मूर्तिपूजक देश के भाजपा नेता आज एक और मूर्ति के अनावरण से गर्वित दिखाई दे रहे हैं. गुजरात के केवड़िया में नर्मदा तट पर सरदार वल्लभभाई पटेल की 182 मीटर ऊंची लोहे की प्रतिमा का अनावरण करते समय धर्मानुरागी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की टीम के चेहरे पर जिस तरह गर्व और खुशी के भाव दिखाई पड़ रहे थे लग रहा था, देश ने बहुत बड़ी उपलब्धि हासिल कर ली है.
विश्व में सब से ऊंची प्रतिमा स्थापित कर के नेतागण इस कदर गदगद हो थे मानो भारत ने सब से ऊंची मूर्ति स्थापित कर आसमान की ऊंचाई माप ली है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सुबह जब सरदार पटेल की प्रतिमा का अनावरण किया तो नहीं लगा कि वह देश की एकता के प्रतीक किसी नेता की प्रतिमा का अनावरण कर रहे हैं क्योंकि अनावरण समारोह में सिर्फ गुजरात के ही नेता मौजूद थे. इन में खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह, राज्य की पूर्व मुख्यमंत्री और मध्यप्रदेश की मौजूदा राज्यपाल आनंदीबेन पटेल, गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी, उपमुख्यमंत्री नितिन पटेल ही उपस्थित थे.
यह बात और है कि अनावरण के बाद ‘देश की एकता जिंदाबाद’ के नारे जरूर लगवाए गए. एकता की बेहतर मिसाल तब ज्यादा सराही जाती जब देश के तमाम दलों के नेताओं की शिरकत दिखाई पड़ती और पटेल की प्रतिमा केवल गुजरात या भाजपा की नहीं, समूचे देश की मानी जाती. ऐसा न कर के भाजपा का एकता का नहीं, संकीर्णता का संदेश गया है.
यह सही है कि सरदार पटेल ने देशी रियासतों के एकीकरण में अहम भूमिका निभाई थी. वह कांग्रेस के कद्दावर नेता थे.
दरअसल मूर्तियों को ले कर हमारे देश में एक महाभारत चलता आया है. पुराने नेता, सुधारक, शहीद, देवीदेवता धर्म, जाति, वर्ग और विचारधाराओं में बांट दिए गए हैं.
मूर्तियों की स्थापना के पीछे पुराने नेताओं की अच्छी बातों की सीख ग्रहण करने या समाज को एकता में बांधने की सोच नहीं, जातियों में विभाजित रहने की हमारी गुलाम सोच है. जातियों के नेताओं के नाम पर वोट बैंक हथियाने की कोशिशें होती हैं.
पिछले कुछ समय से भाजपा ने वोटों के लिए महात्मा गांधी पर अपना अधिकार जताना शुरू किया, फिर अंबेडकर और सरदार पटेल पर. इसे ले कर विपक्ष कांग्रेस और भाजपा दोनों के बीच तकरार चलती रहती है.
देश में असंख्य मूर्तियां हैं. महानगर, शहर, कस्बे और गांवों तक में गली, चौराहों पर मूर्तियां ही मूर्तियां हैं. अलगअलग धर्म, जाति, वर्ग, विचारधाराओं में बंटी मूर्तियों में कैसी सामाजिक एकता है?
यह विभाजन सामाजिक वैमनस्य, नफरत, हिंसा का कारण बन रहा है. आए दिन मूर्तियों को तोड़ने, गंदा करने की घटनाओं को ले कर विभिन्न वर्गों में लड़ाई झगड़ा, खूनखराबा, हिंसा आम है. कभी महात्मा गांधी की मूर्ति को ले कर, कभी अंबेडकर तो कभी देवीदेवताओं की मूर्तियों को ले कर विभिन्न जातियों, वर्गों में आए दिन तलवारें खींची रहती हैं.
इस देश में जातियों की दीवारें कब ढहेंगी? इंसानों में यूनिटी कब होगी? सामाजिक एकता कैसे होगी? क्या इस बारे में भी कोई योजना नहीं है? ऐसी कोई योजना नहीं है. यह मूर्तियों में बंटे देश की एकता नहीं, मूर्तियों के प्रति मानसिक गुलामी है.