रहे हैं. जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद को चौकीदार कहा तो राहुल ने चौकीदार की सजगता को मुद्दा बना कर राफेल डील, नीरव मोदी, अडानी और विजय माल्या जैसे तमाम मुद्दे उन के सामने रख दिए. जिस सीबीआई को भाजपा कांग्रेस के समय पिंजरे का तोता कह रही थी, उसे अब कांग्रेस ने भ्रष्टाचार से भी जोड़ दिया है.

ऐसे में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का खौफ भाजपा नेताओं के मन में गहरे पैठ गया है. भाजपा का एक वर्ग राहुल गांधी को ‘पप्पू’ और ‘बुद्धिहीन’ मानता है. इस के बाद भी भाजपा को पूरे देश में केवल राहुल गांधी का ही खौफ सता रहा है. राफेल डील से ले कर सीबीआई में मची रार पर राहुल गांधी के तर्कपूर्ण कटाक्षों को पूरा देश महसूस कर रहा है. आज राहुल गांधी अकेले ऐसे नेता हैं जिन का खौफ भारतीय जनता पार्टी के अंदर ही नहीं, मोदी सरकार के अंदर भी बैठ गया है.

सीबीआई में मची ऐतिहासिक लड़ाई के राजनीतिक मुद्दा बनते ही भाजपा के प्रचारतंत्र ने सीबीआई डायरैक्टर आलोक वर्मा को भी कांग्रेसी खेमे से जोड़ कर पूरे मामले में राहुल गांधी को जिम्मेदार बताना शुरू कर दिया. ऐसे में यह साफ दिखता है कि भाजपा केवल राहुल गांधी को ही अपने विरोध में खड़ा देख रही है. इस तरह वह उन को महामानव बनाने में लगी है.

भाजपा को यह पता चल चुका है कि वह अपने सब से उच्च शिखर तक पहुंच चुकी है. वहां से अब निकलने वाला रास्ता ढलान की तरफ ही जाता है. ऐसे में अगर राहुल गांधी विरोधी दलों को एकजुट करने या कांग्रेस को विकल्प के रूप में जनता के सामने पेश करने में सफल रहे तो मोदी का मैजिक फेल होते देर नहीं लगेगी. ऐसे में भाजपा राहुल गांधी को ही निशाने पर रख कर हर असफलता उन के माथे मढ़ना चाहती है. भाजपा की इस कोशिश में राहुल गांधी राजनीति के केंद्र बनते जा रहे हैं. राहुल की आलोचना ही उन की ताकत बन रही है. भाजपा के तमाम प्रयासों के बाद भी देश की जनता अब ‘पप्पू’ यानी राहुल गांधी को जुझारू नेता मान रही है.

दांव पर मोदी का मैजिक

अगर देश की जनता भाजपा के साथ है और देश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता बरकरार है तो राहुल गांधी से इस तरह के खौफ की वजह क्या हो सकती है? असल में मोदी सरकार ने साढ़े 4 साल जिस तरह से सरकार चलाई उस में जनता को राहत देने वाला कोई काम नहीं हुआ. महंगाई, आधारकार्ड, जीएसटी और नोटबंदी जैसे काम जनता के लिए सिरदर्द साबित हुए. बैंक सेवक नहीं, बल्कि मालिक हो गए.

भाजपा को एहसास हो रहा है कि साढ़े 4 सालों के सरकार के निक्कमेपन पर केवल राहुल गांधी ही चोट कर सकते हैं. राहुल गांधी न हों तो निकम्मापन छिपा रह जाएगा. ऐसे में भाजपा का एक ही अभियान है कि राहुल गांधी को रोक लो. भाजपा के राहुल रोको अभियान से लग रहा है जैसे भाजपाई उन को महामानव समझ रहे हैं. इतिहास के सब से बुरे दौर में पार्टी संभालने वाले राहुल गांधी से भाजपा का यह डर ही उन की ताकत बनता जा रहा है.

करीब 13 साल कांग्रेस में कामकाज देखने के बाद राहुल गांधी ने साढ़े 47 साल की उम्र में दिसंबर 2017 में राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद संभाला था. कांग्रेस का जनाधार लगभग खत्म हो चुका था. 2014 के लोकसभा चुनाव में उस के केवल

44 सदस्य चुने गए. कांग्रेस का वोट प्रतिशत 19 के करीब था. 2014 के लोकसभा चुनाव में हार के बाद भी कांग्रेस की हालत में सुधार नहीं हुआ. इस के बाद हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को ज्यादातर में हार का ही सामना करना पड़ा. महाराष्ट्र, हरियाणा और असम जैसे कांग्रेसी किले भी ढह गए.

भाजपा का कांग्रेसमुक्त भारत का सपना लगभग पूरा हो चुका है. इस के बाद भी भाजपा का राहुल गांधी से खौफ खाना बताता है कि राहुल को जनता का समर्थन हासिल हो रहा है. केंद्र सरकार के साढ़े 4 वर्षों के निकम्मेपन ने राहुल गांधी को ताकत दे दी है. राहुल गांधी के पास कांग्रेस का सब से कमजोर दौर का संगठन है. वे अकेले नेता हैं जिन को जनता उम्मीद से देख रही है. वे महामानव बन कर अगर भाजपा को हरा नहीं सकते, तो भाजपाइयों में डर क्यों है?

विपक्षी एकजुटता के पैरोकार

राहुल गांधी विपक्षी एकता के सूत्रधार हैं. बिहार में जब नीतीश कुमार राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस का महागठबंधन छोड़ कर भाजपा के साथ गए तो राहुल गांधी ने राजद का साथ दिया. कर्नाटक में जब विपक्ष की एकजुटता दिखाने का समय आया तो कांग्रेस ने 2 कदम पीछे हटते हुए त्याग की भूमिका अदा की. राहुल गांधी का उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव, मायावती, महाराष्ट्र में शरद पवार, कर्नाटक में देवगौड़ा, पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी और आंध्र प्रदेश में चंद्रबाबू नायडू के साथ बेहतर तालमेल है.

राहुल गांधी बिना किसी अहं के विपक्षी एकजुटता को बनाए रखने का काम कर रहे हैं. ऐसे में भाजपा को यह डर है कि कहीं राहुल गांधी भाजपा के खिलाफ विपक्ष को एकजुट रखने में सफल हो गए तो उस के लिए 2019 में वापसी करना संभव नहीं होगा. भाजपा में राहुल का एक स्वाभाविक डर बैठ गया है.

मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनावों में बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस का गठबंधन भले ही न हो सका हो पर बसपा नेता मायावती ने राहुल गांधी की कोई आलोचना नहीं की. मायावती ने कांग्रेसबसपा गठजोड़ टूटने की वजह दिग्विजय सिंह को बताया. लोकसभा चुनावों में कांग्रेस की सीटें किसी भी क्षेत्रीय दल से अधिक होंगी. ऐसे में भाजपा के खिलाफ जो भी पार्टी विरोध को बुलंद कर पाएगी वह कांग्रेस ही होगी.

भाजपा इस बात को समझती है. इस वजह से वह सपा और बसपा जैसी छोटी पार्टियों में मचे अंतर्विरोध को हवा देने का काम कर रही है. उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी में शिवपाल यादव की सेंधमारी का लाभ भाजपा को होगा. इसी तरह प्रतापगढ़ की कुंडा विधानसभा सीट से विधायक राजा भैया के अलग पार्टी बनाने से अगड़ी जातियां खासकर ठाकुर बिरादरी के उन के साथ जाने से इन जातियों के कांग्रेस के साथ जाने का खतरा कम हो जाएगा, जिस का लाभ भाजपा को होगा.

युवा नेताओं का बढ़ता असर

राजनीति में युवा नेताओं का प्रभाव बढ़ रहा है. भारतीय जनता पार्टी में नरेंद्र मोदी और अमित शाह युवा नेता नहीं हैं, जिस तरह एक समय कांग्रेस में युवा नेताओं का महत्त्व घट रहा था, उसी तरह से अब भाजपा में युवा नेताओं का काम केवल नारे लगाना और कुरसी बिछाना रह गया है. देश की राजनीति में युवाओं का महत्त्व बढ़ रहा है. ये कट्टरता और भ्रष्टाचार दोनों से दूर हैं. ये राहुल गांधी के समकक्ष नेता हैं. इन में जम्मूकश्मीर में उमर अब्दुल्ला, राजस्थान में सचिन पायलट, मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया, उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव, बिहार में तेजस्वी यादव प्रमुख हैं. ये नेता राहुल गांधी के साथ राजनीतिक और व्यावहारिक दोनों स्तर पर करीब हैं. भाजपा के पास ऐसे नेताओं की कमी हो रही है.

48 वर्षीय राहुल गांधी के पास संसदीय कार्यों का लंबा अनुभव है. पार्टी अध्यक्ष बनने के बाद उन की स्वीकार्यता बढ़ी है. वे युवाओं की तरह फिट हैं. जापानी युद्धकला अकीदों में वे ब्लैक बैल्टहैं जो उन को चुस्तदुरस्त बनाए रखने में मदद करती है. राहुल ने अपने राजनीतिक जीवन में हर तरह का संघर्ष देख लिया है. राहुल गांधी ने जमीनी स्तर पर तमाम आंदोलन खडे़ किए. कांग्रेस के सब से कमजोर संगठन के बाद भी वे अकेले अपने कंधों पर पार्टी का बोझ उठाए हुए हैं.

पूरे देश में राहुल गांधी एकजैसी व्यक्तिगत पकड़ रखते हैं. जो सक्रियता प्रधानमंत्री बनने के बाद भाजपा नेता नरेंद्र मोदी ने हासिल की, राहुल गांधी ने कमजोर दल के नेता होने के बाद भी उस को हासिल कर लिया है. राजनीति में जिस समय राहुल गांधी का पदार्पण हुआ था उस समय भले ही वे कमजोर स्वभाव के रहे हों पर अब उन का स्वभाव दृढ़निश्चय वाला हो गया है. वे अब एक तपेतपाए नेता की तरह दिखते हैं.

सोशल मीडिया पर बढ़ता प्रभाव

राहुल गांधी का सोशल मीडिया पर व्यापक प्रभाव है. उन के ट्वीट प्रधानमंत्री को भारी पड़ने लगे हैं. इस के पीछे उन की बदलती कार्यशैली है. लोकसभा में जब बहस चल रही थी, राहुल गांधी ने अपनी सीट से उठ कर प्रधानमंत्री की सीट के पास जा कर उन को गले लगाया. यह दृश्य पूरी मीडिया पर भारी पड़ गया. राहुल गांधी के प्रचार को मात देने के लिए भाजपा ने जो अभियान चलाया उस में भी राहुल गांधी ही छाए रहे.

पैट्रोल की बढ़ती कीमतों पर राहुल गांधी के सवाल का समर्थन पूरे देश ने किया. इस के बाद केंद्र सरकार को डीजलपैट्रोल सस्ता करना पड़ा. भाजपा ने राहुल गांधी के धर्म को ले कर कई बार सवाल उठाए. उस के बाद राहुल गांधी ने मंदिरों के दर्शन का सिलसिला शुरू कर दिया. जिस के बाद भाजपा को बैकफुट पर आना पड़ा. अब भाजपा उन के मंदिर जाने का मजाक नहीं उड़ाती है.

भाजपा ने जिस राहुल गांधी का पप्पू और शहजादा कह कर मजाक उड़ाया, वह अब निखर कर नेता बन कर सामने खड़ा हो गया है. अब राहुल गांधी अपने परिवार के नाम से नहीं, बल्कि अपने काम की वजह से जाने जाते हैं. यही वजह है कि भाजपा ने राहुल गांधी को ही केंद्र में रख कर अपने विरोध की चुनावी राजनीति को अंजाम देना शुरू किया है.

भाजपा की इस रणनीति से राहुल गांधी महामानव बन गए हैं.ऐसे में केंद्र के विरोध में उठने वाले हर सुर को राहुल गांधी में दम दिख रहा है. कांग्रेस को भी अपनी ताकत का केंद्र राहुल गांधी में दिख रहा है. तमाम तरह के आरोपों से दूर राहुल गांधी केंद्र सरकार के विरोध में मुखर स्वर बन चुके हैं. राहुल के लिए अच्छी बात यह है कि अब उन्हें गंभीरता से सुना भी जा रहा है.

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