मौजूदा माहौल में देश के लिए इससे बड़ी कोई खबर हो ही नहीं सकती कि खेतों में लहलहाती फसलें देखकर किसानों के चेहरे खिले हुये हैं, हर बेकार, बेरोजगार को काम मिल गया है, कहीं भी दलितों और मुसलमानों को मारा पीटा नहीं जा रहा है, औरतों की इज्जत नहीं लुट रही है, अमेरिका हमसे कर्ज मांग रहा है, व्यापारी बिना किसी अड़चन के व्यापार कर रहा है, कारखानों और फेक्टरियों में रिकार्ड उत्पादन हो रहा है, कहीं भी किसी तरह की हिंसा या अपराध  नहीं हो रहे हैं  इसलिए थानों में पुलिस वाले हंसी मज़ाक करते वक्त काट रहे हैं, सभी बच्चे स्कूल जाकर डाक्टर, इंजीनियर और कलेक्टर बनने का अपना सपना पूरा कर रहे हैं और ऐसी कई अच्छी खबरों के साथ विजय माल्या और दूसरे भगोड़े खरबों रुपया लेकर देश वापस आ गए हैं वगैरह वगैरह.

लेकिन जो नई अच्छी खबर चंद घंटों में उत्तरप्रदेश के संत महंत मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ अयोध्या से देने वाले हैं उसके सस्पेंस से लोग हलाकान हुये जा रहे हैं कि वह क्या होगी और कितनी लाजवाब होगी. इस अच्छी खबर का ढिंढोरा तो देश भर के साधुसंत दिल्ली के तालकटोरा से पीट चुके हैं कि राम मंदिर तो बनेगा फिर चाहे कुछ भी हो जाये. इस बाबत सरकार अगर कानून बनाने की घोषणा नहीं करती है तो साधु संत खुद मंदिर बनाना शुरू कर देंगे और पूरा भगवा कुनबा 1992 जैसा आंदोलन छेड़ देगा. अव्वल तो डराने के लिए यह धौंस ही काफी है कि अब फिर मंदिर के नाम पर हिंसा भी हो सकती है क्योंकि संत समुदाय कानून हाथ में लेने से हिचकिचाने वाला नहीं और अब तो सरकार लगभग हर जगह भाजपा की है इसलिए कोई उन्हें रोकेगा भी नहीं उल्टे पुलिस प्रशासन उनकी आवाभगत करता नजर आए तो बात कतई हैरानी की नहीं होगी.

अब आदित्यनाथ कौन सा तुरुप का पत्ता खोलने बाले हैं इसे लेकर अटकलों के साथ साथ शर्तों और सट्टा बाजार भी इतना गरमा चुका है कि तीन राज्यों के चुनाव जो कल तक बेहद अहम थे जाने किस कोने में पड़े कराह रहे हैं. लोग कयास लगा रहे हैं कि वह अच्छी खबर क्या होगी, अच्छे दिनों जैसी लोलीपाप भर होगी या फिर कोई नया सनसनाता हाहाकारी फैसला होगा जिसके तहत इन दिनों आस्था के समुंदर में गले गले तक डूबे योगी जी यह चौंका देने वाला ऐलान भी कर सकते हैं कि वे अब राम मंदिर निर्माण के बाद ही कुर्सी पर बैठेंगे और लखनऊ तभी जाएंगे जब अयोध्या में रामलला का मंदिर बन चुका होगा. मुमकिन यह भी कि वे अन्न जल त्याग की घोषणा कर दें और खुद ही अपनी सरकार के खिलाफ अनशन पर बैठ जाएं.

मुमकिन यह भी कि आदित्यनाथ मंदिर निर्माण का पूजन ही कर डालें ऐसे में कोई क्या कर लेगा. अपाहिजों की तरह घिसटते इखरे बिखरे विपक्ष की घुटी आवाज नक्कारखाने में तूती की तरह ही साबित होगी और इन दिनों हीरो बनाए जा रहे योगी जी को वह श्रेय मिलना तय है जो 1992 में किसी एक को तो क्या सभी रामभक्तों को मिलाकर भी नहीं मिला था.

अगर ये सभी बातें कपोल कल्पनाएं हैं तो इससे ज्यादा या कम क्या होगा यह कह पाना मुश्किल है. धीरे धीरे नरेंद्र मोदी का विकल्प बनाए जा रहे आदित्यनाथ का मन शुरू से ही सरकारी कामकाज में नहीं लग रहा है.  वे नेता होते हुये भी मठ की ज़िंदगी के आदी हैं जहां सुबह राम धुन और गौ सेवा से शुरू होती है , फाइलों के अंबार और जनसेवा के कार्यों से नहीं. हाथ बांधकर खड़े सूट बूट वाले आईएएस अफसर उन्हें असहज बनाते हैं, उन्हें सहजता लगती है संतों और भक्तों के सत्संग में जो चौबीसों घंटे अपने कारोबार यानि रामकथा में डूबे रहते हैं.

अब अगर यही पुरानी ज़िंदगी आदित्यनाथ को बुला और लुभा रही है तो वे कोई ऐसी ही अच्छी खबर सुना सकते हैं और अगर प्रधानमंत्री बन जाने की महत्वाकांक्षा उनके दिलो दिमाग में हिलोरें मार रही होगी तो वह प्रतीक्षित अच्छी खबर यही होगी के वे संतों और रामभक्तों की आस्था पूरी करने यह कांटों भरा ताज भी पहनने तैयार हैं. हाल फिलहाल यह बात घुमाफिराकर ही कही जा सकती है.

अब कलयुग में यह चमत्कार होना तो मुश्किल ही नहीं बल्कि असंभव ही है कि 6 नवम्बर को घर घर में एक दीपक राम के नाम के जलाने पर खुद राम प्रसन्न होकर सीता लक्ष्मण और हनुमान के पुष्पक विमान से उतरें और सीधे मंदिर में जाकर विराजमान हो जाएं जिससे भक्तों को आंदोलन वगैरह करने की जहमत न उठानी पड़े जिसके कभी कोई माने नहीं निकले.

और अगर ऐसा भी नहीं हुआ तो कुछ घंटे और कयास लगाने हर कोई स्वतंत्र है कि योगी कौन सी अच्छी खबर के बाबत हवा बांध रहे हैं. वह अच्छी खबर अगर मंदिर निर्माण की है तो लोगों के हाथ निराशा ही लगेगी क्योकि उसका हल्ला और शोर शराबा तो अभी से दिवाली के पटाखों के धूम धड़ाके को मात कर रहा है वह तो एक बासी खबर का दोहराव भर होगा.

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